सौमित्र रॉय-
राहुल बजाज को कैसे याद करूं? साथ में बजाज जुड़ा है तो स्कूटर से बेहतर और क्या यादें हो सकती हैं?
वाकई, वह बुलंद भारत था और उसकी इकलौती तस्वीर थी- बजाज स्कूटर पर सवार पूरा परिवार। इस स्कूटर ने पूरे भारत को धर्म, जाति, सम्प्रदाय से परे एक सूत्र में पिरो दिया।
तब लगता था कि देश वाकई तरक्की कर रहा है। कुल जमा 10 साल का था, जब रायपुर में बगल के तीसरे मकान में टिकरिहाजी के “सपनों की उड़ान” को साकार होते देखकर हमारी अम्मा ने भी ज़िद पकड़ ली थी कि स्कूटर आकर ही रहेगा।
पिताजी ने भी हार मानकर बुकिंग करवा ली। तब बजाज स्कूटर की महीनों लंबी बुकिंग चलती थी।
7 महीने के लंबे इंतज़ार और अम्मा के कई उपवास, कीर्तन और मन्नतों के बाद एक दिन पिताजी एक हाथ में मछली और दूसरे में रसगुल्ला लेकर घर लौटे।
अम्मा हैरान। मुस्कुराते हुए उन्होंने अम्मा के हाथों स्कूटर के कागज़ रख दिये। फिर क्या था- अम्मा को पहली बार पिताजी पर फ़क्र करते पाया।
तब हम जैसे मध्यमवर्ग के लोग छोटे-छोटे ख़्वाब देखा करते थे। अब वे सनीमा, बाजार, रेस्टोरेंट और गांव तक लांग ड्राइव में तब्दील होने लगे।
सबसे आगे मैं, फिर पिताजी और पीछे अम्मा और दीदी सब चल पड़ते। पिताजी की डिमांड बढ़ गई थी। घुम्मी के लिए दीदी उनके पैर दबाती, अम्मा पसंद का भोजन और हम उनकी पीठ खुजलाते थे।
राहुल बजाज ने उसी बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर दिखाई थी, जो मेरी पहली फुलटाइम नौकरी के बाद बजाज क्लासिक में बदली।
राहुल बजाज को याद करें तो उनके दादा और गाँधीजी के प्रिय जमनालाल बजाज को भी न भूलें।
राहुल सत्ता के आगे कभी नहीं झुके। परिवार के जीन्स और बंगाल में पैदाइश का असर कहें या उनकी ख़ुद्दारी, गलत को गलत कहना उनके स्वभाव में रहा।
आज की पीढ़ी को लाखों की हायाबूसा पर हवाई सफ़र करते हुए उन सपनों का शायद ही अहसास होता होगा, जो मुझे पिताजी की बजाज स्कूटर को बिना नागा सुबह धोते/ पोंछते हुआ करता था।
क्या करें। बजाज अकेला ही तो था। हमारे सपनों की तामील करने वाला।
राहुल बजाज भी सत्ता के सामने रीढ़ सीधी रखने वाले अकेले उद्योगपति थे। उनकी कमी हमेशा खलेगी।
नमन। श्रद्धांजलि।
योगेश गर्ग-
किसी मंच पर अगर गृह मंत्री अमित शाह , वित्त मंत्री निर्मला रमण , और रेल मंत्री पीयूष गोयल बैठे हों,
लाइव टेलीकास्ट हो रहा हो और अचानक से एक शख्स अपनी कुरसी से उठ कर ये कह दे कि ….
‘आप लोगों से डर लगता है कि कब क्या हो जाय ? जब यूपीए सरकार थी तो चाहे सरकार को कुछ भी कह लो डर नही लगता था। आज सभी डरे हुए हैं, हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, वो ठीक नही है !
आपको अच्छा तो नही लगेगा लेकिन मैं बता रहा हूं कि मैं जब पैदा हुआ था तो मेरा नाम ‘राहुल ‘ पंडित नेहरू ने ही रखा था । ‘ कैसे मर सकते हैं बापू या नेहरु?
ये बात सभी के सामने कहने की हिम्मत बस राहुल बजाज ने की थी। जो आज हम सबको छोड़ कर चले गये….
