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सुख-दुख

सरकारनामा : राम भरोसे प्रभुजी की रेल (1)

दुनियाभर के सबसे लंबे रेल नेटवर्क में से एक भारतीय रेल के साथ यूँ तो मेरे कई छोटे मोटे सकारात्मक और नकारात्मक अनुभव रहे हैं, लेकिन इस बार का अनुभव कुछ अलग रहा। चार दिन की छुट्टी में तीन दिन न सिर्फ ट्रेन में बीते, बल्कि सरकारी व्यवस्था के कई अन्य पहलुओं से भी अवगत होने का अवसर प्राप्त हुआ।  शुरुआत करते हैं पहले दिन से। शनिवार 23 जनवरी की सुबह आनंद विहार रेलवे स्टेशन से 7 बजकर 30 मिनट पर गाड़ी संख्या 12488, आनंद विहार-जोगबनी सीमांचल सुपरफास्ट एक्सप्रेस के शयनयान श्रेणी में पटना के लिए रवाना हुआ। गाड़ी सही समय से चली और दिन की ट्रेन होने के कारण कोहरे की समस्या भी नहीं थी, जिसे ट्रेन के विलम्ब होने के लिए अक्सर ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।

<p>दुनियाभर के सबसे लंबे रेल नेटवर्क में से एक भारतीय रेल के साथ यूँ तो मेरे कई छोटे मोटे सकारात्मक और नकारात्मक अनुभव रहे हैं, लेकिन इस बार का अनुभव कुछ अलग रहा। चार दिन की छुट्टी में तीन दिन न सिर्फ ट्रेन में बीते, बल्कि सरकारी व्यवस्था के कई अन्य पहलुओं से भी अवगत होने का अवसर प्राप्त हुआ।  शुरुआत करते हैं पहले दिन से। शनिवार 23 जनवरी की सुबह आनंद विहार रेलवे स्टेशन से 7 बजकर 30 मिनट पर गाड़ी संख्या 12488, आनंद विहार-जोगबनी सीमांचल सुपरफास्ट एक्सप्रेस के शयनयान श्रेणी में पटना के लिए रवाना हुआ। गाड़ी सही समय से चली और दिन की ट्रेन होने के कारण कोहरे की समस्या भी नहीं थी, जिसे ट्रेन के विलम्ब होने के लिए अक्सर ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।</p>

दुनियाभर के सबसे लंबे रेल नेटवर्क में से एक भारतीय रेल के साथ यूँ तो मेरे कई छोटे मोटे सकारात्मक और नकारात्मक अनुभव रहे हैं, लेकिन इस बार का अनुभव कुछ अलग रहा। चार दिन की छुट्टी में तीन दिन न सिर्फ ट्रेन में बीते, बल्कि सरकारी व्यवस्था के कई अन्य पहलुओं से भी अवगत होने का अवसर प्राप्त हुआ।  शुरुआत करते हैं पहले दिन से। शनिवार 23 जनवरी की सुबह आनंद विहार रेलवे स्टेशन से 7 बजकर 30 मिनट पर गाड़ी संख्या 12488, आनंद विहार-जोगबनी सीमांचल सुपरफास्ट एक्सप्रेस के शयनयान श्रेणी में पटना के लिए रवाना हुआ। गाड़ी सही समय से चली और दिन की ट्रेन होने के कारण कोहरे की समस्या भी नहीं थी, जिसे ट्रेन के विलम्ब होने के लिए अक्सर ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।

ट्रेन के पटना पहुँचने का सही समय रात्रि लगभग 11 बजे है। परंतु सुपरफास्ट ट्रेन का दर्ज़ा होने के बावज़ूद इस ट्रेन को सवारी गाड़ी (पैसेंजर ट्रेन) की तरह चलाया गया। न सिर्फ सभी स्टेशनों, बल्कि बिना किसी स्टेशन के भी ट्रेन को घंटों रोका गया। इतनी लंबी दूरी की ट्रेन में पैंट्री कार नहीं होने से यात्रियों को भूख से बिलबिलाना पड़ रहा था। रात के लगभग आठ बजे जैसे ही ट्रेन कानपुर स्टेशन पर रुकी, अधिकतर यात्री ट्रेन से उतरकर स्टेशन पर उपलब्ध खानपान सेवा के स्टालों की तरफ भागे। प्लेटफार्म पर अफरातफरी का माहौल था। खानपान सेवा के स्टालों पर मनमाना दाम वसूला जा रहा था और भूखे यात्री मजबूरन ज़्यादा दाम चुकाकर खाद्य सामग्री खरीद रहे थे।

