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मजीठिया वेज बोर्ड : आप भी जानिए हिंदुस्‍तान के 16 कर्मचारियों ने प्रबंधन से समझौते में क्‍या खोया!

साथियों, हिंदुस्‍तान से एक खबर आ रही है जिसकी पुष्टि अभी पूरी तरह से नहीं हो पाई है, परंतु इसे जनहित में साझा किया जाना जरुरी लगा, जिसमें कंपनी, प्रबंधक और बिचौलिये फायदे में रहे!  खबर यह है कि मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपना एरियर मांगने वाले दिल्‍ली व एनसीआर में कार्यरत हिंदुस्‍तान के लगभग 16 साथियों ने प्रबंधन के साथ मात्र 7-8 लाख रुपये में समझौता कर लिया है। साथियों, यहां हमने 7-8 लाख रुपये के साथ मात्र लिखा है, वो इसलिए कि उन साथियों ने 14-15 लाख रुपये का दावा किया था। यानि लगभग 2 करोड़ रुपये की रकम का। ऐसे में समझौता मात्र 1 करोड़ रुपये के आसपास ही कर लिया गया।

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साथियों, हिंदुस्‍तान से एक खबर आ रही है जिसकी पुष्टि अभी पूरी तरह से नहीं हो पाई है, परंतु इसे जनहित में साझा किया जाना जरुरी लगा, जिसमें कंपनी, प्रबंधक और बिचौलिये फायदे में रहे!  खबर यह है कि मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपना एरियर मांगने वाले दिल्‍ली व एनसीआर में कार्यरत हिंदुस्‍तान के लगभग 16 साथियों ने प्रबंधन के साथ मात्र 7-8 लाख रुपये में समझौता कर लिया है। साथियों, यहां हमने 7-8 लाख रुपये के साथ मात्र लिखा है, वो इसलिए कि उन साथियों ने 14-15 लाख रुपये का दावा किया था। यानि लगभग 2 करोड़ रुपये की रकम का। ऐसे में समझौता मात्र 1 करोड़ रुपये के आसपास ही कर लिया गया।

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आप भी जानना चाहेंगे कि यदि ऐसा कोई भी समझौता हुआ है तो इसमें नुकसान किसको हुआ और फायदा किसे हुआ। हमारा मानना है हिंदुस्‍तान प्रबंधन की इस समझौते में पूरी पौ बारह रही और कर्मचारियों को लगभग 1 करोड़ नहीं उससे भी कहीं बड़ा नुकसान हुआ है, जिसे वह समझ नहीं पाए। वहीं, इसमें हिंदुस्‍तान के प्रबंधकों और बिचलौलियों ने भी जरुर मोटी मलाई काटी होगी।

इस समझौते के प्रारुप की हमें कोई जानकारी नहीं है। फि‍र भी हम क्रम से इस समझौते या होने जा रहे समझौते की उन बारिकियों पर रोशनी डालने की कोशिश करेंगे, जिससे कर्मचारियों का नुकसान हुआ है या होने जा रहा है। हो सकता है समझौते का प्रारुप ऐसा हो कि उन कर्मचारियों का नुकसान और बड़ा हो।

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1. एरियर राशि के रुप में सीधे-सीधे 7-8 लाख रुपये (यानि 50 प्रतिशत) का नुकसान।

2. हमारे अनुमान के अनुसार यह नुकसान कहीं और ज्‍यादा है क्‍योंकि उपरोक्‍त कर्मचारियों के एरियर की गणना में कुछ त्रुटियां है जिससे उनका एरियर पहले ही बहुत कम बना है।

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3. प्रत्‍येक कर्मचारी को ग्रेच्‍युटी के रुप में एक बहुत बड़ा नुकसान। कैसे- क्‍योंकि गेच्‍युटी हमेशा अंतिम वेतनमान पर निकाली जाती है। जब मूल वेतनमान से कम पर समझौता किया जाता है तो यह नुकसान होना वाजिब है।

