लखनऊ। राजधानी लखनऊ में इन दिनों पत्रकारों की स्थिति काफी दयनीय हो गई है। हफ्ते भर पहले पत्रकारों की खुलेआम पिटाई हो रही है। मगर मीडिया और शासन-प्रशासन की निरंकुशता के चलते अराजकतत्वों पर कार्यवाई नहीं की जा रही है। पत्रकार अक्सर जनहित की रक्षा करने वाले राजनीतिक दलों और सामजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठनों के अराजकतावादी तत्वों का शिकार हो रहे है। मगर उनकी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है। गौरतलब हो कि लखनऊ के पीजीआई थाना क्षेत्र के वृन्दावन कालोनी सेक्टर 5 ई 76 अम्मा कालोनी में रहने वाले 35 वर्षीय वकील निखिलेन्द्र कुमार गुप्ता जो पत्रकार परिषद के अध्यक्ष थे।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस वकील द्वारा राकेश रावत नामक एक व्यक्ति की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा किया जा रहा था। राकेश के पास वकील से निपटने के लिए कोई चारा नहीं था। क्योंकि न तो उसके धन था और नहीं उसके बल था। इसलिए उसने वकील को बुधवार उनके घर के पास मोड़ पर बम से उड़ा दिया। इस घटना को लेकर वकीलों ने बुधवार को पीजीआई थाना सहित एसएसपी आवास पर भी हंगामा किया। मृतक के परिजनों को वकीलों ने मुआवजा दिलाने की मांग की। डीएम राजशेखर ने मुआवजा देने की भी घोषणा कर दिया। मगर उसके बावजूद भी उपद्रवी वकीलों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। वकीलों ने गुरूवार सुबह 10 बजे हाईकोर्ट चैराहे पर एकत्र होकर वाहनों का शीशा तोड़ा। करीब 5000 की संख्या में वकीलों ने हाईकोर्ट चैराहे से लेकर विधानसभा मार्ग तक न केवल कार, टैम्पों, टैक्सी, बसों के शीशें तोड़े बल्कि प्रमुख रूप से पत्रकारों को टारगेट कर पीटना भी शुरू कर दिया। वकीलों ने प्रेस लिखी मोटरसाईकिलों और कारों को लाठी डंडों से चकानाचूर कर दिया। वकील खुलेआम असलहे लहराकर नंगा नाच करते रहे, मगर शासन और प्रशासन समाजवादी सरकार के इशारे पर बौना बनी रही। स्कूली वैन, एम्बुलेन्सों में सवार बच्चों और मरीजों को भी अराजकवादी वकीलों ने नहीं बक्शा है। शादी कराकर लौट रही बस में सवार दूल्हे और दुल्हन की खुशियों को इन हैवानों ने चकनाचूर कर दिया। बस के शीशे तोड़कर बारतियों में दहशत फैला दिया। कुछ लाल और नीली बत्ती लगे वाहनों से स्कूल से वापस आ रहे अधिकारियों के बच्चों को भी इन हैवानों ने नहीं छोड़ा। इन गाडि़यों से न केवल नीली और लाल बत्ती उतार कर तोड़ी गई बल्कि इनके शीशे और इनके ड्राइवरों को भी उपद्रवी वकीलों ने जमकर पीटा और लहूलुहान किया।
पत्रकार लिखे सभी वाहन चालकों को एक ही बात कह कर पीटा जा रहा था। वकील कहते थे मारो-मारो यह अमर उजाला का पत्रकार हो सकता है। अमर उजाला के पत्रकार से न जाने ऐसी क्या दुश्मनी थी कि हाईकोर्ट चैराहे से लगाकर हजरतगंज तक पत्रकार लिखे वाहन चालकों की जमकर धुनाई की गई। वकीलों ने पुलिस को भी नहीं छोड़ा। पुलिस कर्मियों को वकीलों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा है। इतना ही नहीं मामले की जानकारी एसएसपी और डीआईजी को भी दी गई। मगर अफसोस की बात यह है कि समाजवादी सरकार ने डीएम, डीआईजी और एसएसपी का पर कतर दिया। इन लोगों का सीधा कहना था कि ऊपर से कार्यवाही नहीं किये जाने का आदेश है। जब तक ऊपर से आदेश नहीं आयेगा। इस मसले पर कुछ भी कार्यवाही नहीं किया जा सकता है। समाजवादी पार्टी के इस राजनीतिक स्टंट की वजह से बेकूसर पत्रकार, पुलिस और आम जनता की जमकर पीटाई हुई। पूरा परिवर्तन चैराहा और हाईकोर्ट चैराहा आम जनता, पुलिस कर्मियों और पत्रकारों की चीखों से कराह उठा। मगर उसके बावजूद भी सरकार ने प्रशासन को कार्यवाही करने की इजाजत नहीं दी।
