आज का दैनिक भवानी प्रसाद मिश्र
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सलिल सरोज की रचना पढ़ें- ”क़त्ल हुआ और यह शहर सोता रहा…”
क़त्ल हुआ और यह शहर सोता रहा अपनी बेबसी पर दिन-रात रोता रहा ।।1।।
दुनिया को मैं चश्मे के नंबरों से मापता हूं…
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राज कुमार सिंह की दो कविताएं ‘इंडिया इनसाइड’ मैग्जीन की साहित्य वार्षिकी-2018 में प्रकाशित हुई हैं. एक पत्रकार जो हर पल समाज, समय और सत्ता पर नज़र रखता है, उन्हें वह खबरों के जरिए तो उकेरता लिखता ही है, जो कुछ छूट जाता है, बच जाता है, अंतस में, उसे वह …
पहले तो तू मेरी आँखों का पानी भी पढ़ लेता था….
-सलिल सरोज- क्या हुआ ऐसा कि इस कदर बदल गया है तू पहले तू मेरी आँखों का पानी भी पढ़ लेता था
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम की लिखी कविता सोशल मीडिया पर हो रही है वायरल, आप भी पढ़ें
कविता मैंने कभी लिखी नहीं . पता नहीं कुछ मिनटों पहले मन की बेचैनियों से कुछ लाइनें निकली हैं .. ये जीवन की पहली अ-कविता है जो चंद क्षणों में मन से मोबाइल पर उतर कर यूँ आकार लेती गई….
बेहतर समाज के स्वप्न रचती सुभाष राय की कविताएं
सुभाष राय की कविताएं सच और सलीब दोनों की सही-सही पहचान करती हैं ।पोस्ट ट्रुथ के इस दौर में जहाँ सच और झूठ को अलगाना एक बड़ी चुनौती बन गया है, कवि की दृष्टि, सरोकार, वैचारिक दृढता और उनका पत्रकारीय व्यक्तित्व मिलजुल कर उस मनोगतिकी का निर्माण करते हैं जो झूठ पर चढ़ी सच सी …
महिला दिवस के मौके पर अष्टभुजा शुक्ल जी की ये कविता सुनें
Yashwant Singh : महिला दिवस नजदीक है… ‘यह नाटक नहीं चलेगा’- यह वो कविता है जो पुरुष प्रधान इस समाज के ताने-बाने को ललकारती है. इसे रचा और सुनाया जाने-माने वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल जी ने. कविता पाठ उनने डुमरियागंज में पूर्वांचल साहित्य महोत्सव के दरम्यान किया. कविता की कुछ लाइनें नीचे दे रहा हूं… लेकिन असली आनंद अष्टभुजा जी के मुंह से सुनने में आएगा.
भगवान स्वरूप कटियार के कविता संग्रह “अपने-अपने उपनिवेश” का लोकार्पण
करुणा, प्रेम को वापस लाते हैं भगवान स्वरूप कटियार, नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में मायामृग और मदन कश्यप का काव्यपाठ
लखनऊ। प्रेम नफरत के विरुद्ध युद्ध है। भगवान स्वरूप कटियार अंधे प्रेम के नहीं आंख वाले प्रेम के कवि हैं। उनकी कविताओं के संदर्भ कविता के अन्दर नहीं बाहर है। उनकी कविताओं में जो प्रेम है वह निश्छल प्रेम है। यह मनुष्यता के प्रति प्रेम है। यहां जटिल मनोभावों की सरल अभिव्यक्ति है। जटिलताओं को सरल शब्दों में कहा गया है। जब कटियार जी कहते हैं कि दोस्ती से बड़ी विचारधारा नहीं होती तो वे उस विचारधारा को ही प्रतिष्ठित करते हैं जो बेहतर इंसानी दुनिया को बनाने की है। सबके अपने-अपने उपनिवेश हैं। हम जहां निवेश करते हैं, वहीं उपनिवेश बना लेते हैं। कटियार जी जैसा कवि बार-बार सचेत करता है। हमें देखना होगा कि हमारे भीतर तो कोई उपनिवेश नहीं खड़ा हो रहा है। अगर खड़ा हो रहा है तो उसे ढहाना होगा।
चर्चित युवा कवि डॉ. अजीत का पहला संग्रह ‘तुम उदास करते हो कवि’ छप कर आया, जरूर पढ़ें
डॉ. अजीत तोमर
किसी भी लिखने वाले के लिए सबसे मुश्किल होता है अपनी किसी चीज़ के बारे में लिखना क्योंकि एक समय के बाद लिखी हुई चीज़ अपनी नहीं रह जाती है. वह पाठकों के जीवन और स्मृतियों का हिस्सा बन जाती है. जिस दुनिया से मैं आता हूँ वहां कला, कल्पना और कविता की गुंजाईश हमेशा से थोड़ी कम रही है. मगर अस्तित्व का अपना एक विचित्र नियोजन होता है और जब आप खुद उस पर भरोसा करने लगते हैं तो वो आपको अक्सर चमत्कृत करता है. औपचारिक रूप से अपने जीवन के एक ऐसे ही चमत्कार को आज आपके साथ सांझा कर रहा हूँ.
