यशवंत जी
एडिटर, भड़ास4मीडिया
महोदय,
पिछले 30 सितंबर 2019 को आपके सम्मानित पोर्टल में बरेली से किन्हीं निर्मल कांत शुक्ला की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। ये रिपोर्ट उन्हीं “एकतरफा” और “तोड़-मरोड़कर” पेश किए गए कागजातों पर आधारित है जिसे अमर उजाला पीलीभीत के दो पत्रकार संजीव पाठक और महिपाल मेरे खिलाफ एक विशेष मकसद से छाप रहे हैं। ये दोनो ही पत्रकार एनआरएचएम के भ्रष्ट कॉकश के खुलकर मददगार बने हुए हैं और उन्हें बचाने के लिए अरसे से कोशिश कर रहे हैं। फिर भी चूंकि सवाल उठाए गए हैं, इसलिए जवाब देना फर्ज है। सो बिंदुवार जवाब दे रहा हूं। निवेदन है कि इसे भी प्रकाशित करें ताकि सच सामने आ सके।
मैं अब तक एनआरएचएम के भ्रष्ट कॉकश की कारगुजारियां उजागर करने के लिए 310 आरटीआई लगा चुका हूं। इसी सिलसिले में सूचना आयोग लखनऊ में 139 वाद योजित हैं। इसी भ्रष्टाचार से लड़ने के चलते मुझे निलंबित कर दिया गया है। अहम बात यह है कि मैं पिछले चार सालों से खुद अपने मामले में विजिलेंस जांच की मांग कर रहा हूं। शासन को भेजी गई मेरी चिट्ठियों का सिलसिला है। साल 2017 में विजिलेंस जांच का आदेश भी दिया गया मगर फिर उसे निरस्त कर दिया गया। मेरे कमरे में एनआरएचएम घोटाले के कागजातों का भंडार है। मैने अमर उजाला पीलीभीत के इन दो पत्रकारों को कई बार कहा कि एक बार कागज देख लें। मेरा पक्ष ले लें। मगर वे बिना एक भी कागज देखे हुए, बिना मेरी एक भी बात का संज्ञान लिए हुए, मेरे खिलाफ लगातार एजेंडा चला रहे हैं। ये रहा क्रमवार जवाब…
1- अमर उजाला पीलीभीत के इन दो पत्रकारों ने मेरे खिलाफ दुष्प्रचार किया कि मेरा एनआरएचएम घोटाले को उजागर करने से कोई संबंध नहीं है। अब इन तथ्यों पर ध्यान दीजिए और खुद सोचिए कि ये दोनो पत्रकार एनआरएचएम के भ्रष्ट कॉकश की मदद के लिए किस स्तर का झूठ फैला रहे हैं। पीलीभीत के तत्कालीन सीएमओ परिवार कल्याण डॉक्टर हितेश कुमार के एनआरएचएम भ्रष्टाचार के विरुद्ध माननीय हाईकोर्ट खंडपीठ लखनऊ में मार्च 2011 में जनहित याचिका संख्या 2647/2011 योजित की गई। इसे समान प्रकृति की दो अन्य दायर याचिकाओं के साथ जोड़कर, 15 नवंबर 2011 को पूरे प्रदेश के जिलों में सीबीआई जांच के आदेश जारी हुए। आप माननीय हाईकोर्ट का आदेश देख सकते हैं। इस आदेश में जनपद पीलीभीत का नाम अंकित है। वही पीलीभीत जहां जड़ों तक बैठ चुके एनआरएचएम के कैंसर को उखाड़ने के लिए मैंने सैकड़ों आरटीआई के जरिए सारे कागजात बाहर निकाले और ये लड़ाई लड़ी।
