Ambrish Kumar : कल जंतर मंतर पर जन संसद में कई घंटे रहा. दस हजार से ज्यादा लोग आए थे जिसमें बड़ी संख्या में किसान मजदूर थे. महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. झोले में रोटी गुड़ अचार लिए. मंच पर नब्बे पार कुलदीप नैयर से लेकर अपने-अपने अंचलों के दिग्गज नेता थे. अच्छी सभा हुई और सौ दिन के संघर्ष का एलान. बगल में कांग्रेस का एक हुल्लड़ शो भी था. जीप से ढोकर लाए कुछ सौ लोग. मैं वहां खड़ा था और सब देख रहा था. जींस और सफ़ेद जूता पहने कई कांग्रेसी डंडा झंडा लेकर किसानों के बीच से उन्हें लांघते हुए निकलने की कोशिश कर रहे थे जिस पर सभा में व्यवधान भी हुआ. एक तरफ कांग्रेस में सफ़ेद जूता और जींस वालों की कुछ सौ की भीड़ थी तो दूसरी तरफ बेवाई फटे नंगे पैर हजारों की संख्या में आये आदिवासी किसान थे.
दिल्ली में व्यस्तता के चलते लिखने का मौका नहीं मिला. सोचा आज कहीं से खबर देख लूंगा. पर अफ़सोस, लाखों की प्रसार संख्या वाले दिल्ली के बीस बड़े अखबारों में यह खबर नहीं आई. ऐसा एक मित्र ने बताया. दो चार हजार प्रसार वाले अखबार की बात मैं नहीं कर रहा हूं. मुख्यधारा के बड़े अखबारों की बात कर रहा हूँ. यह मीडिया का वह मोतियाबिंद है जिसके आपरेशन का समय आ गया है. कांग्रेस के हुल्लड़ किस्म के कुछ सौ लोगों के शो की बड़ी खबर जनसत्ता के पहले पेज पर है. बाकी, चैनलों से ज्यादा उम्मीद कोई करता भी नहीं है.
वैकल्पिक मीडिया से तो हम सभी जुड़े हैं और लिखते भी हैं पर अभी उसकी व्यापक राजनैतिक ताकत नहीं बनी है. दूसरे ज्यादातर सामग्री बिना संपादन की होती है. इसके अलावा तथ्यों के आधार पर गंभीर रपट कम लिखी जाती है. निजी हमलों पर ज्यादा जोर रहता है. इसके चलते अभी इसकी वह साख नहीं बन पा रही है. पर बनेगी धीरे धीरे.
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Abhishek Srivastava : जमीन लूट अध्यादेश के खिलाफ़ 24 फरवरी को हुई रैली में सिर्फ अन्ना को प्रोजेक्ट किया गया, लाल झंडे छोटे परदे पर सिरे से ब्लैकआउट कर दिए गए। कल संसद मार्ग पर AIPF की जन संसद थी, लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस ने प्रदर्शन कर दिया और एक बार फिर वही हुआ। सब चैनलों ने कांग्रेस की रैली दिखायी, लाल झंडे नदारद। कल शरद यादव बीमा विधेयक के खिलाफ़ लगातार बोलते रहे लेकिन उसमें से चार मिनट के हिस्से को उठाकर बवाल खड़ा कर दिया गया। हर चैनल ने उनके खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया लेकिन मूल संदर्भ ही गायब। आज बंगाल के एक सांसद ने नन से हुए बलात्कार की चर्चा करते हुए लोकसभा में जैसे ही बीजेपी द्वारा बनाए जा रहे सांप्रदायिक माहौल का जिक्र किया, उन्हें बैठा दिया गया। उलटे वेंकैया नायडू को यह बोलने का मौका दिया गया कि बीजेपी सांप्रदायिक नहीं है।
संसद के बाहर गोली मारी जा रही है, बलात्कार हो रहे हैं और सारे जेनुइन विरोध को टीवी चैनल पचा जा रहे हैं। लोकसभा के भीतर स्पीकर केंद्र सरकार के एजेंट का काम कर रही हैं और विरोधियों को बोलने नहीं दे रही हैं। किसी ने नहीं पूछा कि कल नागपुर में आरएसएस की प्रतिनिधि सभा की जो बैठक संपन्न हुई, उसमें बीजेपी से कौन-कौन गया था। कोई हमें और आपको नहीं बताएगा कि तीन दिन तक चली इस बैठक में एक शब्द इस्तेमाल किया गया है, ”प्रैक्टिकल हिंदू राष्ट्र”। हिसार से लेकर बंगाल तक हालांकि प्रैक्टिस जारी है, इतना तो दिख ही रहा है। अब हमें भारत की राजनीतिक व्यवस्था को संसदीय लोकतंत्र कहना बंद करना चाहिए। यह एक ”प्रैक्टिकल हिंदू राष्ट्र” है, जिसे ”संवैधानिक हिंदू राष्ट्र” बनाने का संकल्प कल नागपुर में पारित किया जा चुका है।
इसका एंटी-क्लाइमैक्स यह है कि आरएसएस की सालाना रिपोर्ट में कैलाश सत्यार्थी से मोहन भागवत की मुलाकात का जि़क्र करते हुए उन्हें बधाई भेजी गई है और मरहूम कामरेड गोविंद पानसरे व नरेंद्र दाभोलकर को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई है। बहरहाल, ये सिर्फ सूचनाएं भर हैं। मैं किसी को लघु प्रेम कथाओं और बेदाद-ए-शादी का जश्न मनाने से थोड़े रोक रहा हूं। जाइए जश्न-ए-रेख्ता में, चिपकाइए अश्लील तस्वीरें, गाइए चैता, पादिये शायरी…। मैं अब कुछ नहीं कहूंगा।
वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार और अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.
राकेश भारतीय
March 18, 2015 at 3:08 pm
पत्रकारिता नहीं अब बडे समाचार पत्र शुद कमाई का साघन बन गए है और इनके मालिक विशुद व्यापारी थू
बहुत कम लोग रह गए है पत्रकार महेनत करके स्टोरी लाते है और यह लोग उस पर अपनी ूरोटी संकते है हम आपकी बात से सहमत है की व्क्ल्पिक पत्रकारिता का समय आयगा