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खैर, जब वहां से ट्रेन खुली तो ऐसा लगा कि चलो अब रविवार को तड़के ट्रेन पटना पहुंचा देगी। इसी आशा के साथ ज़्यादातर यात्री रात्रि 10 बजे तक नींद की आगोश में चले गए और मैं मन्नू भंडारी की कहानियों का संग्रह निकालकर पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते कब आँख लग गई, पता ही नहीं चला। रात्रि लगभग साढ़े तीन बजे जब नींद खुली तो पता चला कि ट्रेन अभी अभी मुगलसराय से खुली है। मुझे लघुशंका की आवश्यकता महसूस हुई तो मैं अपने ऊपरी बर्थ से नीचे उतरा अपने तीन माह पुराने जूते ढूँढने लगा। बहुत ढूँढने पर भी जब जूते नहीं मिले तो मुझे यकीन हो गया कि किसी ने जूते उड़ा लिए हैं। एक तो ठण्ड का मौसम, दूसरा जूते विहीन पाँव और तीसरा लघुशंका की आवश्यकता।

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मेरा दिमाग भन्ना गया। किसी तरह एक सहयात्री की चप्पल के सहारे मैंने अपनी लघुशंका का निवारण किया। इसके बाद मुझे याद आया कि रेल मंत्री ट्विटर पर रेल यात्रियों द्वारा बताई गई समस्याओं का त्वरित समाधान उपलब्ध करा देते हैं। मैंने उसी वक़्त अपना मोबाइल फ़ोन निकाला और रेल मंत्रालय को अपनी समस्या से अवगत करा दिया। सुबह करीब पांच बजे ट्वीट का जवाब आया कि आपकी समस्या से संबंधित रेल अधिकारी को अवगत करा दिया गया है। मैं आश्वस्त हुआ कि अब नंगे पाँव घर नहीं जाना पड़ेगा। मुझे ऐसा विश्वास इसलिए था, क्योंकि सोशल मीडिया और अखबारों में ट्वीट पर समस्याओं के त्वरित निदान की कई ख़बरें मैंने पढ़ी/देखी थी।

सुबह करीब साढ़े 6 बजे ट्रेन बक्सर स्टेशन पहुंची। हमलोग ट्रेन के खुलने का इंतजार करने लगे, लेकिन करीब 1 घंटा बीत जाने के बाद भी ट्रेन नहीं खुली। दूसरे यात्रियों से पूछने पर पता चला कि इंजन खराब हो गया है और ड्राईवर उसे ठीक करने की कोशिश कर रहा है। इस दौरान दूसरे ट्रैक से अन्य गाड़ियां सीमांचल एक्सप्रेस के यात्रियों को मुंह चिढ़ाती धड़ाधड़ निकल रही थीं। 1 घंटा और बीत जाने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो करीब साढ़े 8 बजे यात्रियों ने हंगामा शुरू किया। तब जाकर स्टेशन अधीक्षक ने मुगलसराय से दूसरा इंजन बुलवाने की कवायद शुरू की। इसी दौरान एक असामान्य उद्घोषणा की आवाज मेरे कानों में पड़ी। मुझे लगा कि शायद मेरा ट्वीट काम कर गया। लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे अहसास हुआ कि वह उद्घोषणा मेरे लिए नहीं था। खैर, करीब साढ़े नौ बजे दूसरा इंजन आया और 10 बजे ट्रेन बक्सर स्टेशन से रवाना हुई।

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बक्सर से पटना की दूरी कोई भी सुपरफास्ट ट्रेन लगभग दो घंटे में पूरी करती है। इसलिए मुझे और मेरे सहयात्रियों को लगा कि अब तो 12 बजे तक पटना पहुँच जाएंगे। लेकिन यह भी हो न सका। ट्रेन लगभग ढाई बजे पटना पहुंची। उस वक़्त न सिर्फ भूख से हालत खराब हो चुकी थी बल्कि लगभग 30 घंटे की यात्रा करके शरीर भी थक कर चूर हो चुका था। मैं नंगे पाँव ही प्लेटफॉर्म पर उतर कर मेरे लिए किसी उद्घोषणा का इंतज़ार करने लगा। करीब 15 मिनट तक इंतज़ार करने के बाद भी जब कोई उद्घोषणा नहीं हुई, तो निराश होकर नंगे पाँव ही स्टेशन से बाहर निकला और ऑटो में बैठकर अपने घर की तरफ रवाना हो गया।  कुल मिलाकर इस यात्रा के दौरान न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक और आर्थिक यातना के दौर से गुज़रना पड़ा।

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शेष अगले अंक में…..

लेखक चैतन्य चन्दन युवा और प्रतिभाशाली पत्रकार हैं. उनसे संपर्क 9654764282 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. ram awtar gupta

    January 27, 2016 at 11:54 pm

    apka hal padkar ab samajh me ata hai ki upar birth wale jute upar kyo rakhte hai .

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