2- अमर उजाला पीलीभीत के इन दो पत्रकारों ने एनआरएचएम के भ्रष्ट कॉकश की शह पर मेरे खिलाफ दुष्प्रचार किया कि मैं गलत तरीके से सरकारी मकान पर कब्जा करके बैठा हू्ं। अब सरकारी दस्तावेजों समेत इसका भी सच सुन लीजिए। मैं मौजूदा समय में अपने राजकीय आवंटित आवास बी 6 न्यू ब्लॉक जिला चिकित्सालय परिसर पीलीभीत में रह रहा हूं। उत्तर प्रदेश सेवा विधि के अनुसार सरकारी सेवक निलंबन के दौरान सरकारी सेवा में बना रहता है तथा सेवा संबंधी सुविधाएं पाने का हकदार होता है। आवास का किराया व बिजली बिल का भुगतान वेतन से कटौती करके किया जाता है। इसे निलंबन अवधि में नियमानुसार देय जीवन निर्वाह भत्ता के भुगतान से काटा जाता है। मैं किस कठिन स्थिति में निर्वाह कर रहा हूं, इसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि एनआरएचएम कॉकश के दबाव में मुझे निलंबन अवधि में नियमानुसार देय जीवन निर्वाह भत्ता तक नहीं दिया जा रहा है। मैं यहां ये भी बता दूं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी निलंबन अवधि में जीवन निर्वाह भत्ता प्राप्त ना कराए जाने की स्थिति को अमानवीय कृत्य तथा मूल अधिकार 21 का हनन कहा है। साल 2016 से आज तक की अवधि में मैंने अपर निदेशक मुरादाबाद तथा महानिदेशक परिवार कल्याण, उ.प्र. लखनऊ को अनगिनत प्रत्यावेदन दिए। किंतु फिर भी मुझे अभी तक जीवन निर्वाह भत्ता नहीं दिया गया। इस स्थिति में मुझे आवंटित आवास का किराया व बिजली बिल विभाग के पास ही उपलब्ध है।
3- अमर उजाला के इन दो पत्रकारों ने साजिशन मुझे बदनाम किया है। मेरे पदनाम के साथ “तृतीय श्रेणी कर्मचारी” का प्रयोग किया है जबकि मेरा पद “क्लास टू राजपत्रित श्रेणी” का है। अब ये मानहानि नहीं तो और क्या है? पर ऐसा करने का एक विशेष मकसद भी है। मकसद ये कि मुझे तृतीय श्रेणी कर्मचारी के रूप में दर्शाकर, अधिकारी पद के टाइप 4 आवास से बाहर करवाया जा सके। इस संदर्भ में मेरे पास तत्कालीन जिलाधिकारी पीलीभीति कौशलराज शर्मा का पत्र भी पड़ा है। वर्ष 2010 में मेरे राजकीय वाहन को फ्यूल देने में आनाकानी करने पर उन्होंने डॉ हितेश कुमार सीएमओ पीलीभीत को पत्र लिखकर निर्देशित किया था। जिलाधिकारी किसी तृतीय श्रेणी के कर्मचारी को मिले राजकीय वाहन के लिए ऐसा पत्र नहीं लिखते हैं।
आप सोचिए मेरे खिलाफ किस तरह की साजिश हो रही है। आरटीआई से मुझे एक एक सबूत मिल चुके हैं। पर अमर उजाला के इन दोनों पत्रकारों ने मेरे लाख कहने के बावजूद मेरे सबूत नहीं देखे। एनआरएचएम संविदा भर्ती में अनियमितता के आरोपों में फंसे पीलीभीत के तत्कालीन सीएमओ डॉक्टर एके सिंह ने मेरे खिलाफ 3 फरवरी 2015 को एक चिट्ठी तैयार की। जबकि वे इससे चार दिन पहले ही यानि 31 जनवरी 2015 को सेवानिवृत्त हो चुके थे। उन्होंने उसी पत्र पर तीन अलग-अलग पत्रांक तथा तिथियां (29 नवंबर 2014, 7 जनवरी 2015 और 19 जनवरी 2015) अंकित कर दीं। मैने ये सच्चाई पता चलने पर डीजी ऑफिस में पत्र लिखकर इनकी जानकारी मांगी। