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सियासत

सुब्रत रॉय के लिये गाली और ताली, पढ़िए दो छोरों पर खड़े इन दो पत्रकारों के ये दो आर्टकिल!

गाली : सुब्रत रॉय ने जनता के पैसों से रंडिया नचाई और भाड़ पत्रकार पैदा किए!

आचार्य विष्णु हरि गुप्त-

रंडी शब्द असभ्य है, अशिष्ट है और अकर्णप्रिय है। अगर इस शब्द का अस्तित्व है और किसी का चाल-चरित्र इस शब्द के प्रतीक है तो फिर उसका प्रयोग करना अति आवश्यक होता है। कहा जाता है कि जैसा को तैसा विवरण दीजिये, आलोचना कीजिये। यहां कसौटी सुब्रत रॉय है, जिसको रंडिया प्रबृति और भाड़ पत्रकार सहाराश्री कहते थे। सुब्रत रॉय की मौत के बाद उसके गुणगान में लोग शब्दों की भी इतिश्री कर दी, महानता से विभूषित करने के लिए सारे मापदंड तक तोड डाले गये। जबकि करोड़ों गरीब लोगों के जीवन भर की खून-पसीने की कमाई डूब गयी, हडप लिया, इस पर कोई चिंता नहीं व्यक्त की गयी। सच कड़वा होता है। सुब्रत राय का सच बहुत जहरीला था, धृणित था, खतरनाक था, लूटेरा था, ब्लैकमेलर का था, अमानवीय था। उसने न केवल रंडिया नचायी बल्कि पककारों को नचाया, नेताओं को नचाया, अफसरों को नचाया और विभिन्न क्षेत्रो के विशेषज्ञों को नचाया, बडी-बडी हस्तियों को रूपयों के बल पर पैरों के नीचे रख कर अपना जय-जयकार कराया। सुब्रत रॉय को भगवान इन्द्र जैसा दरबार सजाने का आनन्द था, प्रबृति थी।


सुब्रत राय को आईकॉन मानने वालो को प्रकृति ने सबक भी दिया है और आईना भी दिखाया है। भ्रष्ट और कुकर्म तथा गरीबों को लूटने की सजा भी खतरनाक होती है, जहरीली होती है, अकल्पनीय होती है। क्या आपने नहीं देखा कि प्रकृति ने सुब्रत रॉय को कैसी सजा दी है? ऐसी सजा कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सुब्रत राय को कैंसर सहित कई बीमारियां थी। डॉक्टरों ने मृत्यु की बात कह दी थी, डॉक्टरों ने कह दिया था कि छह मास से अधिक जिंदा नही रहेंगे? परिवार को मालूम था, सहारा इंडिया के टॉप अधिकारियों को मालूम था। लेकिन इस अंतिम समय में उनके साथ न तो उनकी पत्नी थी, न बेटे थे और न ही सहारा इंडिया के टॉप क्लास के अधिकारी। मुबंई फिल्मी दुनिया के जिन हीरो-हिरोइनों को वह नचाता था वे सभी झाकने तक नही गये। ऐसी भयंकर, कष्टकारी और लवारिश मौत अमानवीय व पाप से भरे लोगों की ही होती है।


कुछ तथ्य देख लीजिये। सुब्रत रॉय ने अपने बेटों की शादी में कोई एक-दो नहीं बल्कि पूरे पांच सौ करोड़ रूपये खर्च किये, ये पांच सौ करोड़ रूपये क्या उसके अपनी खून-पसीने से कमाई के थे, नहीं, ये सभी आम गरीब के पैसे थे जिन्हें अर्थशास्त्र की भाषा में निवेशक कहते हैं। सुब्रत राय ने आईपीलए की क्रिकेट टीम जो खरीदी थी, जिसमें पांच हजार करोड़ रूपये खर्च किये थे, स्वाहा किये थे वे सभी पैसे गरीब लोगो के थे।

