Vineet Kumar : नवरात्र के दौरान विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित करवाने के संदर्भ में;
परम आदरणीय जनरल वी.के.सिंहजी
जय हिन्दी
जय भारत
विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के.सिंह साहब, आपने दुरुस्त ही फरमाया है कि विश्व हिन्दी सम्मेलन में लोग शराब पीने जाते हैं. हजूर, राष्ट्र और सरकार का अपमान न हो तो बस इतना कहना चाहूंगा कि आप आचमनकर्ता हिन्दी प्रेमियों (जो आपके हिसाब से शराबी लेखक हैं) को आखिर बुलाते ही क्यों हैं? जब मेरे पास दर्जनभर से ज्यादा ऐसे लेखकों की सूची है जो शराब क्या, बोतल की ठेंपी तक को हाथ नहीं लगाते तो आपके पास तो खतियान होगी जिसमे लेखक के पूर्वजों के भी ट्रैक रिकार्ड होंगे..उन्हें ही बुलाएं.
नैतिक-अनैतिक, सहमति-असहमति की बहस में पड़े बिना हजूर, एक राय और देना चाहूंगा..आपलोग विश्व हिन्दी सम्मेलन नवरात्र में आखिर क्यों नहीं करवाते? मेरा आत्मविश्वास कहता है कि मातारानी के प्रकोप से शराब तो शराब, प्याज-लहसन तक हाथ नहीं लगाएगा और गर सिकुलर टाइप के लेखक ने लगा भी दिया तो उन्हें हिन्दीद्रोही करार देना कौन सी मुश्किल बात है..आपने इधर हिन्दीद्रोही घोषित किया नहीं कि फेसबुक पर हिन्दीप्रेमी उन्हें अपने आप राष्ट्रदोही घोषित कर देंगे…और वैसे भी हिन्दी में मुसलमान, इसाई या दूसरे धर्म-संप्रदाय के लोग हैं ही कितने की उनकी अतिरिक्त चिंता या व्यवस्था की जाए.
हजूर, एक बात और..आपने तो सिर्फ मदिरापान का जिक्र किया..कुछ लोग तो राष्ट्रीय संस्कृति एवं परंपरा को ढाहने का काम करते आए हैं. ऐसे-ऐसे हिन्दीप्रेमी विश्व हिन्दी सम्मेलन में बुलाए जाते रहे हैं जो कि जोहन्सबर्ग जाकर हिन्दी परिचर्चा के बजाय शेर-शेरनी के संभोग की तस्वीर खैंचकर फेसबुक पर परोसते रहे. अब आप ही बताइए, हमारी संस्कृति तो इतनी उदार और पर्दानशीं रही है कि सांप-सांपिन को भी तालकि-भेलकि करते दिख जाए तो टोकरी ढंक देते हैं. ऐसे में वन्य-प्राणियों की निजता का हनन कहां तक उचित है ?..और क्या उनकी आंखें वन्य-प्राणियों की निजी पलों के अवलोकन तक सीमित रह जाती होंगी ?
मुझमे तो इतना नैतिक साहस नहीं है कि ये सवाल करुं कि आखिर हिन्दी लेखकों की ऐसी हालत करी किसने है कि शराब के लिए विश्व हिन्दी सम्मेलन का इंतजार करना पड़ता है. क्या पता ऐसी हालत में होते कि कभी भी इच्छानुसार घर बैठकर पी पाते तो आपको ऐसी टिप्पणी करके हिन्दी लेखकों का सामूहिक सम्मान करने की नौबत न आती..वैसे जो घर बैठकर पीते हैं, उन्हें लो प्रोफाइल का माना जाता है लेकिन हिन्दी लेखक के तो पब्लिक प्लेस में पीकर भी प्रोफाइल के परखच्चे उड़ गए.
हजुर, हमारे कुछ हिन्दीसेवी मित्र विश्व हिन्दी सम्मेलन जाने से वंचित रह जाते हैं, वो मलेटरी के अपने दोस्तों की मदद से कैंटीन की राह लेते हैं. देश की सेना जिस भारतमाता की रक्षा करती है, वही सेना हम हिन्दीसेवी मित्रों की इस तलब का संरक्षण करती है..हम आपकी इस समझ और क्षमता के आगे नतमस्तक हूं हजूर कि लोककथाओं की तरह प्रचलित ये बात कि सेना में शरीर में गर्मी पैदा करने के लिए शराब दी जाती है लेकिन आपने नैतिक आग्रह के आगे शरीर की जरुरत को नजरअंदाज किया. हिन्दीसेवी इसमे फिसल गए. वावजूद इसके इनकी इस चूक को वैष्णव की फिसलन मानकर इस सिरे से विचार नहीं किया जा सकता कि मदिरा सेवन की बात को शामिल करके दरअसल हिन्दीसेवियों को हजूर की तरफ से बौना करने का काम किया गया है. हम जैसे कीबोर्डिए हजूर की इस प्रतिभा के शुरु से कायल रहे हैं कि प्रतीक-बिंब विधान योजना में प्रयोगवादी कवियों को भी बाजरे की जूस पिला देते हैं. जूट पत्रकारिता के मुहावरे से आगे प्रेसटीट्यूट रुपक गढ़ लाते हैं.
लेकिन रुपक और बिंब विधान ही प्रतिभा है तो मदिरा के सवाल को पीछे नहीं किया जा सकता..फिर भी आपको लगे तो..
हजूर, अब आखिरी बात. आप जिन हिन्दीसेवियों को विश्व हिन्दी सम्मेलन में बुलाते हैं, उनके साहित्यिक योगदान पर गौर करने( वैसे भी गौर किया कब गया है) से पहले कडकडडूमा, तीस हजारी या ऐसे ही किसी कोर्ट से एफिडेविड बनवाकर लाना अनिवार्य कर दिया जाए जिसमे ये स्पष्ट लिखा हो कि फलां लेखक शराब पीता क्या, छूता तक नहीं है.. रचना करते वक्त भी इसने कभी मदिरा को हाथ तक नहीं लगाया. इनकी लाइब्रेरी में मधुशाला की प्रति या हालावाद पर कोई पुस्तक नहीं है. उसके बाद साहित्य अकादमी एनओसी जारी करे, वही यहां जाने योग्य माना जाए.
इतनी दलील बस इसलिए हजूर कि हम इस योग्यता के रहते भी वंचित रह गए, हमे बुलाइए, हम बस चखना के दम पर सम्मेलन की शोभा बढ़ाएंगे, राष्ट्र निर्माण के सपने को शिरकत करके चमका देंगे.
आपका
चखनालंबी हिन्दी सेवी
विनीत कुमार
इन्द्रप्रस्थ
09.09.2015
मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से.