मुंबई स्थित ‘दैनिक भास्कर’ के बीकेसी वाले आफिस में पिछले दिनों तब हड़कंप मच गया, जब एक डोमेस्टिक इन्क्वायरी में पीड़ित का पक्ष रखने के लिए वहां अचानक ‘एनयूजे’ की अध्यक्ष शीतल करदेकर पहुंच गईं! शीतल ने वहां न केवल पीड़ित के पक्ष को मजबूती से रखा, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश में अनिवार्य की गई ‘विशाखा समिति’ के अब तक गठन न होने को लेकर भी तमाम सवाल किए।
आपको बता दें कि भारत सरकार ने समाचार-पत्रों में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के लिए वर्षों पहले अपनी स्वीकृति दे रखी है, साथ ही इसके विरुद्ध माननीय सुप्रीम कोर्ट में गए अखबार मालिकों को वहां से कोई राहत भी नहीं मिली। इसके बावजूद अखबार मालिकों ने उक्त बोर्ड की सिफारिशें अब तक लागू नहीं की हैं। यही नहीं, मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के मुताबिक, वेतन व बकाया मांगने वाले कर्मचारियों को ये संस्थान अलग-अलग तरीके से प्रताड़ित भी करते देखे जा सकते हैं!
डीबी कॅार्प लिमिटेड ‘दैनिक भास्कर’, ‘दिव्य भास्कर’ सहित ‘दिव्य मराठी’ आदि का प्रकाशन करता है. स्वयं को देश का सबसे बड़ा मीडिया हाउस बताने वाली कंपनी ‘डी बी कॅार्प लि’ ने अपने बकाएदारों के लिए अलग ही हथकंडा अपनाया हुआ है… संस्थान का जो भी कर्मचारी मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, वेतन व बकाया मांगता है, संस्थान द्वारा पहले तो उसका दूर कहीं ट्रांसफर कर दिया जाता है या फिर संबंधित कर्मचारी का हौसला तोड़ने में नाकामयाब रहने पर वह उसके विरुद्ध डोमेस्टिक इन्क्वायरी शुरू करवा दे रहा है !!
कल इसी सिलसिले में ‘भास्कर’ की लतिका आत्माराम चव्हाण की जब डोमेस्टिक इन्क्वायरी चल रही थी, लतिका के आग्रह पर वहां ‘नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट’ (महाराष्ट्र) की अध्यक्ष शीतल करदेकर ने पहुंच कर सवालों की झड़ी लगा दी! असल में ‘भास्कर’ प्रबंधन इस डोमेस्टिक इन्क्वायरी वाले हथकंडे से अपने कर्मचारी को दोषी ठहरा कर टर्मिनेट करना चाहता है, ताकि लतिका को नए वेतनमान का लाभ देने से बचने के साथ-साथ वह उन कर्मचारियों को भयभीत भी कर सके, जो मन ही मन इरादा बनाए हुए हैं कि अभी क्लेम करने वाले यदि अपने मकसद में सफल रहे तो देर-सवेर वे भी अपने बढ़े हुए वेतन व बकाए की मांग अवश्य करेंगे।
सो, शीतल करदेकर ने इन्क्वायरी में शामिल होते ही सवाल उठाते हुए प्रबंधन के प्रतिनिधि को सबसे पहले इस बात पर घेरा कि लतिका चव्हाण का बकाया दिए बगैर उनके विरुद्ध लिया जाने वाला कोई भी ‘एक्शन’ गैर-कानूनी है। इससे पहले कि प्रबंधन कुछ जवाब दे पाता, शीतल ने ‘विशाखा समिति’ के गठन संबंधी सवाल पर उसकी बोलती बंद कर दी ! यहां बताना आवश्यक है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के सम्मान को बरकरार रखने की खातिर प्रत्येक सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में ‘विशाखा समिति’ के गठन को अनिवार्य बनाया हुआ है। इसके बावजूद करीब डेढ़ वर्ष पहले शीतल को आरटीआई से जब यह पता चला कि मुंबई के किसी भी अखबार के दफ्तर में इस समिति का गठन नहीं किया गया है, उन्होंने तभी से अखबार के दफ्तरों में ‘विशाखा समिति’ गठित करवाने की मुहिम छेड़ रखी है।
बहरहाल, ‘भास्कर’ प्रबंधन के प्रतिनिधि ने कल यह बता कर कि समिति का गठन हो चुका है और उसे श्रीमती गोखले की निगरानी में संचालित किया जा रहा है, फौरी तौर पर भले ही राहत हासिल कर ली हो, मगर उसके पास शीतल के इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था कि समिति का गठन यदि हो चुका है तो दफ्तर में उसे डिस्प्ले क्यों नहीं किया गया है ? इस बारे में शीतल करदेकर का कहना है कि 29 अगस्त को लतिका चव्हाण की इन्क्वायरी में शामिल होने के लिए जब वह ‘भास्कर’ के आफिस में फिर जाएंगी, तब दूध का दूध और पानी का पानी करके ही मानेंगी ! स्वाभाविक है कि एनयूजे की अध्यक्ष शीतल करदेकर की सक्रियता ने मुंबई के उन सभी अखबार कर्मियों में आज भरोसे का संचार कर दिया है, जो ‘मजीठिया’ की मांग करने से कल तक इसलिए हिचक रहे थे, क्योंकि उसके कारण उन्हें भविष्य में संस्थान द्वारा प्रताड़ित करने का डर सता रहा था।
मुंबई से पत्रकार विवेक कुमार की रिपोर्ट.
https://youtu.be/BXu6enscLjo
Sinder pal
September 15, 2018 at 5:55 am
Carry on ….