Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

Live खुदकुशी फिल्माते मीडियाकर्मी, स्टेज पर खड़ा अहंकारी मुख्यमंत्री, पुलिस से गुहार लगाते शातिर नेता, अविचल मुस्काते पुलिसवाले…

Nadim S. Akhter : फिल्म ‘पीपली लाइव’ Anusha Rizvi ने बनाई थी और आज देश की राजधानी दिल्ली में ‘पीपली लाइव’ साकार हो कर जी उठा. सब कुछ वैसा ही. वही खुदकुशी की सनसनी, गर्म तवे पर रोटी सेंकने को आतुर मीडिया-नेता-प्रशासन की हड़बड़ी और दर्शकों-तमाशाइयों का वैसा ही मेला, वही हुजूम. सब कुछ जैसे एक लिखी स्क्रिप्ट की तरह आंखों के सामने होता रहा. एक पल को तो समझ ही नहीं आया कि मनगढंत फिल्म पीपली लाइव देख रहा हूं या फिर हकीकत में ऐसा कुछ हमारे देश की राजधानी दिल्ली के दिल यानी जंतर-मंतर पर हो रहा है !!!

Nadim S. Akhter : फिल्म ‘पीपली लाइव’ Anusha Rizvi ने बनाई थी और आज देश की राजधानी दिल्ली में ‘पीपली लाइव’ साकार हो कर जी उठा. सब कुछ वैसा ही. वही खुदकुशी की सनसनी, गर्म तवे पर रोटी सेंकने को आतुर मीडिया-नेता-प्रशासन की हड़बड़ी और दर्शकों-तमाशाइयों का वैसा ही मेला, वही हुजूम. सब कुछ जैसे एक लिखी स्क्रिप्ट की तरह आंखों के सामने होता रहा. एक पल को तो समझ ही नहीं आया कि मनगढंत फिल्म पीपली लाइव देख रहा हूं या फिर हकीकत में ऐसा कुछ हमारे देश की राजधानी दिल्ली के दिल यानी जंतर-मंतर पर हो रहा है !!!

दिल्ली के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, गणमान्य नेताओं-सज्जनों, पुलिस, मीडिया, आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता के सामने एक निरीह जीवन से मायूस युवा किसान अपना गमछा बांध पेड़ से लटक जाता है, खुदकुशी कर लेता है और सब के सब तमाशबीन बने देखते रहते हैं. मीडियाकर्मी और उनके कैमरे उस वीभत्स नजारे को फिल्माने में व्यस्त रहते हैं, मुख्यमंत्री स्टेज पर खड़े होकर पुलिस से ‘बचा लो-बचा लो’ की गुहार लगाते रहते हैं, वहां मौजूद पुलिस के कुछ अफसर-जवान के चेहरों पर मुस्कान तैरती रहती है, पार्टी के कार्यकर्ता हो-हो करके चिल्लाते रहते हैं और बेचारा पेड़ पर चढ़ा किसान हताश और कातर निगाहों से उन सबको तकता रहता है. एक पल को उसने जरूर सोचा होगा कि कोई तो जल्दी से पेड़ पर चढ़ कर उसे रोकने आएगा, उसे मनाएगा, उसे डांटेगा. चलो कोई ऊपर नहीं आएगा तो नीचे से ही सही, कुछ लोग हाथ जोड़कर कहेंगे कि ऐसा मत करो, रुक जाओ….अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है…

Advertisement. Scroll to continue reading.

…लेकिन कोई नहीं आया. नीचे गर्द-गुबार के बीच इंसानों के जिस्म सरीखे रोबोट टहल रहे थे, जो सिर्फ अपने पूर्वनिर्धारित काम को अंजाम देना चाहते थे. ऐसी किसी अप्रत्याशित घटना के लिए वे रोबोट तैयार नहीं थे. पेड़ पर चढ़ा किसान जल्द ही ये बात समझ गया कि नीचे इंसानों की नहीं, रोटी-बोटी नोचकर खाने वाले होमोसेपियन्स की भीड़ लहलहा रही है, जिनके सामने उसके लहु का मोल उसका अनाज उपजाने वाली मिट्टी के बराबर भी नहीं. यही सब देखता और उधेड़बुन में पड़ा वो थका-हारा-मायूस किसान आखिरकार पेड़ से लटक गया. लेकिन इस दफा उसके गमछे और उसकी धरती मां के बीच काम कर रहा गुरुत्वाकर्षण बल ज्यादा मजबूत साबित हुआ. इधर उसने दम तोड़ा और उधर मीडिया से लेकर नेताओं का खुला खेल चालू हो गया.

