आज का दैनिक
भवानी प्रसाद मिश्र
‘देना अखबार देना’
साथी ने बिना कुछ बोले पढ़ना बंद करके
हिन्दी का दैनिक वह,
मुझ तक बढ़ा दिया।
पहले ही नज़र जो पड़ी
देखा रणचंडी पर
किसी भक्त दल ने
आज सहस्रों को चढ़ा दिया।
पन्ना उलटकर देखा
उसमें भी लिखा था,
मरने का, मारने का
जीतने का, हारने का
करुणाहीन स्वर में
कहीं धमकी थी मारने की
और यदि शरण में आओ
शेखी थी, तारने की
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