दीपांकर पटेल-
दैनिक भास्कर की कोरोना मामले में रिपोर्टिंग करने के लिए खूब तारीफ हुई, लोगों ने कहा दैनिक भास्कर तो तथ्यों के साथ रिपोर्टिंग कर रहा है. भारी वाहवाही हुई.
लेकिन अब देखिए….
दैनिक भास्कर ने ख़बर छापी है कि उज्जैन में राधा-कृष्ण और बलराम तीनों को कोरोना हो गया है.
क्या दैनिक भास्कर को राधा-कृष्ण और बलराम की RTPCR जांच रिपोर्ट मिल गयी है?
क्या इस ख़बर को छापने वाली दैनिक भास्कर टीम के पास उस रिपोर्ट की कॉपी मौजूद है?
क्या इन तीनों के RTPCR रिपोर्ट में पॉजिटिव पाये जाने की पुष्टि हुई है? किस लैब ने सैंपल लिया था. क्या नाक और मुंह से ठीक से सैंपल लिये गये थे?
तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट का क्या मतलब होता है?
दरअसल अंधविश्वास फैलाकर जनता को बेवकूफ बनाए रखना भारत के सवर्णवादी मीडिया का एक वर्चस्ववादी एजेंडा है. उसमें ये अखबार कोई कम्प्रोमाइज नहीं करते.
जब बात अंधविश्वास फैलाकर लोगों को बेवकूफ बनाने की आती है तो पूरी हिंदी मीडिया अंधविश्वास को चमत्कार बताकर चीत्कार करती है.
कारण बहुत सिंपल है भारत में अंधविश्वास एक खास वर्ग के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है, मीडिया में मौजूद उनके भाई बंधु नहीं चाहते की अंधविश्वास और अंधश्रद्धा की कमाई खाने वाले उनके दूसरे भाई बंधुओं का नुकसान हो.
भारत का मीडिया मनुवादी बहुतायत रूप से सवर्णों द्वारा संचालित है, अंधविश्वास और झूठ ही इसका प्रमुख ईंधन है.
इसलिए आस्था के नाम पर झूठ और सिर-पैर विहीन ख़बरों को परोसा जाता है.
जिस वायरस के संक्रमण की वैज्ञानिक विधियों द्वारा पुष्टि हो सकती है, सारी प्रक्रिया सार्वजनिक है. उसकी रिपोर्टिंग में भी अंधविश्वास घुस आया है.
फिर आप कहेंगे दैनिक भास्कर तो तथ्यों के आधार पर रिपोर्टिंग करता है.
मैं क्या करूं, ख़बरें पढ़ना छोड़ दूं.
कल को ये अख़बार किसी के फर्जी दावे के आधार पर लिख देंगे कि भगवान को एड्स हो गया है तो क्या मैं मान लूंगा? क्या इसे मान लेना ठीक होगा?
मेरी ब्रम्हांड के उस पार खड़ी आस्था को बहुत जोर ठेस पहुंच जाएगी. सच्ची बता रहा हूं.