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सुब्रत रॉय ने जो मोटर रेस की टीम खरीदी थी, उसका पैसा भी आम गरीबों का था। हवाई जहाज चलाने का उसने नाटक किया था वह पैसा भी आम गरीब का था। उसने फिल्मों बनाने पर सैकडों और हजारों करोड़ों रूपये जो स्वाहा किये, वे सभी आम गरीब के पैसे थे। लखनउ सहारा शहर में फिल्मी दुनिया की रंडियों और रंडों को जो वह नचाया करता था और उस पर पैसे स्वाहा किया करता था, वो पैसे भी आम गरीब के थे। अखबार निकाल कर और चैनल शुरू कर जो उसने पैसे स्वाहा किये वे सभी पैसे आम गरीब के थे। सेबी के अनुसार कई हजार करोड का उसने जो निवेशक घोटाला किया था वह पैसा भी आम गरीबों का था। सड़कों पर खाना बना कर बेचने वाले लोग, छोटे दुकानदार, मजदूर और मध्यम वर्ग को चुना लगाने में उसकी अपराधी मानसिकता अतुलनीय थी।


उसने ये सभी प्रंपच ठगी के लिए किये थे। उदाहरण के तौर पर उसने पैसा अमिताभ बच्चन पर खर्च क्यों किया? इसलिए किया कि अमिताभ बच्चन, कपिलदेव और राजबबर आदि के माध्यम से उसे अपनी छबि चमकानी थी, अपनी विश्वसनीयता चमकानी थी, चोर और भगौडा के ठप्पे से मुक्ति पाने का प्रपंच था। सहारा इंडिया वाले गरीबों को फंसाने के लिए कहते थे देखो हमारे सहारा श्री की महफिल में अमिताभ नाचता है, राजबब्बर नाचता है, जयप्रदा नाचती है, एश्वर्या रॉय नाचती है, करिश्मा कपूर नाचती है, फिल्मी दुनिया का कोई ऐसा हीरो और हिरोइन नहीं है जो सहारा श्री महफिल नहीं नाचती है?

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सही भी यही था कि सुब्रत राय की रात की महफिल जब सजती थी तो फिल्मी दुनिया की थिरकन थमथी ही नहीं थी। अमिताभ बच्चन इस दंश को समझते हैं। अनुमान लगा सकते हैं कि अमिताभ बच्चन ने सुब्रत रॉय की मौत के बाद एक शब्द तक क्यों नहीं लिखा? इसलिए कि अतिताभ बच्चन को मालूम है कि उसकी छवि का सुब्रत रॉय और अमर सिंह ने कितना दुरूपयोग किया।

अमिताभ ने एक साक्षात्कार में कहा था उसकी दुर्दिन में किसी ने मदद नहीं की थी। अमिताभ के बेटे अभिषेक बच्चन और करिश्मा कपूर की सगाई टूटने के पीछे भी सुब्रत राय और अमर सिंह की महफिल थी। राज बबर का उपयोग करने के बाद सुब्रत रॉय ने दुध की मक्खी की तरह निकाल बाहर कर दिया था। जब निजी प्रसंग पर राजबबर और अमर सिह के बीच झगडा हुआ तब सुब्रत राय ने अमर सिंह की महफिल के साथ खडा हो गया।

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आईपीएल की टीम उसने क्या कमाई करने और निवेशकों को लाभ दिलाने के लिए खरीदी थी, क्या उसने हवाई जहाज, अखबार और चैनल आदि कमाई करने और निवेशकों की झोली भरने के लिए चलाया था? इसका उत्तर नहीं है। आखिर क्यों? ये प्रकल्प मौज-मस्ती के लिए, अपने अहंकार संतुष्ट करने और नामी लोगों को अपने पैरों के नीचे रखने की मानिसकता से चलाया था। सुब्रत रॉय अगर दूरदर्शी था, विलक्षण प्रतिभा का धनी था तो फिर उसका हवाई जहाज का व्यापार क्यों डूब गया, आईपीएल क्रिकेट टीम का व्यापार क्यों डूब गया, फिल्मी दुनिया का कारोबार क्यों डूब गया, अखबार और चैनल क्यों नहीं दौड पाये? अस्पताल और हाउसिंग का कारोबार क्यों नहीं पनपे?


