केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भाजपा के जाने-माने कार्यकर्ता को एडिशनल पर्सनल असिस्टैंट बना लिया!

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Sanjaya Kumar Singh-

चुनाव के समय राज्यपाल की यह सक्रियता सामान्य है?

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भाजपा के जाने-माने कार्यकर्ता को एडिशनल पर्सनल असिस्टैंट बना लिया। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि राजनीतिक दलों के सक्रिय कार्यकर्ता को राज्यपाल के स्टाफ में रखने का रिवाज नहीं है – तो बुरा मान गए। वैसे तो सिफारिश के अनुसार नियुक्ति कर दी गई थी लेकिन सरकारी पत्र में कहा गया था, “राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल लोगों या उन्हें जो राजनीतिक दलों से जुड़े हैं अथवा राजनीतिक दल से संबंध रखने वाले संगठनों से जुड़े लोगों को राजभवन में नियुक्त करने का कोई पुराना मामला नहीं है और यह अपेक्षित है कि लागू नियमों का पालन किया जाए।”

संबंधित आदेश में कहा गया था कि सरकार ने प्रस्ताव को स्वीकार किया कर लिया है क्योंकि राज्यपाल ने ऐसी इच्छा जताई थी। राज्य सरकार के निर्णय से संबंधित यह चिट्ठी एक आईएएस अधिकारी जो लोक प्रशासन सचिव भी थे के हस्ताक्षर से जारी हुई थी और राजभवन में जमा कराई गई थी। बाद में एक मौके पर राज्यपाल ने शर्त रखी कि सरकार उपरोक्त चिट्ठी जारी करने वाले अधिकारी को पद से हटाए। यह शर्त पूरी होने के बाद राज्यपाल विधानसभा को संबोधित करने के लिए तैयार हुए। यह जानकारी द टेलीग्राफ की खबर के आधार पर है।

अंग्रेजी में मुझे यह खबर गूगल करने पर नहीं मिली। कई बार अखबारों की खबरें गूगल पर देर से आती हैं। टेलीग्राफ में पढ़ते हुए ख्याल आया कि इस तरह की नियुक्तियों से प्रचारकों को सरकारी खर्च मिलता है और ऐसे लोग चुनाव में आरिफ मोहम्मद खान जैसे गवरनर के एडिशनल पर्सनल असिस्टैंट होने के रूप में परिचय भर दें तो वर्ग विशेष में उसका सकारात्मक असर हो सकता है। सुदूर केरल में उत्तर प्रदेश के आरिफ मोहम्मद खान कई साल से राज्यपाल हैं – चुनाव के समय याद दिलाने का भी असर होगा। और शायद ऐसी ही सोच के कारण आज मुझे आरिफ साहब से संबंधित कम से कम तीन खबरें तो दिखी हीं।

ये खबरें हैं, इंडिया टीवी डॉट इन पर, अभिभाषण में केंद्र पर बरसे केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान, विपक्ष ने किया हंगामा। ऊपर बता चुका हूं कि इस भाषण को पढ़ने के लिए राज्यपाल ने क्या सौदा किया इसलिए शीर्षक पर मत जाइए। राज्यपाल जो कर रहे हैं उसे इस खबर के उपशीर्षक से समझिए – कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ ने राज्यपाल और सीपीएम के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के बीच ‘गठजोड़’ का आरोप लगाते हुए सदन से बहिर्गमन कर दिया। दूसरी खबर हिन्दुस्तान की है – केरल विधानसभा में आरिफ मोहम्मद खान का विरोध, विपक्ष ने लगाए ‘राज्यपाल वापस जाओ’ के नारे।

तीसरी खबर उत्तर प्रदेश में खूब बिकने वाले अमर उजाला की है और शीर्षक है, केरल : राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सरकार पर साधा निशाना, कहा- राजभवन को नियंत्रित करने का उसके पास कोई अधिकार नहीं। केरल में हिन्दी मीडिया का प्रतिनिधित्व क्या और कैसा है, बताने की जरूरत नहीं है। ऐसे में खबर का स्रोत और उसकी प्रस्तुति चुनाव के समय गौर करने लायक है। अमर उजाला की यह खबर ‘न्यूज डेस्क’ की है। द टेलीग्राफ की खबर से अलग, अमर उजाला ने बताया है, राज्यपाल ने कहा, मैं यहां प्रशासन चलाने के लिए नहीं हूं। मैं यहां यह सुनिश्चित करने के लिए हूं कि सरकार का कामकाज संविधान के प्रावधानों और संवैधानिक नैतिकता के अनुसार हो। उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि सरकार के मंत्री केरल के लोगो के पैसे का दुरुपयोग कर रहे हैं। और उत्तर प्रदेश में नहीं हो रहा है? पर वह मुद्दा नहीं है।

गूगल पर कुछ दिन पहले, पोस्ट किए गए राज्यपाल से संबंधित यू-ट्यूब के कुछ वीडियो के लिंक दिख रहे हैं जो कर्नाटक के हिजाब विवाद पर हैं। एक सीएनएन न्यूज 18 का लाइव भी है। 50 मिनट का एक वीडियो इंडिया टीवी का है। यह भी हिजाब विवाद पर है। तीसरा एक स्वतंत्र पत्रकार का है। इसका शीर्षक है, आरिफ मोहम्मद खान ने खतरनाक कम्युनिस्ट मॉडल के बारे में दुनिया को बता दिया। मुझे नहीं पता कम्युनिस्ट मॉडल के बारे में बताने की श्री खान की सुविज्ञता क्या है और वह कम्युनिस्ट शासन वाले केरल का राज्यपाल होने के अनुभव से ही मिला है या कुछ और है पर मैं इतना समझता हूं कि राज्यपाल की ऐसी राजनीतिक सक्रियता अनैतिक है खासकर चुनाव के समय। लेकिन राज्यपाल बनाया हैं तो कीमत भी चुकानी होगी।

कीमत चुकाने पर याद आया, राष्ट्रपति ने पिछले दिनों कहा था कि उनका आयकर बहुत ज्यादा कट जाता है। जो राशि बताई थी वह बहुत ज्यादा थी और कॉरपोरेट भारत में अधिकतम से भी ज्यादा, लगभग दूनी। बचपन में हम सब लोगों ने पढ़ा है कि राष्ट्रपति का वेतन कर मुक्त होता है और उसपर टैक्स नहीं लगता है, उसके बावजूद। तब यह अफवाह उड़ी थी कि संवैधानिक पदों पर नियुक्त लोगों को पार्टी के लिए खर्च (भिन्न तरीकों से) देना होता है और राष्ट्रपति ने जो कहा वह उस कटौती को शामिल करके कहा होगा। मुझे लगा था मामला गंभीर है। कुछ स्पष्टीकरण आएगा पर मीडिया में कुछ दिखा नहीं। मीडिया के लिए यह बना ही नहीं। और जो मुद्दे हैं वह आप देख ही रहे हैं।

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