पंजाब केसरी अखबार में पैसे बचाने के लिए एक से बढकर एक नायाब नुस्खे आजमाये जा रहे हैं। जालंधर से प्रकाशित होने वाले पंजाब केसरी ने जब इस बार अपने कर्मियों को दीपावली पर शगुन देने की बात कही तो कर्मचारियों की बांछे खिल गयी। देश भर के कार्यालयों में जब सगुन पहुंचा तो कर्मियों ने समझा कि पता नहीं क्या भेजा है। निकला बाबा जी का ठुल्लू। माजा की बोतल। हो गयी इति श्री। जालंधर कार्यालय से लेकर पूरे देश में पंजाब केसरी के अधिकत न्यूज एजेंटों की संख्या असंख्य है, लेकिन यह दिया भी उन्हीं को दिया गया जो कटिंग के आधार पर कार्य नहीं कर रहे हैं।
अंबाला में कार्य कर रहे एक वरिष्ठ संवाददाता ने बताया कि वह इस बोतल को शौक से परिवार के बीच लेकर गया और शौक से परिवार के बीच बोतल को शेयर किया तो परिवार में संस्थान को लेकर कई तरह की चर्चायें थी। वहीं न्यूज सप्लाई एजेंटों को इस बार भी मायूस होना पड़ा, क्योंकि उनकी गिनती कहीं नही हुई। बताया जाता है कि उत्तर भारत समेत हरियाणा हिमाचल में अधिकांश न्यूज सप्लाई एजेंटों द्वारा समाचारों की सप्लाई बंद कर दी गयी है या बंद करने के कगार पर है। उनकी कटिंग का भुगतान लंबे समय से नहीं हुआ है और वह इसके लिए कई बार पत्राचार कर चुके हैं। अंबाला और जींद के कुछ न्यूज स्पाई एजेंटों का कहना है कि संस्थान ने उन्हें 5 रुपये के माजा की बोतल लायक भी नहीं समझा। इसके कारण इन लोगों में खासा रोष है। एक पान विक्रेता जो कि समाचार भी भेजता है, का कहना है कि माजा मिले न मिले, हमें कमीशन मिल तो जाता है, लेकिन सम्मान भी जरूरी है।
बताया जाता है कि हर राज्य में पंजाब केसरी द्वारा ऐंसे विद्वान लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गयी है जो कि पढाई लिखायी में ढाई आखर नहीं जानते हैं। इनका कार्य अखबार के मालिक जिन्हें बाउ जी कहा जाता है, को इनफारमेशन तथा विज्ञापनों की जानकारियां देना है। वह भी मौके की नजाकत भांपकर न्यूज सप्लाई एजेंटों से त्यौहारों के समय विज्ञापन की वसूली कराने तथा कार्यक्रमों से गिफ्ट मंगाने का कार्य ही करवाते हैं। इसके अलावा सप्लाई एजेंटों को साल में दो बार समाचार बंद कराने की धमकी दी जाती है। अंबाला से एक रिपोर्टर का कहना है कि वह गये तो इंटरव्यू देकर ज्वाइन करने लेकिन उन्हें पहले विज्ञापन खाता खुलाने और अन्य बिजनेस शर्तें बता दी गयी। अब बताओ भाई, हो गयी पऋकारिता। इसी को कहते हैं उंची दुकान और फीके पकवान। वहीं एक ओर न्यूज सप्लाई एजेंट बाय-बाय कह रहे हैं तो दूसरी ओर नये एजेंट तलाश करने में प्रबंधन ने क्षेत्रीय मैनेजरों को लगा दिया है। इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी और रंग मिले चोखा।
देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र जोशी की रिपोर्ट.