सच तो यह है कि उसने अपनी काली कमाई, ब्लैकमैलिंग और कालेधन की रकम को संरक्षित करने के लिए ये सभी हथकंडे अपनाये, इसमें पेशेवर गुण थे नहीं। अफसरों और नेताओं को खूब हवाई सैर करायी, परिचायिकाओ की सुंदरता और देह खूब देखायी- बेची, जिससे हवाई जहाज का डूब गया। इसी तरह आईपीएल की क्रिकेट टीम इसलिए धाराशायी हो गयी कि उसने फ्री टिकट खूब बांटे, पेशेवर दृष्टिकोण था नहीं।

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रातें जब रंगीन होगी तो सीमाएं भी टूटेगी। रोज नयी-नयी सुंदरता के आशिक को एक न एक दिन दुष्परिणाम झेलना ही पडता है। हवा में यह बात तैरती थी कि ये मानसिकता हब्सी तक चली गयी। अफ्रीकी देशों से हब्सियां आने लगी। एकाएक तबीयत खराब हो गयी। लगभग दो साल तक सुब्रत रॉय सार्वजनिक जीवन से दूर हो गये थे। इसी दौरान एडस नामक बीमारी की भी हवा बही थी। लेकिन सुब्रत रॉय इससे बच निकले थे और फिर से सार्वजनिक जीवन में आये थे।


सर्वगुण संपन्न व्यक्ति की जल्द वाहावही होती है। रातोरात सुब्रत रॉय चमक गये, क्यों? उसने सीढियां हटायी, अपने शुरूआती दौर के सहयोगियों और हिस्सेदारों को निपटाया, राजनीतिज्ञों के कालाधन को अपना भाग्य विधाता बनाया। कहा जाता है कि वीर बहादुर सिंह के पैसे से इनकी किस्मत चमकी थी। वीरबहादुर सिंह के पैसे पचा गये। वीरबहादुर के बेटे ने पैतरेबाजी दिखायी तो फिर अमर सिंह ने कुछ रोटियां फेंककर मामला शांत कराया। सहारा ग्रुप के एक कर्मचारी के सबंध में चर्चा होती है कि उसे नौकरी से इसलिए निकाल बाहर कर दिया था कि उसने कमीशन मांग लिया था। उस समय में उस कर्मचारी ने गुजरात के एक एनआरआई से एक सौ करोड़ रूपये जमा कराये थे। गुजराती एनआरआई का एक सौ करोड रूपये डूब गये। उस कर्मचारी की नौकरी भी गयी और अपने परिचित एनआरआई की बददुआ भी मिली। ऐसे तमाम किस्से हवा में तैरते रहते हैं जो अधिकतर सत्य ही हैं।

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पत्रकारिता में नौकर-मालिक, भाड़ पत्रकारिता, चरणपादुका वाली पत्रकारिता के साथ ही साथ उसने चिट-फंड की पत्रकारिता को जन्म दिया। पहले पत्रकारों और मालिकों के बीच में समानता का व्यवहार और संहिताएं थी। मालिकों को पैर छूने की हिम्मत कोई पत्रकार नहीं कर पाता था क्योंकि उसके सामने लोकलाज और पत्रकारिता की गरिमा, स्वतंत्रता सामने होती थी। सामूहिक तौर पर पत्रकार सुब्रत रॉय के पैर छूने की प्रतियोगिता में लगे रहते थे। पैर छूने की प्रतियोगिता में जो पत्रकार आगे होता वह आगे बैठता चला जाता था, उसकी किस्मत चमकती चली जाती थी। गोविन्द दीक्षित एक कार्टूननिस्ट था पर संपादक बन गया, एक कार्टूनिस्ट की टेढी-मेढी मानसिकता ने पत्रकारिता की नैया डूबोयी, कितनों की रोजी-रोटी छीनी, उपेन्द्र राय और रणविजय सिंह जैसे अधकचरी मानसिकता से पीडित लोग सुब्रत राय के आईकॉन बन गये।


सुब्रत राय के खडी की गयी चंगू-मंगू पत्रकारिता का एक उदाहरण देखाता हूं। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की भौड़सी आश्रम से संबंधित एक खबर छप गयी। खबर सही थी। फिर चन्द्रशेखर ही नही बल्कि राजनीतिज्ञों के पिछलगू और सुब्रत राय के चंगू-मंगू के रूप में कुख्यात अरूण पांडये व दिलीप चौबे ने प्रपंच खेल दिया, तत्कालीन संपादक विभांशु दिव्याल को डराने-धमकाने की कोई कसर नहीं छोडी गयी, चन्द्रशेखर की शिकायत पर सुब्रत रॉय द्वारा नौकरी से हटाने की चक्रव्यू रची गयी।