4. पीएफ में भी मोटी रकम का नुकसान। कैसे- मजीठिया के अनुसार सही-सही वेतनमान बनने पर पीएफ की राशि का अंतर ही लाख रुपये से ऊपर हो जाता है।

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5. मजीठिया लागू होने के बाद यदि EL कैश करवाई हों तो उसके अंतर का नुकसान।

6. यदि कोई ओवर टाइम हो तो उसके अं‍तर का नुकसान।

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7. अन्‍य भत्‍ते यदि कोई हैं तो उनका नुकसान।

8. दो साल में एक बार मिलने वाले LTA की रकम का नुकसान।

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9. यदि उनमें से किसी को अंतरिम राहत नहीं मिली हो तो उसके रुप में भी कई लाख का नुकसान।

10. यदि किसी साथी का रात्रि पाली भत्‍ता बनता है तो उसमें औसत 2500 रुपये प्रतिमाह का नुकसान।

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11. ब्‍याज के रुप में मोटी रकम का नुकसान।

साथियों, अवमानना मामले की 19 जुलाई को होने वाली फाइनल हियरिंग से पहले ही सुप्रीम कोर्ट के रुख से डरे हुए हिंदुस्‍तान प्रबंधन से कर्मचारियों द्वारा समझौते की जल्‍दी समझ से परे है। हां, प्रबंधन की जल्‍दी तो समझ में आती है क्‍योंकि वह अवमानना के झेमले से जल्‍द से जल्‍द बाहर निकलना चाहता है। ऐसे में यदि यह कर्मचारी कुछ समय और इंतजार कर लेते तो उन्‍हें 7-8 लाख रुपये की जगह उनकी जायज लाखों रुपये की रकम मिल जाती। यदि उन्‍होंने समझौता करना ही था अपने एरियर की राशि का सही आंकलन लगवाते और उसको लेने पर ही अड़े रहते। अवमानना के झेमले से बाहर निकलने के लिए छटपटा रही कंपनी झकमारकर आपका जायज हक आपको देने पर मजबूर हो जाती और जरुरत पड़ने पर कुछ और मेहरबानी भी कर देती। यदि अभी समझौता पूरी तरह से सिरे नहीं चढ़ा है तो उपरोक्‍त साथियों से निवेदन है कि वह इन तथ्‍यों पर जरुर गौर।

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इसके अलावा एक बात और कहना चाहेंगे कि वेजबोर्ड से संबंधित कोई भी समझौता कर्मचारियों के लिए अधिकतम लाभ की ही बात कहता है। वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 की धारा 13 में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि किसी भी कर्मचारी का वेतन वेजबोर्ड द्वारा तय न्‍यूनतम वेतनमान से किसी भी दशा में कम नहीं होगा। धारा 13 को पढ़कर आप खुद इस बात को समझ जाएंगे।

[Sec. 13- Working journalists entitled to wages at rates not less than those specified in the order – On the coming into operation of an order of the Central Government under section 12, every working journalist shall be entitled to be paid by his employer wages at the rate which shall in no case be less than the rate of wages specified in the order.]

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[धारा 13 श्रमजीवी पत्रकारों का आदेश में विनिर्दिष्‍ट दरों से अन्‍यून दरों पर मजदूरी का हकदार होना– धारा 12 के अधीन केंद्रीय सरकार के आदेश के प्रवर्तन में आने पर, प्रत्‍येक श्रमजीवी पत्रकार इस बात का हकदार होगा कि उसे उसके नियोजक द्वारा उस दर पर मजदूरी दी जाए जो आदेश में विनिर्दिष्‍ट मजदूरी की दर से किसी भी दशा में कम न होगी।]।

