भाजपा के छद्म राष्ट्रवाद की बदौलत देश में लागू हुआ अधिनायकवादी निजाम का अघोषित आपातकाल!

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बात 2-3 साल पहले की है, उन दिनों उत्तराखंड के हल्द्वानी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, बागेश्वर आदि शहरों में कार चोरों का एक गिरोह नई-नई कारों की चोरी करने में सक्रिय था। कार के ऑटोमेटिक लॉक को चुटकी में तोड़ कर उड़ा ले जाने में माहिर गिरोह से परेशान लोगों का पुलिस-प्रशासन पर भारी दबाव था। पुलिस का कहना था कि लोग सावधान रहें और अपने वाहनों की सुरक्षा खुद करें क्योंकि ताला लगाने के बावजूद वाहन चोरी हो सकता है। अपनी बात की पुष्टि और जन-जागरण के लिए पुलिस ने ताला लगे वाहन को चोर कैसे उड़ा ले जाते हैं, इसका एक लाइव डेमो देने को हल्द्वानी में एक सार्वजनिक प्रदर्शन आयोजित किया। जिसकी अखबारों में पूर्व-घोषणा करके अधिक से अधिक लोगों को यह तमाशा देखने का न्यौता भी दिया गया।

बड़ी भारी संख्या में लोग कोतवाली में नियत समय पर पहुँचे। बरामदा, आंगन, चबूतरा से लेकर बाहर मुख्य सड़क तक कहीं तिल धरने को जगह नहीं। तब शहर कोतवाल ने ऐलान किया–‘‘अपने दोपहिया का ताला शहीद कराने के ख्वाहिशमंद सज्जन अपने वाहन को सामने खड़ा कर दें।’’ इसके लिए अनेक नौजवान तैयार हो गये। उनमें से एक बाइक को कहीं बाहर से बुलाये गये विशेषज्ञ के हवाले कर दिया गया। एक्सपर्ट ने सबके देखते-देखते बमुश्किल एक मिनट के अन्दर एक छोटे से पेचकश की सहायता से एक ही झटके में उसका लॉक तोड़ कर दिखा दिया। फिर बारी आयी कार की। इसका भी ताला उसने सबके सामने तीन मिनट में तोड़ डाला। उसकी इस दक्षता को देख सभी को समझ आ गया कि वाहन में ताला लगा होने पर भी उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। इस प्रदर्शन से लोगों के बीच पुलिस की छवि में सुधार और लोगों की सजगता से वाहन-चोरी की घटनाओं में कुछ हद तक कमी जरूर आई।

निश्चित ही पुलिस का वह प्रदर्शन उसकी कानूनी सीमाओं के दायरे से बाहर था, लेकिन जनता को सावधान करने और उसके बीच अपनी विश्वसनीयता तथा पारस्परिक सम्बंधों के लिहाज से वह आयोजन न केवल उपयोगी साबित हुआ, बल्कि उसको सहयोग देने भीड़ में से अनेक लोग अपने वाहनों के ताले तुड़वाने को सहर्ष आगे भी आये। अब, मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी। जैदी साहब न तो इस तरह के कोई जनापेक्षी काम करने वाले अधिकारी हैं और न उनसे टीएन. शेषन की तरह खुला खेल फर्रूखाबादी खेलकर बिगड़ैल शासक वर्ग को काबू कर उसकी औकात बताने की हिम्मत दिखाने की ही आशा की जा सकती है। शेषन ने 17 साल तक अपने सांगठनिक चुनाव न कराने वाली कांग्रेस और 11 वर्षों तक उच्च स्तर से निचले पदाधिकारियों को मनोनीत कर संगठन चलाने वाली भाजपा को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने का दुस्साहस दिखाया। संगठन के चुनावों को तय समय-सीमा के भीतर कराने के शेषन के आदेश को कांग्रेस ने थोड़ी ना-नुकर के बाद स्वीकार कर सांगठनिक चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी थी लेकिन भाजपा ने इसे अपना आंतरिक मामला बताते हुए उल्टा निर्वाचन आयोग से ही पूछ डाला था कि हमें इस तरह का दिशा-निर्देश देने वाले आप कौन होते हैं? तब शेषन साहब ने थोड़ा सख्त लहजे में जवाब दिया कि बतौर एक राजनीतिक दल आपने निर्वाचन आयोग में पंजीकरण कराते समय पार्टी का मैमोरेंडम और नियमावली जमा की थी, उसके हिसाब से निर्धारित समय के अन्दर संगठन के चुनाव कराना आपकी जिम्मेदारी है। यदि आप ऐसा नहीं करते तो निर्वाचन आयोग अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आपका चुनाव चिह्न जब्त कर सकता है और आपकी मान्यता भी रद्द कर सकता है। इस पर भाजपा नेतृत्व के होश ठिकाने लग गये और उसने भी कांग्रेस की राह पकड़ी। शायद जैदी साहब को भी यह वाकया याद होगा।