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि इन पत्रों की प्राप्ति डीजी ऑफिस में जारी तिथियों में पाई ही नहीं गयी। मेरे पास आरटीआई के सारे जवाब मौजूद हैं। मैं अमर उजाला के इन पत्रकारों से ये सारे तथ्य देखने की गुहार करता रहा लेकिन इन लोगों ने एनआरएचएम के भ्रष्टाचार के विसिल ब्लोअर की “कांट्रैक्ट किलिंग” की धुन में ये सारे तथ्य देखने तक से मना कर दिया।
एनआरएचएम घोटाले के खिलाफ सबूत जुटाने के चलते मेरा ट्रांसफर तक फर्जी तरीके से किया गया। इसके लिए डॉ विजयलक्ष्मी जो तत्कालीन महानिदेशक परिवार कल्याण थीं, के कूट आधारित पत्र तैयार किए गए। मेरा ट्रांसफर आदेश दिनांक 7 जुलाई 2015 को डिलीवर किया गया। पर इस पत्र में बैक डेट 30 जून की तिथि अंकित की गई। ट्रांसफर पालिसी के अनुसार 30 जून के बाद महानिदेशक को ट्रांसफर आदेश जारी करने का अधिकार न होकर विभागीय मंत्री को होता है। क्योंकि मेरा ट्रांसफर आदेश मेरे विरुद्ध साजिशन कार्यवाही का हिस्सा था इसलिए डॉ विजयलक्ष्मी ने नियमानुसार विभागीय मंत्री के पास नहीं भेजा। इस ट्रांसफर आदेश के संबंध में जारी कथित एकतरफा रिलीविंग आदेश दिनांक 7 जुलाई 2015 को सीएमओ कार्यालय स्तर से भी मुझे कभी भी सूचित नहीं किया गया। वजह ये थी कि उक्त जारी ट्रांसफर आदेश और एकतरफा रिलीविंग आदेश ही नियमविरूद्ध/अवैध था।
इतना ही नही बल्कि 24 जून 2016 को मेरे बारे में जनपद रामपुर जाकर सीएमओ कार्यालय में योगदान करने का फर्जी उल्लेख दर्ज करवाया गया। अब सूबत सुनिए। पिछले ही महीने सीएमओ रामपुर डॉ सुबोध शर्मा ने अपने द्वारा जारी पत्र 6 सितंबर 2019 में सही तथ्य अंकित कर एडी मुरादाबाद डॉ सत्य सिंह को सच्चाई से अवगत कराया है। इतना ही नहीं, मुझे निलंबित करने से पहले हुई जांच में मेरा पक्ष ही नहीं लिया गया। जिस डॉ ज्ञान सिंह तत्कालीन एडी मुरादाबाद की जांच रिपोर्ट के आधार पर मुझे निलंबित किया गया, उसमें मेरा पक्ष ही नहीं शामिल था। यह तथ्य स्वयं डॉ ज्ञान सिंह ने मेरी आरटीआई के जवाब में मार्च 2017 को लिखित तौर पर माना है। मैं ये लड़ाई पिछले चार सालों से लड़ रहा हूं। पर इन चार वर्षों के लंबे समय में आज तक कभी किसी भी अधिकारी ने मेरी पत्रावली तक नहीं देखी है, जांच तो बहुत दूर की बात है। गाड़ी चढ़वाकर मरवा देने जैसी धमकियां आम बात हैं।