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विभांशु दिव्याल सज्जन प्रवृत्ति के आदमी हैं, उनके सामने परिवार के भरण भोषण की नैतिक जिम्मेदारी थी फिर मैनेज करने के लिए विभांशु दिव्याल ने एक एंकर खबर लिखी थी, खबर की शीर्षक थी ‘ एक खबर की शवयात्रा ‘। एक खबर की शवयात्रा नहीं थी बल्कि सच की पत्रकारिता की शवयात्रा थी, क्योंकि खबर तो सही थी। फिर एक खबर की शवयात्रा के रूप में चन्द्रशेखर के पक्ष में छपी उस खबर को चन्द्रशेखर के पास प्रस्तुत कर चंगू-मंगू यानी अरूण पांडेय और दिलीप चौबे ने खूब प्रशंसा बटोरी थी, रामबहादुर राय की तरह अरूण पांडेय और दिलीप चौबे भी चन्द्रशेखर मंडली की प्रमुख हस्ती बन गये। इस प्रकार के कारनामे बहुत थे।


सुब्रत रॉय कितना फ्रॉड था उसका एक अन्य उदाहरण भी देख लीजिये। उसने राष्टीय सहारा के तत्कालीन स्थानीय संपादक निशीथ जोशी और संयुक्त संपादक राजीव सक्सेना सहित कई मीडियाकर्मियों और सहाराकर्मियों के नाम से फर्जी संपतियां बनायी थी, निवेशकों के पैसे का गबन कर निजी नामों से संपत्तियां बनायी थी। निशीथ जोशी के नाम पर भी कुछ बेनामी संपत्तियां थी। सुब्रत रॉय ने अमर उजाला प्रबंधन की सहायता लेते हुए संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए दांव-पेंच शुरू किया था।

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राष्ट्रीय सहारा से हटने के बाद निशीथ जोशी अमर उजाला में कार्यरत थे। निशीथ जोशी न ईमानदारी का पाठ पढाया और कह दिया कि मुझे अवैध संपत्तियां नहीं चाहिए, आपने जैसे मेरे नाम पर संपत्तियां बनायी है वैसे आप उसका निपटारा कर लीजिये। फिर क्या हुआ, यह निशीथ जोशी को भी मालूम नहीं है। एक पत्रकार को उसने जेल की हवा भी खिलायी थी, झूठे मुकदमें तभी उठाये जब उसने अपने नाम की सारी अवैध संपत्तियों को सुब्रत रॉय के भ्रष्ट जाल में समाहित किया था। उसने न जाने कितने पत्रकारों को मिनटों-मिनट में इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया।


पत्रकारों और कर्मचारियों की पिटाई करने और इस्तीफा लेने का काम भी होता था। पत्रकारों और कर्मचारियों को बंधक बना कर कई-कई दिनों तक रखे जाते थे, कमरे में बंद रख कर पिटाई होती थी, किसी को जानकारी तक नहीं होती थी, पुलिस अधिकारियों के साथ मिलीभगत होती थी। इसलिए परिवार वालों की शिकायत पर कार्रवाई भी नहीं होती थी। नोएडा स्थित राष्टीय सहारा कपंलेक्स में सहारा इंडिया के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ ही साथ राष्टीय सहारा के प्रबंधक क्षेत्र के अधिकारियों और कर्मचारियों की कमरे में बंद कर पिटाई करने और सादे कागज पर हस्ताक्षर लेने की बात हमेशा सुनने को मिलती थी। इसने कर्मचारियों की संख्या पर झूठ फैलाया।

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सुब्रत रॉय पांच लाख कर्मचारियों को काम देने की बात करता था पर सहारा इंडिया के सभी कंपनियों में दस हजार से भी कम मानव संख्या थी। इसने पैसा जमा कराने वाले एजेंटों को भी अपना स्टाफ कहा करता था जो बाद में स्टाफ होने की बात को नकार गया। सुब्रत रॉय ने झूठ फैलाया कि सहारा इंडिया एक परिवार है, यहां पर सेनानिवृति नहीं है, प्रारंभ काल में सभी की उम्र कम थी। पर बाद में साठ साल की उम्र पार करने से पूर्व में सेवानिवृति दी जाने लगी। सुब्रत रॉय को महान कहने वाले पत्रकार और समुदाय इस झूठ पर क्या कहेंगे।