हालांकि देश में एक सोची-समझी रणनीति के अनुसार ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है, जिसमें ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया’ की तर्ज पर ‘मोदी ही भारत हैं और भारत ही मोदी है’ का जबरिया भाव-प्रदर्शन करके एक व्यक्ति की सत्ता की हनक के आगे सभी नत-मस्तक होने को विवश कर दिये जायें। एक-एक कर सारे कायदे-कानून, नीति, नियम, लोकतांत्रिक मर्यादाऐं, परंपराऐं पूरी निर्लज्जतापूर्वक ध्वस्त कर एक आदमी के आगे सभी बौने बनाये जा रहे हैं। एक-एक कर देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं और प्रशासनिक अमले में सत्ता के शीर्ष पर विराजमान एक व्यक्ति का खौफ गहराता जा रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास करने सम्बंधी रजिस्टर को सार्वजनिक करने का आदेश देने वाले सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु की भूमिका अचानक बदली गई? मुख्य सूचना आयुक्त आरके. माथुर ने आचार्युलु से मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े मामले वापस क्यों ले लिए? देश में वित्तीय मामलों की सर्वोच्च स्वायत्तशासी संवैधानिक संस्था–रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को दर किनार कर प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा स्वयं क्यों कर डाली? वित्तमंत्री के अधिकारों का अतिक्रमण कर मोदी ने नव-वर्ष की पूर्व-संध्या पर वैसी तमाम घोषणाऐं क्यों कर डालीं जिस तरह अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री करते रहे थे?

स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और उनकी मंत्रीमंडलीय सहयोगी स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता आज भी संदेह के परे नहीं है। स्मृति का फर्जी डिग्री मामला दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री जीतेन्द्र तोमर के ही समान होते हुए भी उनका किसी ने क्या बिगाड़ लिया। तोमर के खिलाफ आनन-फानन मामला दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस द्वारा उस कक्ष तक ले जाना जहाँ उन्होंने कथित तौर पर परीक्षा दी थी, क्या यह साबित नहीं करता कि जिसके हाथ में लाठी, भैंस भी उसी की होगी?

लगभग साल भर पहले नरेन्द्र मोदी की डिग्री का ब्यौरा सार्वजनिक करने का आदेश देने वाले सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने दिल्ली विवि. को यह जानकारी देने का आदेश दिया था। उनके द्वारा वर्ष-1978 में दिल्ली विवि. से बीए पास करने वाले छात्रों के बारे में रिकॉर्ड सार्वजनिक करने का आदेश दोबारा देने के तुरंत बाद मुख्य सूचना आयुक्त ने किसके दबाव में सूचना आयुक्तों के बीच कामों के बँटवारे में बदलाव वाला आदेश जारी करते हुए सम्बंधित उप-रजिस्ट्रार को आदेशित किया कि वे आचार्युलु को लंबित सभी मामलों की सुनवाई के लिए जारी की गई फाइलों को सम्बंधित रजिस्ट्रार के पास तत्काल हस्तांतरित करें।

इस आदेश से तब सभी हैरत में पड़ गये थे क्योंकि केन्द्रीय सूचना आयोग में कार्यरत 10 सूचना आयुक्तों में आचार्युलु का रिकॉर्ड सबसे बेहतर रहा था। वर्ष-2016 में सर्वाधिक 3,197 मामलों का निस्तारण करने वाले आचार्युलु ने भाजपा नेता विजेन्द्र गुप्ता की पत्नी का पेंशन घोटाला सुनवाई के दौरान ही पकड़ लिया था। उसके अलावा राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार के अंतर्गत लाने के मामले की सुनवाई के दौरान इन्होंने ही सभी राष्ट्रीय दलों को केन्द्रीय सूचना आयोग में तलब करवाया था।

