दिल्ली : वरिष्ठ कवयित्री इला कुमार के पाँचवें काव्य-संग्रह “आज पूरे शहर पर” का लोकार्पण पिछले दिनों हिन्दी भवन / दिल्ली में किया गया. कला सम्पदा एवं वैचारिकी की ओर से हिंदी भवन / दिल्ली में आयोजित लोकार्पण कार्यक्रम में एक विचारगोष्ठी की शुरुआत करते हुए विजयशंकर ने इला कुमार की काव्य –पुस्तकों (ठहरा हुआ एहसास, जिद मछली की, किन्हीं रात्रियों में, कार्तिक का पहला गुलाब) एवं उपन्यास तथा अनुवाद (रिल्के और लाओ त्ज़ु) के साथ-साथ उपनिषद कथाओं और हिन्दुत्व से सम्बंधित पुस्तकों का रचनाकार बताते हुए उनके महत्वपूर्ण साहित्यिक अवदान की चर्चा की.
विजय शंकर ने जनमानस के मन से कविता की बढती दूरी पर चिंता व्यक्त की. कवयित्री सविता सिंह ने कविता, स्त्री विमर्श के संतुलन और सौंदर्य से अपनी बात शुरू करके कहा कि कविता के साथ स्त्री का सम्बंध अपने सेल्फ के साथ सम्बन्ध होने जैसा है, जबकि पुरुष का कविता के साथ सम्बन्ध वैसे ही है जैसे किसी अन्य के साथ. उन्होंने इला कुमार की कविताओं में बचपन के आह्लाद और अकेलेपन की उदासी को चिह्नित किया. आलोचक ज्योतिष जोशी ने कहा, ‘मैंने पूरे संग्रह को दो-दो बार पढ़ा. इस संग्रह की कविताओं को स्त्री या पुरुष द्वारा लिखी गई न कहकर मात्र कवि द्वारा लिखित कहा जाना चाहिए. ये प्रचलित फ्रेम से हटकर लिखी गईं कविताएं हैं और यह आज की मंचीय कविता–पाठ से अलग किस्म का पाठ है.” उन्होने कई कविताओं का जिक्र किया – समवाद, कहा मैंने शहर से, आज का कवि, मध्य रात्रि के बीच आदि.
संचालक ओम निश्चल कार्यक्रम के संचालन के नियमों को ध्वस्त करते हुए लगातार पच्चीस मिनटों तक बोले लेकिन लोकार्पित संग्रह पर उन्होंने नहीं के बराबर बोला. साहित्यकार धनंजय कुमार ने मंच की तरफ से इस विसंगति के बारे में असंतोष व्यक्त किया.
अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री कृष्णदत्त पालीवाल ने कवि की अंतर्दृष्टि और द्रष्टा भाव के साथ-साथ कविताओं की पठनीयता की तरफ संकेत किया. उन्होंने संग्रह की कविताओं के बीच सूर्य और सूर्यबिम्बों के दुहराव को भी इंगित किया. कविता को समर्पित इस कार्यक्रम में उमेश वर्मा, सुरेन्द्र ओझा, डा. वेदप्रकाश, मृत्युन्जय कुमार, अनुराग सचान, बिपिन चौधरी, डा. हर्षबाला, डा. प्रिया शर्मा, अनिल जोशी, सरोज जोशी, नरेश शांडिल्य, गीताश्री, अमृता ठाकुर आदि उपस्थित थे.