4- शासन ने 8 नवंबर 2016 को मेरे प्रकरण की जांच “सतर्कता विभाग” से कराने का निर्णय लिया। पर इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से अनुसचिव उत्तर प्रदेश शासन श्री शशिकांत शुक्ला द्वारा 12 नवंबर 2017 को विभागीय अधिकारी को ही जांच अधिकारी नामित करवा दिया गया। जांच अधिकारी के रूप में नामित निदेशक परिवार कल्याण डॉ बद्री विशाल की ओर से मुझे जाँच में उपस्थित होने हेतु कभी कोई पत्र नहीं भेजा गया। सालों बीत गए। ये सारे तथ्य मुझे आरटीआई से हासिल हुए हैं। पर अमर उजाला के इन दोनों पत्रकारों ने एक भी तथ्य का संज्ञान नहीं लिया। ये सिर्फ एनआरएचएम के भ्रष्ट काकश की शह पर नाच रहे हैं। मैं तो अमर उजाला के मैनेजमेंट से गुहार कर रहा हूं कि वे जब चाहें मेरे सारे कागजात देख लें और फिर भ्रष्ट कॉकश के साथ मिलीभगत कर अखबार का ब्रांड बेच रहे इन दोनों पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाही करें।
5- वर्ष 2015 के सीएमओ पीलीभीत डॉ एके सिंह से लेकर वर्ष 2019 में सीएमओ पीलीभीत डॉ सीमा अग्रवाल तक, सभी के द्वारा पीलीभीत स्वास्थ्य विभाग में काबिज भ्रष्ट आपराधिक काकश के कुप्रभाव में, मेरे विरुद्ध मनमाने तरीके से फर्जी तथ्यों को अंकित कर कूटरचित पत्रों के माध्यम से साजिशन कार्रवाई लगातार जारी है। स्थिति अब इस कदर गंभीर हैं कि वर्तमान सीएमओ डॉ सीमा अग्रवाल द्वारा मेरे पंजीकृत पोस्ट से भेजे गए पत्रों को वापस कर दिया जाता है जबकि लोक सेवक के पद पर आसीन किसी अधिकारी द्वारा ऐसा कृत्य करना बेहद आश्चर्यजनक है।
6- सीएमओ पीलीभीत इस बात से बाखूबी अवगत हैं कि मेरे द्वारा निलंबन अवधि में आवंटित आवास में रहना पूर्णतया वैध है। इससे पूर्व में भी डॉ सीमा अग्रवाल द्वारा 15 नवम्बर 2018 को उत्पीड़न हेतु मेरे विरुद्ध फर्जी तथ्यों से रचित एक ही पत्र को, 23 बार पत्रांक बदल-बदल कर भेजा गया। सोचिए एक ही पत्र को 23 बार पत्रांक बदलकर भेजा गया! मैं आपके जरिए भी गुहार कर रहा हूं कि मेरे प्रकरण में शासन स्तर से विजिलेंस जांच के आदेश जारी करवाने में सहयोग करें। मैं खुद अपने मामले की विजिलेंस जांच चाहता हूं। ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
आखिर में मैं अमर उजाला मैनेजमेंट से सिर्फ इतनी गुजारिश करूंगा कि वे मेरे सारे कागजात देख लें और खुद तय कर लें कि उनके ये दोनों पत्रकार किसकी शह पर क्या कर रहे हैं? इनका पीलीभीत में बैकग्राउंड भी चर्चा का विषय है। मुझे जान से मारने की धमकियां मिलना बेहद ही आम हो चुकी हैं। मैं अपने परिवार समेत बिना निर्वहन भत्ते के पीलीभीति के आवास में पड़ा हुआ हूं। अमर उजाला के ये दोनो पत्रकार एचआरएचएम के भ्रष्ट कॉकश की शह पर मुझे वहां से भी निकलवाना चाहते हैं। मुझे नहीं मालूम कि इन स्थितियों में मेरा क्या होगा?
यशवंत जी उपरोक्त बातों के समर्थन में मैं कुछ जरूरी दस्तावेज भी यहां संलग्न कर रहा हूं-
धीरेंद्र सिंह
स्वास्थ्य विभाग
पीलीभीत
पूरे प्रकरण को समझने के लिए इन्हें भी पढ़ें-