जिसके कारण उनका हौसला दिनों दिन बुलंद होता जा रहा है। कहने के लिए पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए सैकड़ों-हजारों की तादाद में संगठन है। मगर सभी के सभी पत्रकार हितों की रक्षा करने के बजाय शासन और प्रशासन की दलाली करने में अधिक मशगूल रहते है। लखनऊ में ही नहीं प्रत्येक शहर और राज्य में गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या में हजार गुना अधिक है। कार्य करने की दृष्टि से भी गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या काफी अधिक है। इन गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों की वजह से ही अखबार अखबार बनता हैं। मगर जब भी इनके साथ समाचार संकलन के दौरान किसी प्रकार की घटना घटित होती है तो इनका साथ देने वाला कोई पत्रकार नहीं खड़ा होता है। यदाकदा कोई गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों का समूह एकत्रित होकर शासन-प्रशासन पर न्याय पाने का दबाब बनता है तो शासन-और प्रशासन के आलाधिकारियों द्वारा दलाली करने वाले मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मामला मैनेज करने के लिए भेजा जाता है। ये अपने इस मिशन में सफलता भी हासिल कर लेते है। शासन-प्रशासन और सत्ता के इन मान्यता प्राप्त दलालों की वजह से गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों का वजूद गर्त में डूबता जा रहा है। मगर उसके बावजूद भी गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकार अपनी इस दुर्दशा के प्रति जागरूक नहीं हो रहा है।
गौरतलब हो कि पत्रकारों के साथ यह पहली घटना नहीं है। समाजवादी पार्टी की इस सरकार में पत्रकारों पर 12 से 15 बार हमला किया जा चुका है। मगर हर बार शासन की दलाली करने में माहिर हेमंत तिवारी द्वारा इन गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों को थोड़ा धन लोभ देकर मामले को शांत करा दिया जाता है। अभी 5-6 दिन पूर्व की बात है कि मधुरिमा रेस्टोरेन्ट में खाद्य विभाग की टीम ने छापा मारा था। विभाग ने इस घटना के कवरेज के लिए इंडिया टीवी और एपीएन न्यूज सहित अन्य अखबारों और चैनलों के कैमरामैनों और पत्रकारों को न्यूज कवर करने के लिए बुलाया गया। इस दौरान मधुरिमा के कर्मचारियों ने पत्रकारों और कैमरामैनों को जमकर पीटा। इस मुद्दे में लखनऊ के सभी छोटे-मोटे पत्रकारों का समूह अपनी एकता को मजबूत करते हुए धरना प्रदर्शन किया तो एक दिन के लिए मधुरिमा बंद दिया गया। मगर दूसरी रात से ही फिर से मधुरिमा होटल को खोल दिया गया। पत्रकार गांधी भवन पर फिर एकत्रित होकर मधुरिमा के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया तो हेमंत तिवारी ने दोषियों पर कार्यवाही कराये जाने और कैमरा दिये जाने का आश्वासन देकर मामले को शासन-प्रशासन के अधिकारियों और पत्रकारों के बीच सुलह करा दिया। इस सुलह में हेमंत तिवारी ने ऐसे भी लोगों को कैमरे दिलाये, जिनके कैमरे टूटे ही नहीं थे।
कैमरे के नाम पर कई लोगों का फर्जी नाम दर्ज करा कर उनके कैमरे की धनराशि को आधा-आधा अधिकारियों और हेमंत तिवारी ने संयुक्त रूप से बांट लिया। अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ कि गुरुवार को फिर पत्रकारों की जमकर धुनाई कर दिया। ऐसा लग रहा है कि आज के जमाने में सबसे कमजोर प्राणी पत्रकार और आम जनता ही है। जब चाहे जो चाहे इनकी पीटाई कर दे रहा है। प्रशासन कार्यवाही करने की बजाय निरंकुश बनकर तमाशा देख रहा है। हेमंत तिवारी की यह कारस्तिानी कोई नई बात नहीं है। इससे पूर्व भी कई बार पत्रकारों पर हमले हुए हर बार इनके द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों को धन का लोभ देकर मामला शांत करा दिया गया। वर्ष 2012 में एक समुदाय विशेष द्वारा करीब 50 फोटोग्राफरों के कैमरे तोड़ दिये गये और तीन-चार पत्रकारों की गाड़िया फूंक दी गई। उसमें भी दो-चार बड़े-बड़े अखबारों के फोटों ग्राफरों को छोड़ दिया जाये तो सभी से हस्ताक्षर करा लिया गया लेकिन उन्हें कैमरे का एक भी पैसा नहीं दिया गया। हेमंत तिवारी शासन की तरफ से गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मैनेज करने के लिए उनका नेता तो बन जाते है। मगर जब गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों के अधिकारों की बात आती है तो तब वह उन्हें पत्रकार मानने से ही इंकार कर देते हैं। फिर भी हमारे गैर-मान्यता प्राप्त भाई आज तक यह सबक नहीं ले पाये कि आखिर यह व्यक्ति क्या है? जो न तो किसी अखबार में लिखता है और नहीं किसी अखबार का प्रतिनिधित्व करता है। उसके बावजूद भी यह जब चाहता है तब गैर-मान्यता प्र्राप्त पत्रकारों का नेता बनकर उनके अधिकारों पर डाका डाल देता है। फिर हम इसकी भावना को नहीं समझ पा रहे है।
लेखक Vineet Rai से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.