ज्योति बसु ने इसे सिखाया था सबक और दुत्कार कर भगाया था, बाद में इसने ज्योति बसु से अपने संबंध किसी तरह ठीक किये थे।

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बात यह थी कि ज्योति बसु के सामने सुब्रत रॉय अपनी आदत के अनुसार लंबा-लंबा हाक रहा था, यह भी कह दिया कि मैं भारत का भाग्य बदल दूंगा…।

इस पर हमेशा शांत रहने वाले ज्योति बसु ने कह दिया कि क्या तुम दूसरे ब्रह्माण्ड के आदमी हो, तुम्हारा व्यापार क्या है, तुम्हारा उद्योग क्या है, हो तो चिट-फंड के ही आदमी, इतना हांकते क्यों हो, तुम्हें अपनी औकात नहीं मालूम है, सीधे यहां से जाओ।

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बंगालीवाद का बहुत बडा सबक सुब्रत राय को मिल गया था। इसने सहारा कर्मियों से लखनड में फर्जी मतदान भी कराये थे। वाजपेयी सरकार में इनकम टैक्स की नोटिस मिलने पर सुब्रत रॉय राय को बचाने वाले निशीज जोशी और राजीव सक्सेना की टीम थी। कुछ मदद राजनाथ सिंह भी की थी। सहारा की दुनिया में राजनाथ सिंह को अपना आदमी का दर्जा प्राप्त था। इसने भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट को भी चुनौती दी थी, आंख दिखाने की कोशिश की थी। दुष्परिणाम यह हुआ कि जेल भेजकर सुब्रत राय की हेकड़ी सुप्रीम कोर्ट ने तोड़ी थी।


आज कई करोड़ गरीब निवेशक परेशान हैं, अपने जीवन की खून-पसीने की कमाई सहारा इंउिया में जमा कर पचता रहे हैं, उनकी अपनी उम्मीदी बेकार साबित हुई है। अब तो पैसे वापस होने की कोई उम्मीद नहीं है। मेरी सहानुभूति गरीब निवेशकों के प्रति हैं, जो अनपढ और अज्ञानी होने के कारण सहारा इंडिया और सुब्रत रॉय के भ्रष्टजाल में फंस गये थे।

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लेखक विष्णु गुप्त वरिष्ठ पत्रकार हैं, संपर्क नंबर … 9315206123


अब पढ़िए सुब्रत रॉय का दूसरा पक्ष-

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ताली : उन सहाराश्री को आप नहीं जानते!

निरंजन परिहार

सुब्रत रॉय सहारा को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते। जो लोग उनको जानने के बड़े बड़े दावे करते हैं, वे तो दरअसल उन्हें कतई नहीं जानते। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे कल्पनाओं के पार के व्यक्ति थे, अदम्य उत्साही एवं परम पराक्रमी। वे न तो कोई कारोबारी परिवार से थे और न ही परिवार में पहले किसी ने व्यापार किया था, फिर भी केवल दो लोगों के साथ दो हजार रुपए से शुरू करके अपने कारोबार को 20 लाख करोड़ तक पहुंचाने और 9 लाख लोगों को रोजगार देने का पराक्रम भारत में उनके अलावा किसी और के खाते में दर्ज नहीं है। वे चले गए, मगर यह उनके जाने का वक्त नहीं था। दरअसल, यही सही वक्त था उनको अपना वास्तविक पराक्रम दिखाने का, जो कि वे दिखा भी रहे थे। क्योंकि यश और अपयश का जो मिला जुला हिस्सा किसी भी सफल कारोबारी के जीवन की झोली में आता है, वह सहाराश्री के जीवन में भी आया।

