Sanjaya Kumar Singh : कई बार विस्तार प्राप्त कर चुके समाचार एजेंसी पीटीआई के संपादक आखिरकार रिटायर हो रहे हैं और पीटीआई बोर्ड, इस एजेंसी चलाने के लिए प्रशासक नहीं, संपादक तलाश रहा है। इस खबर को पढ़िए आप समझ जाएंगे कि देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी कितनी गंभीरता से चल रही है। इसकी हिन्दी सेवा ‘भाषा’ के संपादक कुमार आनंद हुआ करते थे और उनके इस्तीफा देने के बाद से भाषा के संपादक का भी पद वर्षों से खाली पड़ा है।
दरअसल पीटीआई बोर्ड के सक्रिय न होने के कारण मौजूदा प्रशासक ही सारा काम काज देखते रहे हैं और एक्सटेंशन पर चल रहा व्यक्ति कितना काम करता है और कितनी नौकरी करता है यह सब किसी से छिपा नहीं है। अब पीटीआई बोर्ड अगर किसी निष्पक्ष, पेशेवर को संपादक बनाना चाहता है तो अच्छी बात है और पीटीआई की स्वायत्ता बनी रहे तो देश में मीडिया की आजादी की लौ जलती रह सकती है।
इस खबर में बोर्ड सदस्य के रूप में टाइम्स के विनीत जैन का नाम आना और यह बताया जाना कि संपादक के नियुक्ति के मामले में उन्होंने स्टैंड लिया और फिर उनका ट्वीट कर कहना कि उन्होंने स्टैंड नहीं लिया – बोर्ड के सदस्यों की दशा दिशा भी बताता है।
Om Thanvi : भाजपा की सिफ़्त रही है कि सत्ता के दौर में अपने समर्थक मीडिया में रोप जाए। पीटीआइ में प्रधान संपादक का पद खाली हो रहा है। यह देश की सबसे अहम एजेंसी है। सुनते हैं, अरुण जेटली ने अपने घोड़े दौड़ा दिए। पर इस बार दाल गल नहीं रही। पोल अब पहले ही खुल जाती है।
Mahendra Mishra : सरकार की पीटीआई को जेबी एजेंसी बनाने की कोशिश नाकाम। बोर्ड ने ठुकराए जेटली के सुझाए नाम। इसके साथ ही यह बात भी साफ़ हो गई कि मीडिया पर सरकार की पकड़ ढीली होनी शुरू हो गई है।
Mukesh Kumar : मीडिया में अपने आदमी रोपने का काम काँग्रेसी भी खूब करते हैं, मगर जितने सुनियोजित ढंग से संघ परिवार करता है, वैसा कोई नहीं। मीडिया का भगवाकरण ऐसे ही नहीं हुआ है।
स्रोत : फेसबुक
पूरे मामले को विस्तार से जानने के लिए द वायर डॉट इन पर प्रकाशित मशहूर पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन का आर्टकिल पढ़ें, नीचे क्लिक करें:
In Setback to Jaitley, PTI Board Rebuffs Political Nominees for Editor’s Job