जिंदगी बनाम कमीशन : गोरखपुर की घटना पर एक कविता
गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में आक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत से शोकग्रस्त मन कल (12 अगस्त) सो न सका उन मासूम बच्चों की आवाज मेरे कानों गूंजती रही, एक कविता शहीद बच्चों को श्रद्धाजंलि…
प्रताप सोमवंशी के सौ शेर : एक पत्रकार का शायर बन जाना…
अम्मा भी अखबार के जैसी रोज सुबह
पन्ना-पन्ना घर भर में बंट जाती हैं
ये दो लाइनें किसी का भी मन बरबस अपनी ओर खींचने को काफी हैं। कितनी गहराई है इन दो लाइनों में। कोई गंभीर पत्रकार जब शायर या गज़लकार के रूप में सामने आता है तो कुछ ऐसे ही गजब ढाता है। गजल, शायरी में अपनी अलग किस्म की पहचान रखने वाले प्रताप सोमवंशी के सौ शेर प्रकाशित हुए हैं।
मजीठिया वीरों को समर्पित बरेली के मजीठिया क्रांतिकारी मनोज शर्मा एडवोकेट की कविता
अब जीत न्याय की होगी…
-मनोज शर्मा एडवोकेट-
आ गया समय निकट अब जीत न्याय की होगी
इतिहास में दर्ज कहानी मजीठिया वीरों की होगी
मुश्किलें सहीं पर अन्याय, अनीति के आगे झुके नहीं
भामाशाहों की घुड़की के आगे कदम कभी रुके नहीं
उनके धैर्य और साहस की गाथा अमर रहेगी
माया बुआ भी सोचतै रहिगै बबुआ के संग होरी खेलब…
आवा हो भइया होली मनाई
अब तो गावन कै लड़िका भी पप्पू टीपू जानि गएन,
‘यूपी को ये साथ पसन्द है’ ऐह जुम्ला का वो नकार दहेन,
माया बुआ भी सोचतै रहिगै बबुआ के संग होरी खेलब,
पर ‘मुल्ला यम ‘ कै साइकिलिया का लउड़ै हवा निकार देहेन,
बूढ़ी हाथी बैठ गई और साइकिल भी पंचर होइ गै,
जिद्दी दूनौ लड़िकै मिलिके माया मुलायम कै रंग अड़ाय गै,
राजनीति छोड़ा हो ननकऊ आवा हम सब गुलाल लगाई,
फगुनाहट कै गउनई गाय के आवा हो भइया होली मनाई,
पिता के मर जाने पर मनुष्य के अंदर का पिता डर जाता है…
पिता पर डॉ. अजित तोमर की चार कविताएं
1.
पिता की मृत्यु पर
जब खुल कर नही रोया मैं
और एकांत में दहाड़ कर कहा मौत से
अभी देर से आना था तुम्हें
उस वक्त मिला
पिता की आत्मा को मोक्ष।
***
अपने मित्र Amitabh Thakur की ये फोटो मुझे बहुत पसंद है…
अपने मित्र Amitabh Thakur की ये फोटो मुझे बहुत पसंद है..
जानते हैं क्यों?
इसमें मुझे नए दौर का एक ऐसा डिजिटल हीरो दिखता है
जो अपने चश्मे में पूरा ब्रह्मांड समेटे है
रमाशंकर यादव उर्फ विद्रोही जी की एक कविता ‘पुरखे’
पुरखे
नदी किनारे, सागर तीरे,
पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी,
बना बावला सूंघ रहा हूं,
मैं अपने पुरखों की माटी।
”कविता: 16 मई के बाद” का दूसरा चरण: लुधियाना, कानपुर और बिहार-झारखंड
अभिषेक श्रीवास्तव : देश में सत्ता परिवर्तन की पहली सालगिरह के मौके पर बीती 17 मई को हमने राष्ट्रीय स्तर का एक आयोजन दिल्ली में करवाने में कामयाबी हासिल की है। इस बीच दो महीनों के दौरान कुछ तो मौसम और कुछ तकनीकी दिक्कतों के चलते ”कविता: 16 मई के बाद” के आयोजन नहीं हो सके, लेकिन हमें बताते हुए खुशी हो रही है कि जनता को कविता से जोड़ने की यह मुहिम एक बार फिर अपने पूरे उत्साह और ऊर्जा के साथ शुरू होने जा रही है।
आलोक धन्वा की सुप्रसिद्ध कविता पढ़िए… ”भागी हुई लड़कियां”
भागी हुई लड़कियां
-आलोक धन्वा-
एक
घर की जंजीरें
कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती है
क्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थी
जब भी कोई लड़की घर से भगती थी?
बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट
महज आंखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी?
और वे तमाम गाने रजतपरदों पर दीवानगी के
आज अपने ही घर में सच निकले!
क्या तुम यह सोचते थे
कि वे गाने महज अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए
रचे गए?
और वह खतरनाक अभिनय
लैला के ध्वंस का
जो मंच से अटूट उठता हुआ
दर्शकों की निजी जिन्दगियों में फैल जाता था?