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सरकारी कायदे – कानून की उलझनें बहुत मुश्किलों से भरी होती हैं, कहते हैं कि उनमें फंस जाओ तो जीवन के अंत तक निकलना बेहद मुश्किल होता है। इसीलिए, माथे पर बताए गए कर्ज के बोझ से भी दसियों गुना ज्यादा संपत्ति के मालिक होने के बावजूद सरकारी नीतियों के जाल में फंस जाने की वजह से पिछले कुछ समय से वे एक अबूझ संकट में थे। मगर भारत से उनको प्रेम था और न्याय व्यवस्था में उनका भरोसा। अंततः निवेशकों के पैसे हड़पने के केस में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मुश्किलों को समझा और न्याय करते हुए केस को जस का तस रखने का आदेश दिया और सहाराश्री को जमानत भी दे दी थी।

जीवन भर सबको यश, प्रतिष्ठा, मान और सम्मान देनेवाले किसी भी सफल मनुष्य के लिए अपयश का दंश सहन करना बहुत आसान नहीं होता, वही दंश उन्हें भीतर ही भीतर खाता रहा और अंत में लगातार बीमार करते हुए सन 2023 की दीपावली के दिन उन्हें अस्पताल ले गया, तो फिर वापस घर जाने ही नहीं दिया। अपने मित्र अनिल अंबानी की मालिकी वाले मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल में सहाराश्री दीपावली के दिन 12 नवंबर को इलाज के लिए आए और 14 नवंबर की रात 10.30 बजे संसार से सदा के लिए विदा हो गए।

जीवन की सफलताओं के संसार में सुब्रत रॉय की सफलता का गहराई से आंकलन करें, तो यही कहा जा सकता है कि सफलता के पीछे वे कभी नहीं भागे, बल्कि सफलता उनके साथ कदम दर कदम लगातार चलती रही, क्योंकि हिम्मत उनमें बहुत गजब की थी, मेहनत करना उनकी आदत था और हार मानना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था। इन्हीं अदृश्य शक्तियों के कारण सफलता ने उनको केवल दो लोगों की एक छोटी सी फाइनेंस कंपनी से शुरूआत करके उड्डयन, सिनेमा, मीडिया, हाउसहोल्ड्स, भवन निर्माण, होटल, रिसॉर्ट्स और ऐसे ही ना जाने किन किन धंधों में आगे बढ़ाते हुए उनकी धमक और चमक दोनों की धार बढ़ाने में जबरदस्त मदद की। वे अपने कर्मचारियों को साथी कहते थे और मिलने पर स्वयं पहले सहारा प्रणाम करते थे, इसी अपनेपन की वजह से वे अपनी कंपनी को कारोबार नहीं बल्कि परिवार कहलाना पसंद करते थे।

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दरअसल, कोई व्यक्ति एक ही जनम में आखिर क्या क्या हो सकता है, सुब्रत रॉय इसी आश्चर्य के आलोक में अपने उजियारे से अपने आस पास के सभी लोगों को चमकाते व चमत्कृत करते रहे और इस सदी के पहले दशक में तो एक समय ऐसा भी आया जब उनका सहारा इंडिया परिवार देश की सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाली प्राइवेट सेक्टर कंपनियों में सबसे ऊपर पहुंच गया।

अपनी कोशिशों से सफलता का सबसे ऊंचा आसमान रचनेवाले सहाराश्री के जीवन में बारे में बहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच, कुछ कल्पित और कुछ कल्पनाओं से पार के भी। मगर हर किस्से के हर हिस्से का अपना किस्सा है और उस हर किस्से में जीवन के अद्भुत रंग हैं और तरंग भी। बिहार के अररिया के एक बंगाली परिवार में 10 जून 1948 को जन्मे सुब्रत रॉय कोलकाता पढ़ने गए और मन नहीं लगा, तो गोरखपुर पहुंच गए और बिस्किट व नमकीन बेचने लगे।

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जमींदार परिवार से होने के कारण व्यापार का अनुभव नहीं था, मगर कुछ भी करने और उस किए हुए को शिखर पर पहुंचाने का अदम्य उत्साह व मेहनत उनमें बहुत ज्यादा थी, सो 30 साल की उम्र में 1978 में उन्होंने सहारा इंडिया नाम से, दो लोगों व दो हजार रुपए के फंड से एक छोटी सी कंपनी की स्थापना की जो फाइनेंस सेक्टर में काम करती थी। उन्होंने रोजाना 100 रुपए कमानेवाले लोगों को भी रोज 20 रुपए के निवेश के लिए प्रेरित किया और बीतते वक्त के साथ के साथ सहारा इंडिया परिवार ने व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में अपने विस्तार के साथ ही सबसे बड़े व्यावसायिक साम्राज्य का रूप भी धर लिया।