वहीं, धारा 16 स्‍पष्‍ट करती है कि यदि आप किसी भी वेजबोर्ड में निर्धारित न्‍यूनतम वेतनमान से ज्‍यादा वेतन प्राप्‍त कर रहे हैं तो यह आपके उस ज्‍यादा वेतन को प्राप्‍त करने के अधिकार की रक्षा करता है। यानि कोई भी करार आपको ज्‍यादा से ज्‍यादा फायदा देने के लिए हो सकता है, नाकि आपको न्‍यूनतम वेतनमान से वंचित करने के लिए।

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Sec 16. Effect of laws and agreements inconsistent with this Act.– (1) The provisions of this Act shall have effect notwithstanding anything inconsistent therewith contained in any other law or in the terms of any award, agreement or contract of service, whether made before or after the commencement of this Act:

Provided that where under any such award, agreement, contract of service or otherwise, a newspaper employee is entitled to benefits in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act, the newspaper employee shall continue to be entitled to the more favourable benefits in respect of that matter, notwithstanding that he receives benefits in respect of other matters under this Act.

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(2) Nothing contained in this Act shall be construed to preclude any newspaper employee from entering into an agreement with an employer for granting him rights or privileges in respect of any matter which are more favourable to him than those to which he would be entitled under this Act.

धारा 16- इस अधिनियम से असंगत विधियों और करारों का प्रभाव– (1) इस अधिनियम के उपबन्‍ध, किसी अन्‍य विधि में या इस अधिनियम के प्रारम्‍भ से पूर्व या पश्‍चात् किए गए किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के निबंधनों में अन्‍तर्विष्‍ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे :

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परन्‍तु जहां समाचारपत्र कर्मचारी ऐसे किसी अधिनिर्णय, करार या सेवा संविदा के अधीन या अन्‍यथा, किसी विषय के संबंध में ऐसे फायदों का हकदार है जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है तो वह समाचारपत्र कर्मचारी उस विषय के संबंध में उन अधिक अनुकूल फायदों का इस बात के होते हुए भी हकदार बना रहेगा कि वह अन्‍य विषयों के संबंध में फायदे इस अधिनियम के अधीन प्राप्‍त करता है।

(2) इस अधिनियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी समाचारपत्र कर्मचारी को किसी विषय के संबंध में उसके ऐसे अधिकार या विशेषाधिकार जो उसके लिए उनसे अधिक अनुकूल है जिनका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है, अनुदत्‍त कराने के लिए किसी नियोजक के साथ कोई करार करने से रोकती है।

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उपरोक्‍त धाराओं को पढ़कर आप यह तो जान ही गए होंगे कि वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट आपके हितों की रक्षा के लिए बना है और कोई भी ऐसा समझौता जिसमें आपको वेजबोर्ड की सिफारिशों से कम लाभ मिलता है गैरकानूनी है। हम आपसे इतना ही कहना चाहेंगे आप जानकार वकील से जरुर सलाह लें, शायद कोई रास्‍ता निकल आए।

नोट- इस जानकारी को देने का हमारा मकसद मात्र इ‍तना ही है कि यदि आप कभी भी किन्‍हीं भी कारणों से समझौता करने जा रहे हों तो उपरोक्‍त तथ्‍यों को जरुर ध्‍यान में रखें।

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हिंदुस्‍तान समेत सभी अखबारों के बर्खास्‍त, निलंबित, सेवानिवत्‍त या नौकरी बदल चुके साथियों से अनुरोध है कि वे आगे आए और 14 मार्च 2016 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में श्रम कार्यालयों में अपनी रिकवरी लगाएं। क्‍योंकि राज्‍यों के श्रम आयुक्‍तों को जल्‍द ही अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करवानी है।

उपरोक्त पोस्ट एक मीडियाकर्मी ने हिंदुस्‍तान के कुछ साथियों से बातचीत के आधार पर तैयार कर भड़ास को भेजा है. कृपया इसके तथ्यों की अपने स्तर पर जरूर जांच-पड़ताल कर लें.

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