सुरेंद्र चौधरी-
2024 का एजेंडा सेट किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार असल रणभूमि है और यहां यादव+कुर्मी+ मौर्य+ मुस्लिम गठजोड़ को तितर बितर करने की कवायद में भा ज पा का शीर्ष नेतृत्व प्रयोग (Experiment) कर रहा है। छत्तीसगढ़, म०प्र०और राजस्थान में अपने स्थापित नेताओं को दरकिनार कर ऐसे चेहरों को कुर्सी पर बिठाया गया है जिनकी आम शोहरत दो चार जिलों तक सीमित रही है।
ऐसा करके केंद्रीय नेतृत्व अपने पसंदीदा अफसरों के जरिए इन राज्यों को सीधे केंद्रीय शासन के अधीन करने की मंशा साफ कर चुकी है।
महीनों से आम चर्चा चल रही है कि उ०प्र० में भी बदलाव करके किसी कुर्मी या मौर्य को कुर्सी पर बिठाया जायेगा ताकि नीतीश कुमार+तेजस्वी+अखिलेश यादव के बढ़ते प्रभाव को लगाम लगायी जा सके लेकिन मुझे संदेह है कि उ०प्र० में योगी जी ऐसे किसी प्रयोग का हिस्सा बनने में अपनी सहमति देंगे। यूपी और बिहार के जाग्रत पिछड़े किसके साथ खड़े होते हैं, ये वक़्त बताएगा!
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
इस प्रचंड जीत के तूफान में मोदी – शाह की जोड़ी ने शिवराज, माधवराव सिंधिया, वसुंधरा राजे सिंधिया जैसे कई महारथियों को आडवाणी गति का शिकार बनाकर कहीं कोने में खिसका दिया. अब वे लाख सर पटकें लेकिन उनकी दशा आडवाणी सरीखी ही रहनी है.
मोदी को इतनी ताकत मिल सके कि वह विपक्ष को ही खत्म कर दें, ऐसी तमन्ना लेकर कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों से भाजपा में जाने वाले जयचंद हों या भाजपा के ही पुराने वफादार दिग्गज, सभी को मोदी की निरंकुश ताकत का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
विपक्ष तो अब नाममात्र के लिए है और जहां है भी , वहां बेहद कमजोर है या मोदी सरकार की रहमदिली की आस लगाए किसी तरह सरकार या अपना दल बचा रहा है.
इसलिए जिनको जिनको आडवाणी गति प्राप्त हो रही है, वे सभी न खुदा मिला न विसाले सनम वाली स्थिति में फंस कर त्रिशंकु बन चुके हैं.
जाहिर है , यह सिलसिला अब थमना नहीं है. कोई बड़ी बात नहीं कि आज विधानसभा चुनावों के बाद राजस्थान का सीएम तय करके खुद को मोदी का सबसे भरोसेमंद समझ रहे राजनाथ सिंह लोकसभा चुनाव के बाद शिवराज, माधवराव सिंधिया और वसुंधरा राजे सिंधिया वाली लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवा कर अगले आडवाणी बन जाएं. सिर्फ वही नहीं, लोकसभा चुनाव में अगर मोदी तीसरी बार जीते तो संघ और भाजपा के कई बड़े महारथियों को इसी लिस्ट में अपना नाम लिखा तय मान लेना चाहिए.
देश इस समय जबरदस्त राजनीतिक परिदृश्य देख रहा है …विपक्ष खात्मे की कगार पर है, सत्ता पक्ष में किसी का राजनीतिक कद या नाम मोदी और शाह के कद और नाम के आसपास फटका तो उसका आडवाणी बनना तय है.
बिल्कुल ऐसी ही निरंकुश ताकत इंदिरा गांधी ने भी एक समय में हासिल कर ली थी. वह तो भला हो जेपी का , जिन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा देकर मरण शय्या पर पड़े लोकतंत्र को इंदिरा तंत्र में बदलने से रोक दिया.
उसी जेपी आंदोलन ने विपक्ष को न सिर्फ ऑक्सीजन दे दी थी बल्कि ऐसी ताकत दे दी थी कि कांग्रेस फिर कभी निरंकुश नहीं हो पाई. जेपी आंदोलन के बाद कांग्रेस ने कई बार सत्ता खोई. खुद भाजपा भी उसी आंदोलन के बाद विपक्ष में अपनी जगह बना पाई थी.
मगर आज जब भाजपा के झंडे तले मोदी – शाह के पास उस वक्त की इंदिरा गांधी से ज्यादा ताकत आ चुकी है तो कोई जेपी भी कहीं दूर दूर तक चिराग लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिल रहा …