पहले बात दूध से धुली मीडिया की. मुझे नहीं पता कि जिस पेड़ पर किसान जान देने के लिए चढ़ा था, उससे मीडियाकर्मी कितने दूर थे. लेकिन अगर वह जान देने की धमकी दे रहा था तो मेरा अंदाजा है कि मीडिया के कैमरे उसे कैप्चर करने की कोशिश में नजदीक जरूर गए होंगे. ऐसे में यह सोचकर दुख और पीड़ा होती है कि इतने सारे मीडियाकर्मियों में से कोई भी इंसानियत के नाते ही सही, उसे बचाने, उसे रोकने आगे नहीं आया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

टीवी पर जो तस्वीरें देख रहा था, उनमें राममनोहर लोहिया अस्पताल के बाहर एबीपी न्यूज का कोई पराशर नामक नया-नवेला संवाददाता लोगों से बात कर रहा था कि गजेंद्र नामक उस किसान की हालत अभी कैसी है. वहां मौजूद लोगों में से शायद एक किसान का जानने वाला था. उसने रुआंसा होकर कहना शुरु किया कि साहब, वो मर गया है. इसके लिए दिल्ली की मीडिया, दिल्ली के नेता और दिल्ली की पुलिस को हम जिम्मेदार मानते हैं. कोई उसे बचाने नहीं आया…..इससे आगे वह कुछ बोल पाता लेकिन तेजतर्रार और मोटी चमड़ी का वह रिपोर्टर तुरंत वहां से अपनी गनमाइक हटा लेता है, उसे दूर कर देता है, माइक अपने थोेबड़े के अपने नथुने के सामने ले आता है और फिर ज्ञान देते लगता है…देखिए, यहां किसान को भर्ती कराया गया है, उसकी हालत नाजुक है. वह बड़ी सफाई से ये छुपाने की कोशिश करता है कि वहां मौजूद लोग नेता और पुलिस के साथ-साथ मीडिया को भी गाली दे रहे हैं. उसको लानत भेज रहे हैं. कैमरे पर सब दिख जाता है लेकिन चालाक रिपोर्टर बड़ी धूर्तता से कहानी का एंगल चेंज करता हैं. वह और उसका चैनल सिर्फ यही सवाल पूछता रहता है कि खुदकुशी के बाद भी केजरीवाल ने रैली क्यों जारी रखी. इस बात का जवाब वे नहीं देना चाहते कि मीडिया वालों में से कोई उस गरीब किसान को बचाने आगे क्यों नहीं आया??!!!

अब बात जरा राजनेताओं की. किसान की खुदकुशी के बाद करीब डेढ़ घंटे तक अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की रैली चलती रही. अरविंद, मनीष, विश्वास, सबने भाषण दिया. मोदी पर जुबानी हमले हुए. और जब -गुप्तचरों- ने ये बताया कि किसान मर चुका है (ऐसा मेरा अंदाजा है) तभी केजरीवाल एंड कम्पनी उसे देखने की रस्मअदायगी करने अस्पताल पहुंचे.
लेकिन यह क्या!! कांग्रेस नेता और राहुल गांधी के हनुमान, अजय माकन तो केजरीवाल से भी पहले किसान को देखने अस्पताल पहुंच चुके हैं. कह रहे हैं कि राजनीति नहीं करनी मुझे, बहुत दुखी हूं लेकिन कर वही सब रहे हैं, जो राजनीति को शोभा देता है. कुछ ही देर में आकाधिराज राहुल गांधी भी अप्रताशित रूप से किसान को देखने अस्पताल पहुंच जाते हैं. मीडिया से बात करते हैं, बोलने को उनके पास कुछ नहीं है, लड़खड़ाते हैं और फिर संभलकर बहुत ही बचकानी बात कह जाते हैं. किसान की लाश पर राजनीति करने की कोशिश करते राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस और इसका कार्यकर्ता हरसंभव मदद करेगा मृतक की. जरूरत पड़ी तो हम लाश को पहुंचाने का भी बंदोबस्त कर देंगे.

Advertisement. Scroll to continue reading.

जरा सोचिए. देश का भावी सरताज इसी बात से गदगद हुआ जा रहा है कि लाश को उसके घरवालों तक पहुंचवा देंगे. कितना महान और धार्मिक कार्य किया आपने राहुल गांधी जी. मुझे इंतजार रहेगा कि आप देश के प्रधानमंत्री कब बनते हैं !! लगता है कि इस देश की अभी और दुर्दशा होनी बाकी है !!! उधर सचिन पायलट भी कैमरे के सामने किसान की मौत पर दुख जताने लगते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह मामले की जांच के आदेश दे देते हैं. अभी और नेताओं के बयान आने हैं, आ रहे होंगे. और सब के सब वही करेंगे. किसान की लाश पर राजनीति.