कॉरपोरेट हमले के खिलाफ एकजुट हुए लेखक, संस्कृतिकर्मी और पत्रकार
नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले साल केंद्र की सत्ता में आयी एनडीए सरकार को साल भर पूरा होते-होते साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र भी अब उसके विरोध में एकजुट होने लगा है। बीते रविवार इसकी एक ऐतिहासिक बानगी दिल्ली में देखने को मिली जब दस हिंदीभाषी राज्यों से आए लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, कवियों और पत्रकारों ने एक स्वर में कॉरपोरेटीकरण व सांप्रदायिक फासीवाद की राजनीति के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की और अपने-अपने इलाकों में भाजपा-आरएसएस द्वारा फैलायी जा रही अपसंस्कृति के खिलाफ मुहिम चलाने का संकल्प लिया। यहां स्थित इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट में ”16 मई के बाद की बदली परिस्थिति और सांस्कृतिक चुनौतियां” विषय से तीन सत्रों की एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके मुख्य अतिथि बंबई से आए मकबूल फिल्मकार सागर सरहदी थे।
किसान की खुदकुशी पर पाणिनी आनंद की कविता…
Panini Anand : यह नीरो की राजधानी है. एक नहीं, कई नीरो. सबके सब साक्षी हैं, देख रहे हैं, सबके घरों में पुलाव पक रहा है. सत्ता की महक में मौत कहाँ दिखती है. पर मरता हर कोई है. नीरो भी मरा था, ये भूलना नहीं चाहिए.
न्यायपूर्ण आक्रामकता की कविता है ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ : वीरेन डंगवाल
नई दिल्ली : अजय सिंह की कविताएं भारतीय लोकतंत्र की विफलता को पूरी शिद्दत से प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं का मूल स्वर स्त्री, अल्पसंख्यक और दलित है। सांप्रदायिकता से तीव्र घृणा उनकी कविताओं में मुखर होती है। अजय सिंह की कविताओं में दुख है लेकिन बेचारगी नहीं। जूझने की कविता है अजय की कविता। यह बातें शनिवार को वरिष्ठ कवि, पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह के पहले कविता संग्रह ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ पर चर्चा के दौरान सामने आईं। गुलमोहर किताब द्वारा दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में कवि, लेखक, पत्रकार, आलोचक, चित्रकार, प्राध्यापक व तमाम विधाओं के वरिष्ठ लोगों ने शिरकत की।
सरोज सिंह के पहले कविता संग्रह ‘तुम तो आकाश हो’ का लोकार्पण
8 फरवरी 2015 को इंदिरापुरम, ग़ाज़ियाबाद में Saroj Singh की काव्यकृति ‘तुम तो आकाश हो’ का विमोचन हुआ। इस किताब का लोकार्पण हिंदी की मूर्धन्य कथाकार मैत्रेयी पुष्पा, दुनिया इन दिनों के प्रधान संपादक सुधीर सक्सेना, कवि सिद्धेश्वर सिंह, संस्कृत की प्राध्यापिका हीरावती सिंह तथा लेखक और साइक्लिस्ट राकेश कुमार सिंह ने किया।
कविता पाठ करती दिखीं एंकर तनु शर्मा
Ankit Sharma : बीते दिनों देश के मशहूर चैनल इंडिया टीवी की पत्रकार तनु शर्मा ने आत्महत्या की कोशिश की थी. उन्होंने इंडिया टीवी प्रबंधन के द्वारा हुए मानसिक शोषण के चलते ये कदम उठाया था लेकिन ईश्वर की कृपा से आज भी वो हमारे बीच हैं, सकुशल हैं… हाल ही में उनको टीवी पर नहीं, लेकिन एक वीडियो में देखा, कविता पाठ करते हुए.
25 नवम्बर नजीर बनारसी की जंयती पर : …हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?
हदों-सरहदों की घेराबन्दी से परे कविता होती है, या यूं कहे आपस की दूरियों को पाटने, दिवारों को गिराने का काम कविता ही करती है। शायर नजीर बनारसी अपनी गजलों, कविताओं के जरिए इसी काम को अंजाम देते रहे है। एक मुकम्मल इंसान और इंसानियत को गढ़ने का काम करने वाली नजीर को इस बात से बेहद रंज था कि…
बनारसी कुल थूकिहन सगरो घुला के मुंह में पान, का ई सुनत बानी अब काशी बन जाई जापान?
आजकल बनारस सुर्खियों में है… बनारस को लेकर रोज कोई न कोई घोषणा सुनने को मिल रही है…. ऐसा होगा बनारस… वैसा होगा बनारस… पर न जाने कैसा होगा बनारस…. सब कुछ भविष्य के गर्भ में है…. पर दीपंकर की कविता में आज के बनारस की तस्वीर है…. दीपंकर भट्टाचार्य कविता लिखते हैं… दीपांकर कविता फैंटसी नहीं रचतीं बल्कि बड़े सीधे और सरल शब्दों में समय के सच को हमारे सामने खड़ा कर देतीं हैं…. दीपांकर के शब्दों का बनारस हमारा-आपका आज का बनारस है जिसे हम जी रहे है… आप भी सुनिए उनकी कविता…