रवीश कुमार-
आर्थिक ख़बरों का सार… रुपया अब डॉलर के मुबाकले रिलैक्स है। कोई नहीं पूछता कि कितना कमज़ोर हुआ। सोमवार को एक डॉलर 78 रुपए का हो गया। बताया गया कि इतिहास में इतना कमज़ोर कभी नहीं हुआ।
जापान की मुद्रा येन भी कमज़ोर होने के मामले में 24 साल के रिकार्ड तोड़ रही है।इस साल येन में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अमरीका में महंगाई बेकाबू हो चुकी है। इसे रोकने के लिए वहां का केंद्रीय बैंक ब्याज दर और बढ़ाएगा। तब शेयर बाज़ार और तेज़ी से गिरेगा। निवेशक शेयर बाज़ार से पैसे निकाल कर वहां के सरकारी बॉन्ड में पैसा लगाएंगे क्योंकि ब्याज दर बढ़ने से रिटर्न बढ़ेगा। ब्याज दर बढ़ाने से भी महंगाई के थमने की रफ्तार वैसी नहीं है, जैसी उम्मीद की जा रही है। अगर महंगाई का दौर लंबा चला तब लोग और कंगाल हो जाएंगे। आपकी बचत हवा की तरह उड़ने लगेगी। यह दौर कितना लंबा रहेगा, कोई नहीं जानता है। अपनी बचत का सही इस्तेमाल कीजिए। सही इस्तेमाल क्या है, ये इस लेखक को नहीं पता है क्योंकि इसकी अलग-अलग गणनाए हैं।
मिंट में एक रिपोर्ट पढ़ी। howlindialives.com के अर्जुन श्रीनिवास ने भारतीय बाज़ारों में निवेश का विश्लेषण किया है। अर्जुन के रिसर्च के अनुसार पिछले दस साल में विदेशी निवेश काफी बढ़ा है लेकिन पिछले वित्त वर्ष में इसके बढ़ने की रफ़्तार काफी कम हो गई। विदेशी निवेश कभी 20 प्रतिशत तो कभी 10 प्रतिशत सालाना की रफ़्तार से बढ़ रहा था वो 2021-22 में 2 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ा है। यही नहीं जो पैसा आ रहा है वो कुछ ही सेक्टरों में लग रहा है,जैसे कंप्यूटर और आटोमोबिल।
दूसरी तरफ 2021-22 में भारत से पैसा निकाल कर विदेशों में लगाने वालों में भारतीय निवेशकों का हिस्सा बढ़ा है और यह 43 प्रतिशत तक हो गया है। भारतीय निवेशक 15 अरब डॉलर से अधिक दूसरे देशों के निवेशकों में लगा चुके हैं। अर्जुन ने दिखाया है कि भारत से बाहर जाने वाला पैसा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में लग रहा है। क्या इसका मतलब यह नहीं कि इतने वर्षों के अभियान और प्रयास के बाद मेक इन इंडिया से लैस भारत का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर भारतीय निवेशकों का ही दिल नहीं जीत पा रहा है? वर्ना वे दूसरे देशों के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के बजाए भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में ही निवेश करते। पैसा दिल से नहीं दिमाग़ से लगाया जाता है। भारतीय निवेशक देश और सेक्टर के हिसाब से अपना पैसा लगा रहे हैँ।
बिज़नेस लाइन में शिशिर सिन्हा की एक रिपोर्ट छपी है।2010-2022 के बीच केंद्र सरकार की PSU के IPO ने निवेशकों को निराश ही किया है। केवल HAL ने अच्छा रिटर्न दिया है, बाकियों में मामला ठन-ठन गोपाल है। LIC को लेकर इतना हंगामा हुआ, इसके शेयर की कीमतें भी नीचे की तरफ़ खिसकती जा रही हैं। LIC नए कस्टमर को आकर्षित नहीं कर पा रही है। इसकी तुलना में प्राइवेट बीमा कंपनियों का बाज़ार तेज़ी से बढ़ता जा रहा है।
दक्कन हेरल्ड में विवेक कॉल ने लिखा है कि भारत में दुपहिया वाहनों का बिकना सुस्त हो रहा है। 2014-15 के साल में जितने दुपहिया वाहनों की बिक्री हुई थी, उससे भी कम 2020-21 में हुई है। 2020 में डेढ़ करोड़ से कुछ अधिक दुपहिया वाहन बिके थे। 2014-15 में एक करोड़ साठ लाख वाहनों की बिक्री हुई थी। इसका मतलब है कि पिछले आठ वर्षो में दुपहिया वाहनों की बिक्री में ठहराव आने लगा है।जो इशारा करता है कि समाज के निम्न मध्यमवर्गीय तबके की आर्थिक हालत ख़राब हुई है। इसी तरह कारों की घरेलु बिक्री में भी ठहराव आ रही है। 2011-12 की तुलना में 2020-21 में पचास लाख कारों की बिक्री घटी है। यह भी सही है कि सड़क पर जाम में कोई कमी नहीं है मगर यह डेटा बताते हैं कि जो कार ख़रीदने वाला तबका है वो कितनी कारें ख़रीदेगा।परिवार के सारे सदस्यों के लिए तो ख़रीद चुका है। नए पैसे वाले बनेंगे वही ख़रीदेंगे। तो क्या कार ख़रीदने की आर्थिक क्षमता तक लोग कम पहुंच रहे हैं?