विश्व दीपक-
अगर राहुल गांधी इतना ही कमज़ोर है तो फिर उससे इतना डरने की जरूरत क्यूं?
क्यूंकि आपको भी पता है श्रीमान कि बात तो वो सही करता है. नोटबंदी से लेकर आज तक, हर मुद्दे पर वो देश की जनता के साथ खड़ा रहा. चाहे पलायन करते मजदूरों का मुद्दा हो, कृषि कानून के खिलाफ़ धरने पर बैठे किसान हों या फिर पुलिस से मार खाते छात्र. राहुल इन सबके पक्ष में बोलता है. इन सबके साथ खड़ा मिलता है. चीन की घुसपैठ पर उसके सवालों ने आपके आत्मविश्वास की हवा निकाल दी है. दम नहीं कि प्रेस का सामना कर सको.
इसलिए उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश कर रहे हो?
अमेरिकी अख़बार “वॉल स्ट्रीट जर्नल” का यह खुलासा बताता है कि किस तरह मल्टीनेशनल कॉरपोरेट मीडिया मंचों का इस्तेमाल करके,भारत सरकार विपक्ष का गला घोंट रही है. फिर वो चाहे विपक्ष की मीडिया हो या राजनीतिक दल.
“वॉल स्ट्रीट जर्नल” ने दो अलग अलग एजेंसियों से इस बात की जांच करवाई कि क्या सचमुच राहुल गांधी के ट्विटर पर फॉलोअर्स नहीं बढ़ने दिए जा रहे?
जवाब खुद, वॉल स्ट्रीट ने बताया है. पिछले साल जब से उनका अकाउंट बंद हुआ, उसके बाद से ऐसा ही हो रहा. अब जाकर राहुल ने ट्विटर को इस बारे में चिट्ठी लिखी. हालांकि जवाब वही रटा रटाया दिया गया.
रीच कम करने का मुद्दा सिर्फ राहुल का नहीं है. कई लोग अक्सर पूछते रहते हैं कि क्या मेरी पोस्ट आपको दिखती है या नहीं.
निजी तौर पर मानता हूं कि अगर ट्विटर का प्रमुख भारतीय ना होकर किसी दूसरी राष्ट्रीयता का व्यक्ति होता तो पारदर्शिता की प्रबल्यता ज्यादा होती.
एक तो भारतीय बनिया, दूसरा इंजीनियर, तीसरा अमेरिकी. पराग अग्रवाल की कुंडली में वो सारे संयोग मौजूद हैं जो यह बताते हैं कि टेक जायंट की सहायता से भारत में लोकतंत्र का गला दबाना कोई असंभव सी बात नहीं.