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सुख-दुख

मोदी 20 हजार को नहीं निकाल पा रहे हैं, 1990 में देश के नेतृत्व ने पौने दो लाख लोगों को रेस्क्यू कराया था!

गिरीश मालवीय-

मोदी 20 हजार को नहीं निकाल पा रहे हैं लेकिन 1990 में भारत सरकार ने पौने दो लाख लोगों को रेस्क्यू किया था। युक्रेन में युद्ध के बीच फंसे मात्र 20 हजार भारतीयों को मोदी सरकार निकाल नहीं पा रही है। मोदी सरकार को महीनो पहले से यह जानकारी थी कि वहाँ हालात किस कदर खराब हो सकते हैं लेकिन उसने न तो तत्काल उड़ान की व्यवस्था की और न ही हवाई किराये में किसी प्रकार की राहत दी।

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आज हालत यह है कि हमारे 20 हजार भाई बहन वहा फंसे हुए हैं,…..मोदी को उनके भक्त विश्व स्तर का नेता मानते हैं लेकिन आज जहां हम 20 हजार लोगो के लिए परेशान हो रहे हैं वही 1990 के दशक में देश के नेतृत्व ने पौने दो लाख लोगो को रेस्क्यू किया था, तब कोई मोदी नहीं था लेकिन तब की सरकार अपनी जनता के प्रति रिस्पोसेबिलिटी को सबसे ऊपर मानती थी।

दो अगस्त 1990 को खाड़ी युद्ध शुरू होने के बाद वहाँ फँसे पौने दो लाख भारतीयों को सुरक्षित तत्कालीन सरकार ने निकाला था। इसके लिए विदेश मंत्री इंदर कुमार गुजराल, अतिरिक्त सचिव आईपी खोसला बग़दाद पहुंचे थे, जहां गुजराल की मुलाक़ात सद्दाम हुसैन से हुई.इस मुलाकात में सद्दाम हुसैन ने गुजराल को गले लगाया था और बातचीत बहुत अच्छी रही थी. इसके बाद सद्दाम ने भारतीयों के रेस्क्यू ऑपरेशन करने की इजाजत दे दी.

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आज युक्रेन में आप 50 फ्लाइट नही भेज पा रहे हो, लेकिन तब 13 अगस्त से 11 अक्टूबर 1990 तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में अम्मान से भारत के बीच करीब पांच सौ उड़ानें भरी गई थीं,

उनमें से एक भी फ्लाइट के बारे में कही आपको यह सुनने को नही मिलेगा कि फंसे हुए लोगो से दुगुना तिगुना किराया लिया गया, और एक बात और, जो भक्त यहां से खाली फ्लाइट भेजने का तर्क देकर दुगुने तिगुने किराए को सही सिद्ध करते है वे बताए कि उस वक्त फिर भारत से भेजी गई गई फ्लाइट में कौन जा रहा था, 500 उड़ाने केसे भरी गई होगी, किसने उन उड़ानों का खर्च उठाया होगा ?

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तब उस वक्त के भारत के दूतावास के कर्मचारी आज युक्रेन के जैसे अपना दफ्तर बंद कर के भागे नही थे बल्कि तब एम्बेसी के अधिकारी रोज वहां के लोकल बस प्रोवाइडर्स से संपर्क करते थे और रिफ्यूजीज को बसरा, बगदाद और अमान होते हुए 2000 किमी. दूर पहुंचाते थे। इस काम में हर रोज 80 बसें लगती थीं।

इसके पीछे काम करती हैं इच्छा शक्ति जो आज की सरकार के पास बिल्कुल भी नहीं है।

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आपको पता होना चाहिए कि एयर इंडिया की मदद से चलाया गया पोने दो लाख भारतीयों को निकालने का यह अभियान दुनिया का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन माना जाता है लेकिन तब के नेताओ में इतनी लाज शर्म थी कि उन्होने उसे चुनावो में भुनाया नहीं था।

और एक बात समझ लीजिए इसी घटना को लेकर जो अक्षय कुमार ने एयरलिफ्ट फिल्म बनाई थी वो बिल्कुल बोगस कहानी थी। कोई राजीव कत्याल टाइप का बिजनेसमैन नहीं था, इस रेस्क्यू ऑपरेशन के असली हीरो एयर इंडिया का चालक दल, एम्बेसी के कर्मचारी और राजनयिक थे।

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Akshat Jain-

डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले बच्चों के लिए यूक्रेन किसी स्वर्ग से कम नही है। भारत मे MBBS करना काफी मुश्किल होता है। सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए प्री मेडिकल टेस्ट में कॉम्पटीशन बहुत ज्यादा होता है जिसे पास करना कठिन है। भारत मे प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फीस भी बहुत ज्यादा है, MBBS का खर्च 50-55 लाख पड़ता है।

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ऐसी स्थिति में भारत के मध्ययमवर्गीय बच्चे MBBS करने के लिए यूक्रेन की तरफ रुख करते हैं। यूक्रेन में 8-10 लाख में MBBS की पढ़ाई पूरी हो जाती है,उसके बाद भारत मे प्रेक्टिस करने के लिए एक MCI का एग्जाम निकालना पड़ता है जो कि बहुत टफ होता है 3-4% पास होने वालों का अनुपात होता है। पर बच्चों के पालक सोचते हैं कि एक बार MBBS हो जाये फिर MCI का एग्जाम तो देर सवेर निकल ही जायेगा।

एक अनुमान के मुताबिक भारत के 18-20 हजार बच्चे यूक्रेन में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जिनमें से हमारे विश्वगुरु प्रधानमंत्री मात्र 250 बच्चों को बचाकर ला पाए हैं। उसमे भी बच्चों से दोगुना किराया वसूला गया।

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जब सारी दुनिया को पता था कि रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है तब हवाई मार्ग बंद होने से पहले यूक्रेन से हमारे बच्चों की सुरक्षित घर वापसी कराने के स्थान पर मोदीजी उत्तर प्रदेश में गोबर से सोना बनाना सिखा रहे थे।

अब भारत की युद्ध प्रेमी मीडिया TRP बढ़ाने के लिए रूस यूक्रेन युद्ध के दृश्य परोसेगी उन दृश्यों के बीच मे कुछ वीडियो गेम की क्लिप्स भी डाल दी जाएंगी। भारत की जनता आह्लादित होकर तालियां बजाएगी। पर यूक्रेन में फँसे हुए उन भारतीय बच्चों के माँ बाप को नींद नही आएगी।

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