शायद अब बारी है निर्वाचन आयोग की। लगता है इसके मुखिया नसीम जैदी को आचार्युलु बन जाने का डर सता रहा है। तभी तो वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता पर लगे प्रश्नचिह्नों को मिटा डालने को स्वयं पारदर्शी व्यवस्था बनाकर राजनीतिक दलों को खुला आमंत्रण नहीं देते कि वे इन्हें हैक कर दिखायें। जिस तरह उन्होंने इन मशीनों की जांच हेतु मनमानी शर्तें  थोप दी हैं, उससे न तो मशीनों को लेकर उठाई शंकाओं का निवारण संभव है और न निर्वाचन आयोग की मंशा ही संदेह के परे मानी जायेगी। आखीर कोई तैराक शरीर पर भारी पत्थर बांध कर भरी नदी कैसे तैर कर पार कर सकेगा।

हालिया विधानसभा चुनावों में ईवीएम मशीनों के हैक करने की आशंकाओं के चलते निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को आपत्ति दर्ज करने के लिए कुछ शर्तों के साथ समयबद्ध न्यौता दिया। आयोग ने 12 मई को एक सर्वदलीय बैठक के बाद घोषणा की थी कि वह राजनीतिक दलों की चुनौती स्वीकार करते हुए उन्हें अपने इस दावे को साबित करने का मौका देगा कि फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल हुई ईवीएम से छेड़छाड़ की गई थी या इसमें छेड़छाड़ की जा सकती है। इसके साथ ही आयोग ने चैलेंज के लिए कुछ शर्तें भी रखी थीं। उनमें से एक शर्त यह थी कि ईवीएम चैलेंज में मशीन के मदरबोर्ड से छेड़छाड़ की अनुमति नहीं मिलेगी।

आम आदमी पार्टी (आप) और बसपा द्वारा लगाए गए ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों को निर्मूल साबित करने के लिए निर्वाचन आयोग ने तीन जून को सुबह 10 बजे से दोपहर दो बजे तक चुनौती की घोषणा की है। इस चुनौती में भाग लेने को पंजीकरण की अंतिम तिथि 26 मई थी। निर्वाचन आयोग के अनुसार समय-सीमा की समाप्ति तक आठ दलों में से केवल राकांपा और माकपा ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। राजद का आवेदन समय-सीमा के बाद मिला इसलिए उसे खारिज कर दिया गया। इसके अतिरिक्त भाकपा, माकपा, भाजपा और राजद ने चुनौती को देखने की इच्छा जतायी है। जबकि इस आशंका को पुरजोर तरीके से उठाने वाली आप और बसपा ने इससे दूरी बना ली है।

आप ने शुक्रवार को इसे नाटक बताते हुए कहा कि वह इसमें भाग नहीं लेगी। पार्टी ने यह भी सवाल उठाया है कि चुनाव आयोग बिना किसी बाधा के खुले रूप से मशीन को हैक करने की छूट देने के अपने वादे से क्यों मुकर रहा है? आप नेता गोपाल राय ने कहा है, “यह हैक करने का कार्यक्रम नहीं है। इस नाटक में हिस्सा क्यों लेना? उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी मौजूदा संदर्भ में ईवीएम हैक करने की चुनौती को स्वीकार नहीं करेगी।” आप का यह फैसला निर्वाचन आयोग द्वारा उसकी यह मांग खारिज करने के संदर्भ में आया है जिसमें उसने आयोग से ईवीएम हैक करने के नियमों पर पुनर्विचार करने और हैकिंग के दौरान उसे ईवीएम को खोलकर उसके मदरबोर्ड तक एक्सेस देने की मांग की थी, जिसे आयोग ने ठुकरा दिया था।

एनसीपी की राज्यसभा सांसद वंदना चह्वाण का कहना है-“अभी तक किसी ने ईवीएम को हैंडल नहीं किया है। कोई नहीं जानता कि उसका सर्किट कैसा है और उसकी कंप्यूटिंग कैसे होती है। मशीन हाथ में आने के बाद उसे समझने, उसका अध्ययन करने, डिकोडिंग व रिवर्स इंजीनियरिंग कैसे करना है, मशीन हैक या टैंपर हो रही है या नहीं, इसका अध्ययन करने को लंबे वक्त की ज़रूरत है। मैं चैलेंज में जाने से पहले ही कहती हूं कि हम इन चार घंटों में कुछ नहीं कर सकेंगे। अभी दुनिया भर में जो वायरस फ़ैला हुआ है वह कहां से आया, यही समझ में नहीं आ रहा है। तमाम विशेषज्ञों के रहते हम ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इसमें लंबा वक्त लगता है। इसमें ऐसा होना चाहिए था कि ‘चेचक का एक भी मरीज़ दिखाइए, हम आपको एक लाख रुपए इनाम देंगे।’ अगर चुनाव आयोग गंभीर है तो उसे आइटी क्षेत्र के युवाओं को खुली चुनौती देनी चाहिए थी कि आप ईवीएम हैक करके दिखाइए और हम आपको पुरस्कार देंगे।”

