यह लेख आज 28 जून , 2015 ‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र के समस्त संस्करणों में पृष्ठ-संख्या छह पर शीर्षक के रूप में प्रकाशित है, जो पूर्णतः अशुद्ध है | इसे विधिवत जानते हुए भी इस सन्दर्भ में मैंने अपने परम शुभेच्छु, विचक्षण श्रद्धेय पण्डित रमेश प्रसाद शुक्ल जी से परामर्श किया था क्योंकि आज मैंने देश के एक विश्रुत समाचारपत्र के ‘प्रधान सम्पादक’ श्री शशि शेखर के भाषा-ज्ञान पर साधिकार अँगुली उठायी है, जो ‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र के सारे संस्करणों के शीर्षस्थ पत्रकार हैं। शुद्ध शीर्षक होगा- ‘जाग्रत जन का जनतन्त्र’ ।
‘जागृत’ कोई शब्द ही नहीं है। ‘जागृ’ धातु में ‘शतृ’ प्रत्यय लगने से ‘जाग्रत’ बनता है। ‘जाग्रत’ का अर्थ होता है– जागता हुआ, सचेत। अन्य शुद्ध शब्द हैं– जागृति और जाग्रति। जागृति और जाग्रति एक ही हैं। ‘जागृ’ धातु में ‘क्तिन’ प्रत्यय के लगने से ‘जाग्रति’ बनता है।
‘जनों’ कोई शब्द ही नहीं है। शब्द है– ‘जन’, जिसका अर्थ है— लोग, प्रजा, समूह— ये सारे शब्द बहुवचन में हैं। अतः बहुवचन का पुनः ‘बहुवचन’ बनाना व्याकरण के साथ ‘बल-प्रयोग’ की कोटि के अन्तर्गत रेखांकित होता है।
डॉ.पृथ्वीनाथ पांडेय के एफबी वॉल से
Comments on “शशि शेखर का शब्द-ज्ञान : लेख का शीर्षक ‘जागृत जनों का जनतंत्र’, ‘जागृत’ कोई शब्द नहीं, ‘जन’ बहुबचन, ‘जनो’ अशुद्ध”
हिंदी में अनेक पत्रकार अनेकों का प्रयोग करने से हिचकिचाते नहीं . हिंदुस्तान में सबसे अधिक भूल होती है .