हमारा बजाज
प्यारा बजाज !!
उर्मिलेश-
देश के बड़े उद्योगपति और पूर्व सांसद राहुल बजाज का 83 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया. संभवतः वह देश के एक मात्र ऐसे बडे उद्योगपति थे, जो बीते पौने आठ साल के दौरान मौजूदा सत्ता के आगे कभी झुके नहीं! यही नहीं, उन्होंने और उनके सुपुत्र राजीव बजाज ने देश के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना का साहस भी दिखाया.
राजीव बजाज ने तो कई मौकों पर कोविड से निपटने की मोदी सरकार की रणनीति की धज्जियां उड़ाई!
राहुल बजाज का बजाज ग्रुप देश का एक पुराना और प्रतिष्ठित उद्योग समूह माना जाता है. इसकी स्थापना राहुल जी के दादा जमनालाल बजाज ने की थी. जमनालाल जी बड़े उद्योगपति के अलावा महात्मा गाँधी के अत्यंत निकटस्थ थे. वह एक सक्रिय स्वाधीनता सेनानी भी थे. राहुल बजाज के स्वामित्व वाले ‘बजाज आटो’ ने अपने बजाज स्कूटरों से भारतीय मध्यवर्ग को उसकी अपनी निजी सवारी दी थी. दशकों तक स्कूटर का मतलब बजाज रहा.
उद्योगपतियों और धनपतियों से मेरा ज्यादा मिलना-जुलना नही होता. पर राहुल जी उन चंद अपवादों में थे, जिनसे मेरा सामान्य सा औपचारिक परिचय था. संसद के केंद्रीय कक्ष में उनसे मेरा परिचय उस समय हुआ, जब वह राज्यसभा के सदस्य थे. वह चाय-काफ़ी के लिए केंद्रीय कक्ष में अक्सर आया करते थे.
मैने देखा, उनमें किसी तरह का श्रेष्ठता-बोध या बड़ा उद्योगपति होने का घमंड नही था. अन्य सांसदों के अलावा वह संसद ‘कवर’ करने वाले पत्रकारों से भी खूब घुल-मिल कर बातें करते थे. दिवंगत को सादर श्रद्धांजलि और परिवार के प्रति हमारी शोक संवेदना.
अनिमेष मुखर्जी-
बजाज स्कूटर के विज्ञापन की खास बात थी कि इसमें स्कूटर की तारीफ़ कहीं नहीं होती थी. बस एक लाइन कही जाती थी, ‘हमारा बजाज’.
बजाज पल्सर का पहला विज्ञापन था ‘इट्स अ बॉय’. ‘देती कितना है’ का सवाल पूछने वाले मिडल क्लास में पल्सर रखना टशन बन गया. धूम ने नौजवानों में बाइक का क्रेज़ पैदा किया, लेकिन उसे मिडिल क्लास की चादर में सबसे पुख्ता तरीके से पल्सर लेकर आई. भारत के मोटरसाइकिल युग को दो हिस्सों में बाँट सकते हैैं, पल्सर आने से पहले और पल्सर आने के बाद.
नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस में बिना सैलरी वाले प्रोफ़ेशनल्स (उदाहरण के लिए डॉक्टर) को फ़ाइनेंस की सुविधा देने की शुरुआत बजाज फ़ाइनेंस ने की. इसकी सफ़लता का अंदाज़ा यह सोचकर लगाइए कि अगर आपने 2009 में इसके शेयर में 1 लाख लगाए होते, तो आज आपके पास 2-3 करोड़ की रकम होती.
बजाज और टाटा उन लोगों में से हैं जिन्होंने भारतीय मानसिकता को बहुत अच्छे से समझा है. ऐसा नहीं है कि ये लोग संत थे और सिर्फ़ समाज की भलाई के लिए ही काम करते थे. हाँ, आज के बंदरबाँट से कहीं बेहतर स्थिति थी. आज़ादी के बाद का एक खास तरह का पीपीपी मॉडल था जो आने वाले समय में नहीं दिखने वाला. इसलिए राहुल बजाज को नमन.