सीपीएम के सांसद मोहम्मद सलीम–“ये चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच चुनौती का मामला नहीं था। आयोग व्यर्थ ही चुनौती के रूप में आ गया। यह स्पष्ट होना चाहिए कि हमने ‘ए’ व्यक्ति को वोट डाला है तो वह ‘ए’ को ही मिला है। पूरे विश्व और हमारे देश में यह बात कई बार उठी है। आज चुनाव आयोग जिस चुनौती की बात कर रहा है वह अधूरी है। वे मदर बोर्ड में हाथ नहीं लगाने देंगे और ईवीएम को पहले देंगे नहीं, फिर कहेंगे कि आप दूर से क्या कर सकते हो। आज दुनिया में कोई भी तकनीक फूल प्रूफ़ नहीं है। यह सिर्फ़ राजनीतिक मामला नहीं है, बल्कि तकनीक से जुड़ा मामला है।”

ईवीएम हैकिंग को लेकर आम आदमी पार्टी सबसे मुखर थी। दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने विधानसभा में ‘डेमो’ देकर बताया था कि हैकिंग संभव है। हालांकि तब भी चुनाव आयोग ने कहा था कि इस मशीन से किसी तरह की छेड़छाड़ संभव नहीं है।

आप ने आयोग को पत्र लिखकर यह आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग अपनी ईवीएम हैक करने की चुनौती से पीछे हट रहा है। आप का कहना है कि हमेशा लोकतंत्र की रक्षा करने वाला चुनाव आयोग देश की चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ईवीएम हैक करने की खुली छूट क्यों नहीं दे रहा है।

इसके प्रत्युत्तर में चुनाव आयोग का कहना है कि मशीन के मदरबोर्ड या अंदरूनी पुर्जों को बदलना अपने आप में पूरे उपकरण को ही बदलने जैसा है। ईवीएम के मदरबोर्ड या इंटरनल सर्किट को बदलने की इजाजत देने का मतलब हुआ कि किसी को भी नई मशीन बनाने की अनुमति दे दी जाए या चुनाव आयोग के सिस्टम के तहत नई ईवीएम मशीन को लाने की इजाजत दे दी जाए। यह अकल्पनीय और अतार्किक है।

इस प्रकार जब खेल के सारे नियम एक ही खिलाड़ी तय करेगा तो परिणामों की सहज कल्पना की जा सकती है। मशीन भी निर्वाचन आयोग की और हैकर की पहुँच किन बटनों तक होगी इसका निर्धारण भी वही करेगा तो मामले पर छाये संदेह के बादल कैसे हटेंगे क्योंकि कोई भी हैकर मशीन हैक करने के लिए कुछेक बटनों तक ही सीमित नहीं रहेगा।
इस ईवीएम मशीन प्रकरण में साफ जाहिर है कि निर्वाचन आयोग किसी दबाव में है जिसके चलते वह इस चुनौती को पूरी ईमानदारी से बेधड़क खुला खेल फर्रूखाबादी स्टाइल में नहीं खेल पा रहा है। इसीलिए किसी अप्रिय की आशंका से ग्रस्त जैदी साहब ईवीएम मशीन हैकिंग की खुली चुनौती का सामना करने से कतरा रहे हैं। शायद उन्हें भय है कि यदि वे इस चुनौती को खुले मन से स्वीकार कर लें तो इससे हाल ही सम्पन्न हुए पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों की असलियत सामने आने से देश के राजनीतिक समीकरण प्रभावित होने का नुकसान उन्हें भी उठाना पड़ेगा।

कुल मिलाकर भाजपा के छद्म राष्ट्रवाद की बदौलत देश में आये इस अधिनायकवादी निजाम में हो रहे सत्ता के केन्द्रीकरण से देश अघोषित आपात्काल की ओर बढ़ रहा है, यह दिन के उजाले की तरह एकदम स्पष्ट है। ऐसी आशंका भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पहले ही जता चुके हैं। ये बदलाव भी इसी प्रकार की संभावनाओं की ओर संकेत कर रहे हैं।

श्यामसिंह रावत
वरिष्ठ पत्रकार, उत्तराखंड
ssrawat.nt@gmil.com



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