के. सत्येंद्र-
गोरखपुर जनपद में सहजनवा के ठर्रापार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पिछले 13 साल से जमे चिकित्सा अधीक्षक बमुश्किल ही कभी स्वास्थ्य केंद्र पर मरीज देखते मिलते हैं। लेकिन पिछले 13 सालों से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के नजदीक ही अपनी प्राइवेट क्लिनिक में रोजाना मरीज देखते हैं। मरीजों से सामान्य फीस 50 रुपया और इमरजेंसी फीस 200 रुपया लेने वाले अधीक्षक साहब सरकार से लगभग एक लाख रुपया बतौर तनख्वाह लेते हैं।
इस तनख्वाह में 25 से 26 हजार तो रुपये नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस का भी जुड़ा रहता है। यह अलाउंस इसलिए कि डॉक्टर साहब प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करेंगे। लेकिन डॉक्टर साहब हैं कि सरकारी अस्पताल में मरीज देखने की बजाय अपने प्राइवेट क्लिनिक पर ही मरीज देखते हैं। वर्तमान हालात में कोरोना की वजह से सरकार ने सामान्य ओपीडी पर रोक लगा रखी है लेकिन डॉक्टर साहब की ओपीडी पर कोई रोक नहीं है। फीस अदा कीजिये और मरीज दिखाइए।
डॉक्टर साहब पर एक स्थानीय नेता जी की इतनी कृपा है कि पिछले 13 सालों में कई सी एम ओ आये और गए लेकिन तमाम घालमेल के बाद भी कोई इन्हें यहां से हिला नहीं पाया। जब अधीक्षक का यह हाल है तो इनके नीचे काम करने वालों का क्या हाल होगा! मरीजों के हाल के बारे में तो पूछिये ही मत।
13 सालों से प्राइवेट क्लिनिक चलाते चलाते डॉक्टर साहब अब उकता चुके है और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बगल में ही एक बड़ा हॉस्पिटल भी बनवा रहे हैं।
यहां के एक मरीज ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली से तंग और त्रस्त आकर स्वास्थ्य केंद्र के सामने अपनी सेल्फी अपलोड कर मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है। साथ ही डॉक्टर साहब के फीस का विवरण बताते हुए स्टाफ का वीडियो और डॉक्टर साहब का अपनी क्लीनिक पर मरीज देखते हुए वीडियो भी बन चुका है।
यहां के मरीज त्राहिमाम कर रहे हैं। तमाम अखबार और चैनल डॉक्टर द्वारा मैनेज किये जा चुके हैं। इसलिए कोई कुछ छापता दिखाता नहीं है।
देखें संबंधित वीडियो-
गोरखपुर से के. सत्येंद्र की रिपोर्ट.