सुब्रत रॉय महज 40 की उम्र आते आते सहारा इंडिया परिवार के मुखिया के रूप में भारत के सबसे बड़े कोरोबारियों में शामिल हो रहे थे और खुद राज्यसभा में न जाकर दूसरों को वहां भेजने की ताकत बन रहे थे। बाद के दिनों में तो खैर, सहाराश्री भारत के सबसे बड़े स्पॉन्सर के रूप में भी विख्यात रहे। बचपन में कंचे और गिल्ली ठंडा खेलने के शौकीन रहे सहाराश्री ने क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल और कई खेलों के खिलाडियों को जमकर सहयोग किया, तो कभी सिनेमा देखने का वक्त न निकाल पाने के बावजूद सिनेमा के सितारों की बुझती चमक को फिर से उजाला देनेवाले के रूप में भी विख्यात रहे।

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बड़े से भी और ज्यादा बड़ा बनने की कोशिश में सहारा इंडिया परिवार को सुब्रत रॉय रियल एस्टेट सेक्टर में ले गए। प्रस्ताव, प्रोजेक्ट और भविष्य अच्छा था, सो सन 2014 तक उनकी रियल एस्टेट कंपनी में देश के 3 करोड़ लोगों ने 24 हजार करोड़ रुपए निवेश किए। उससे पहले सहारा ने 2009 में शेयर बाजार में उतरने के लिए सेबी के पास जो दस्तावेज जमा कराए थे उनमें गड़बड़ियां बताकर नियमों की अवहेलना के आरोप में सेबी ने सहारा पर 12 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया और मामला कोर्ट में चला गया। कोर्ट ने सहारा प्रमुख पर सख्ती करते हुए उस 12 हजार करोड़ रुपए के जुर्माने पर पर 15 फीसदी ब्याज लगाते हुए निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया और फरवरी 2014 में सुब्रत रॉय को गिरफ्तार के जेल भेज दिया गया।

निवेशकों का धन लौटाने के मामले में सहारा इंडिया का 24 हजार करोड़ रुपये की सारी रकम सेबी के खाते में जमा करा चुकी है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा इंडिया के खिलाफ आगे किसी तरह की कार्रवाई पर यथास्थिति बनाए रखते हुए सहाराश्री को जमानत का आदेश दिया था। दो साल जेल में रहने के बाद वे बाहर ही थे। उन्हें न्याय पर भरोसा था और उससे भी ज्यादा खुद पर और भारत माता पर। वे भारत से प्यार करते थे और देश में कई जगहों पर भारत माता के मंदिर भी उन्होंने बनवाए। इसीलिए नीरव मोदी, विजय माल्या और ऐसे ही कुछ लोगों की तरह सहाराश्री विदेश नहीं भागे और भारत में ही आखरी सांस तक न्याय के लिए लड़ते रहे।

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सहाराश्री सफल थे, समृध्द भी थे और प्रसिध्द भी। लेकिन वही सफलता, वही समृध्दी और वही प्रसिध्दि उनकी नाव को घाट पर लगाने में अड़चन बनी। मगर, सहाराश्री के जीवन की कोशिशों से जो सकेत साफ दिख रहे थे, उनका मतलब तो केवल यही था कि इस बस बातों से उनके लक्ष्य पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वे कहते भी थे कि ये दौर भी गुजर जाएगा, क्योंकि वे अर्जुन थे और निगाह उनकी सदा मछली की आंख पर ही टिकी रही। हालांकि अभी बहुत सारी धाराएं, बहुत सारी धुंध, कई सारे भंवर और बहुत सारे प्रपातों के अलावा अनेक उलझनें अभी और उनके रास्ते में आनी थीं, जिन्हें उन्हें पार करना ही था, क्योंकि वे हिम्मती थे, मेहनती थे और निडर भी थे। पार कर भी जाते, मगर उससे पहले ही काल के गाल में समा गए।

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