तीसरी और आखिरी बात दिल्ली पुलिस की. उसके बारे में क्या कहना. मुशी प्रेमचंद ने तो बरसों पहले लिख दिया था—नमक का दारोगा- . यानी ये जो खाकी वर्दी है, वह आपको इस संप्रभु गणराज्य में शरीर पर सितारे लगाकर बिना जवाबदेही के बहुत कुछ करने की आजादी देता है. कानून के रखवालों के सामने कानून का बलात्कार हुआ और वे मूकदर्शक बने देखते रहे. अब मंत्री जी जांच कराएंगे तो पता चलेगा कि कहां और किसने गलती की!! मतलब विभाग के कबाड़खाने की शोभा बढ़ाने एक और फाइल जाएगी. जांच चलती रहेगी, तब तक मामला ठंडा हो जाएगा. फिर कौन पूछता है कि कब-क्या हुआ??!! चलने दीजिए, ये देश ऐसे ही चलता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

फिलहाल तो पीपली लाइव के इस असली खूनी खेल में मीडिया के दोनों हाथ में लड़डू हैं और सिर कड़ाही में. आज रात देखिएगा, कैसे-कैसे शो बनेंगे. मोदी भक्त टीवी चैनल किसान की खुदकुशी के बहाने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर सवाल उठाएंगे कि बताइए, वहां किसान मर रहा था और ये हैं कि रैली चला रहे थे.!!! उन्हें किसी के जान की परवाह नहीं थी…वगैरह-वगैरह.

ऐसे कूढ़मगजों, हड़़ी चाटने वालों और अक्ल के दुश्मन मीडिया वालों से मेरा भी एक सवाल रहेगा. याद कीजिए लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के गांधी मैदान में बीजेपी की एक विशाल रैली थी. तभी वहां बम धमाके होते हैं. रैली में भगदड़ मच जाती है. टीवी पर बम धमाके के दृश्य दिखाए जा रहे हैं. किसी को नहीं मालूम कि किस पल और कहां अगला धमाका हो सकता है. हजारों-लाखों लोगों की जान को खतरा है लेकिन अलग चाल-चरित्र और चेहरे का दावा करने वाली पार्टी बीजेपी और इसके नेता रैली में आए लोगों की जान की परवाह किए बिना रैली को जारी रखते हैं. अरविंद केजरीवाल की ही तरह वे भी रैली खत्म करके, भाषणबाजी पूरी करके ही दम लेते हैं. उस रैली को बीजेपी के नरेंद्र मोदी सम्बोधित करते हैं और संवेदनहीनता की हद तो ये हो जाती है कि बम धमाकों के बाद अपने भाषण में वे इन धमाकों के जिक्र भी नहीं करते !! बाद में पूछने पर बीजेपी के नेता ये कुतर्क देते हैं कि बम धमाके हों या कुछ भी हो जाए, हम आतंकवाद के सामने नहीं झुकेंगे. अरे भैया, आतंकवाद के सामने मत झुकिए लेकिन अपनी रैली को सफल बनाने के लिए हजारों मासूमों की जान को बम धमाकों के हवाले तो मत कीजिए.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुझे याद है. तब किसी मीडिया चैनल ने बीजेपी और उसके नेताओं पर ये सवाल नहीं उठाया कि बम धमाकों के बीच उन्होंने अपनी रैली क्यो जारी रखी??!! आज जो सवाल उठा रहे हैं कि किसान की जान से बढ़कर रैली थी, वो उस वक्त क्यों चुप थे??!! इसका कोई जवाब है उनके पास???

मित्तरों-दोस्तों !!! मतलब साफ है. किसान की खुदकुशी और मौत तो बस बहाना है. मीडिया हो, राजनेता हो या फिर प्रशासन. सबके अपने-अपने एजेंडे हैं, अपने-अपने स्वार्थ हैं और अपना-अपना खेमा है. सो सब के सब उसी के मुताबिक बर्ताव कर रहे हैं. और करते रहेंगे. किसानों की फिक्र किसे हैं.?? ईमानदारी से कहूं तो किसी को नहीं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेकिन एक बात जान लीजिएगा शासकों !!! जिस भी दिन जनता के सब्र का बांध टूटा तो वह सबको सड़क पर लाकर अपना हिसाब बराबर कर लेगी. इतिहास उठाकर देखने की जरूरत नहीं है, नजर घुमाकर देख लीजिए कि दुनिया के किन-किन देशों में सताई जनता ने क्या-क्या किया.

खबर का ये लिंक प्रधानसेवक, बीजेपी के अंधभक्तों और मीडिया के उस धड़े के लिए जो selective होकर सवाल उठाते हैं. देखिए, पढ़िए और जानिए कि जब पटना के गांधी मैदान में तत्कालीन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी की रैली थी, वहां धमाके हुए तब बीजेपी और नरेंद्र भाई मोदी ने क्या किया. किस तरह सबकुछ ताक पर रखके उन्होंने रैली जारी रखी. http://www.theguardian.com/world/2013/oct/27/india-bomb-blasts-bjp-rally-patna

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक नदीम एस. अख्तर युवा और तेज-तर्रार पत्रकार हैं. इन दिनों आईआईएमसी में अध्यापन कार्य से जुड़े हैं.


इसे भी पढ़ें…

Advertisement. Scroll to continue reading.

किसान की खुदकुशी और बाजारू मीडिया : कब तक जनता को भ्रमित करते रहोगे टीआरपीखोर चोट्टों….

xxx

‘आप’ की प्री-प्लांड स्क्रिप्ट थी गजेंद्र का पेड़ पर चढ़ना और फंदे से लटकना!

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement