Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

“बातें कम, काम ज्यादा” के बाद अघोषित इमरजंसी में “बातें ज्यादा, काम कोई नहीं”

संजय कुमार सिंह

वैसे तो आज कई खबरें लीड लायक हैं और पहले पन्ने की एक जरूरी खबर को मेरे सात अखबारों में सिर्फ एक, द हिन्दू ने खेल के पन्ने पर छापा है। हालांकि, पहले पन्ने पर इसकी सूचना भी है। यहां ब्रजभूषण सिंह के समर्थक के डब्ल्यूएफआई का अध्यक्ष चुने जाने  की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। आज के अखबारों के पहले पन्ने की खबरों से लग रहा है कि अखबारों के लिए भी खबरों को छिपाना मुश्किल हो रहा है पर वह एक दिन की खबरों से तय नहीं होगा। जैसे आज इस खबर को दो हिस्सों में करके किया गया है। मैं आगे भी देखता और बताता रहूंगा। फिलहाल, आज पुंछ में चार सैनिकों के शहीद होने की खबर से इमरजेंसी का नारा याद आया, “बातें कम, काम ज्यादा”। आपको चाहे जितनी बुरी लगी हो, नारा सही था और इसका पालन होता था। इन दिनों, “बातें ज्यादा, काम कोई नहीं” वाली अघोषित स्थिति है। इसलिए भी इसे अघोषित इमरजेंसी कहा जाता है पर वह अलग मुद्दा है। आगे बातों के लिए आप प्रचार भी पढ़ सकते हैं। वैसे भी, सरकार प्रचारकों की है और मुद्दा वही है।

दस साल में “बातें ज्यादा, काम कोई नहीं” के कई उदाहरण हैं। आज भी अखबारों के पहले पन्ने की ही बात पहले करूंगा। कहने की जरूरत नहीं है कि अनुच्छेद 370 हटाने, घुस कर मारने और आतंकवाद खत्म करने के दावों के बावजूद कश्मीर में हमले गंभीर चिन्ता की बात है लेकिन जारी है और इसे दावों के बावजूद घट रही त्रासदी के रूप में पेश नहीं किया जाता है। आज अकेले टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने पर लीड खबर के साथ प्रमुखता से बताया है कि दो साल में पुंछ राजौरी क्षेत्र में मरने वालों की संख्या 34 हो गई है। यही नहीं, महीने भर पहले पांच लोग और शहीद हुए थे। इस बार घात लगाकर हमले की यह वारदात तब हुई है जब वे एक संयुक्त ऑपरेशन के लिए जा रहे थे। पिछली बार की वारदात भी ऐसी ही थी। खास बात यह है कि आतंकवाद खत्म करने के दावों के बावजूद यह स्थिति है और दावा यह किया जा रहा है कि ब्रम्हांड की कोई ताकत अनुच्छेद 370 को वापस नहीं करा सकती है लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि अनुच्छेद 370 हटाने से फायदा क्या हुआ या जो हुआ उसके बावजूद अगर आतंकवादी हरकतें नहीं रुक पा रही हैं तो दावों का क्या मतलब है।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

संभव है यह सरकार की नीतियों या कमजोरियों के कारण हो पर जनता को तो सरकार के दावों की ही जानकारी दी जाती है और उससे वे डबल इंजन की सरकार चुनने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। दूसरी ओर, देश की मुश्किलें सिर्फ नारों और कागजों में दूर करने का दावा किया जा रहा है। खबरें दबा कर न भी की जा रही हों तो खबरों को प्रमुखता नहीं देकर सरकारी दावों को चुनौती का संदेश तो रोक ही लिया जा रहा है। पर बात उसकी नहीं, “बातें ज्यादा, काम कोई नहीं” की है। जो अखबार नहीं के बराबर बताते हैं। यही नहीं उपराष्ट्रपति और उनके जाट होने के कारण जाटों के कथित अपमान और उसमें प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति की सक्रियता के बावजूद ओलंपिक खिलाड़ी साक्षी मलिक ने कल कुश्ती छोड़ने की सार्वजनिक घोषणा रोते हुए की। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे के बावजूद साक्षी मलिक के नारे और उनकी मांग और आंदोलन का क्या हश्र हुआ उसपर सरकार का जो रुख रहा वह “बातें ज्यादा, काम कोई नहीं” का उदाहरण है। मुझे लगता है कि नरेन्द्र मोदी, उनकी भाजपा और संघ परिवार ने पिछले 10 साल में देश को जो शासन और राजनीति दी है उसपर यह बड़ी प्रतिक्रिया या टिप्पणी है।

मीडिया का काम था कि इसपर सरकार (राष्ट्रपति से लेकर संघ परिवार के मुखिया तक किसी) की भी प्रतिक्रिया से आज जनता को अवगत कराते पर ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है। क्या अखबार सिर्फ सरकारी दावों और अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने के लिए हैं? साक्षी मलिक की घोषणा के बाद आज उससे बातचीत भी होनी चाहिये थी वह भी नहीं है। जब खबर ही खेल पन्ने पर है, लीड नहीं है तो बाकी क्या बात करूं। वैसे, लीड जैसी खबरें और भी हैं तो साक्षी मलिक की खबर का लीड नहीं होना महत्वपूर्ण नहीं है पर आज उससे बातचीत छपी होती तो मैं नहीं कहता कि “बातें ज्यादा, काम कोई नहीं” का समय चल रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष के चुनाव की खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर, लीड बनाया है। इसके साथ साक्षी मलिक के कुश्ती छोड़ने की खबर है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने ब्रजभूषण सिंह के सहयोगी के डब्ल्यूएफआई का प्रेसिडेंट होने की खबर को पहले पन्ने पर छापा है और साक्षी के कुश्ती छोड़ने की खबर अंदर होने की सूचना दी है। हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर यस बैंक के राणा कपूर के खिलाफ ईडी के मामले के हश्र की खबर को प्रमुखता दी है और यह खबर दूसरे अखबारों में नहीं दिखी। कारण आप समझ सकते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंडियन एक्सप्रेस ने दोनों खबरें एक साथ छापी हैं। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि ओलंपियन साक्षी मलिक ने रोते हुए सन्यास लेने की घोषणा की। नवोदय टाइम्स में खबर तो चार कॉलम में है पर शीर्षक है, ब्रजभूषण का करीबी बना डब्ल्यूएफआई का अध्यक्ष, साक्षी का सन्यास। अमर उजाला में यह खबर आज बॉटम है। शीर्षक तकरीबन नवोदय टाइम्स जैसी है। इन और ऐसी खबरों के बीच हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने की एक खबर का शीर्षक है, “प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत में किसी अल्पसंख्यक के प्रति कोई भेदभाव नहीं है”। प्रधानमंत्री जब खुद कह चुके हैं कि आग लगाने वाले कपड़ों से पहचाने जाते हैं तो अल्पसंख्यक के प्रति कोई भेदभाव नहीं होने के इस दावे पर मुझे कुछ नहीं कहना है। राहुल गांधी नौ में तीन सेक्रेट्री की बात कर रहे हैं। वह किसी अखबार में छपी होती जनता को पता होता, अभी लोगों को स्थिति मालूम है कि नहीं और है तो कितनी मैं नहीं जानता। मैं तो जल जीवन मिशन के तहत 13,000 फीट की ऊंचाई पर लद्दाख के गांव में पीने का साफ पानी मिलने की खबर और उसका व्हाट्सऐप्प फॉर्वार्ड पढ़ चुका हूं लेकिन देखता हूं कि गाजियाबाद में लोग सड़क किनारे नल या लीक से पानी भरते रहते हैं।

आज जब खबर के मुकाबले प्रचार को ज्यादा महत्व मिलने या दिये जाने की बात चली है तो आइये आज सरकार के बहु प्रचारित, स्वच्छता अभियान की भी चर्चा कर लूं। कई वर्षों से सुबह नीन्द खुलते ही गाजियाबाद नगर निगम के कूड़ा वाहनों पर बजने वाला गाना सुनाई पड़ता है, स्वच्छ भारत का इरादा कर लिया हमने …। ठंड के कारण आज मॉर्निंग वॉक देर तक चली तो नगर निगम की अब भूतहा सी हो चली गाड़ी पर सस्ते लाउडस्पीकर से बजता यह गाना इतना कर्कश और ध्वनि प्रदूषण करता लगा कि भाजपा की सफलता का राज यही समझ में आया। बाद में पता चला कि लोनी इलाके में इस गाने से परेशान होकर किसी फौजी ने गोली भी चलाई है। पर प्रचार तो हो रहा है और वोट भी मिल रहे हैं तो विरोध कौन करे। सच यह है कि इस कूड़े को उठाने के लिए लोगों से पैसे लिये जाते हैं और बहुमंजिली इमारतों में पहले तो यह काम मुफ्त होता था। कोई गरीब लड़का रिक्शे पर कूड़ा उठा ले जाता था, उसमें से काम की चीजें चुनकर अपना खर्चा निकालता था और बाकी की चीजें किसी निर्धारित गैर-निर्धारित स्थान पर फेंक देता होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नगर निगम की इस पेड सेवा के बाद उसका धंधा चौपट हुआ और खासतौर से बनी ये गाड़ियां आ गईं जो अब खटारा हो चली हैं और जबरदस्त ध्वनि प्रदूषण फैला रही हैं। यह परियोजना 2018-19 में शुरू हुई थी और संभवतः उसके बाद से ही मोहल्ले की सड़कों पर कूड़ा फेंका जाने लगा। यह वहां का कूड़ा होता है जहां से निगम की गाड़ियां नहीं उठाती हैं। पर यह उनका सिरदर्द है। उसकी सफाई कभी होती है कभी नहीं। लेकिन निगर निगम वालों ने कूड़ा हटाने की व्यवस्था की तो पार्कों का रख-रखाव छोड़ दिया है। उनके शौंचालयों का भी। पहले उन्हें मनुष्यों ने चरा और अब गायें चर रही हैं। प्रचार स्वच्छ भारत का इरादा कर लिया हमने … ही चल रहा है। भले व्यावहारिक तौर पर जनता को इसका कोई फायदा नहीं हो। पैसे भी अतिरिक्त लग रहे हों। आज के अखबारों में एक और खबर है (शीर्षक अमर उजाला का), नए आपराधिक कानूनों, चुनाव आयुक्तों की नियु्ति विधेयक पर संसद की मुहर। उपशीर्षक है, शाह ने कहा – आजादी के बाद ऐतिहासिक सुधार, दंड के बजाय न्याय दिलाना लक्ष्य। अखबार में यह खबर लीड के बराबर में लगभग उतनी ही बड़ी पर छोटे फौन्ट के शीर्षक से छपी है।

द टेलीग्राफ ने इस खबर को लीड बनाया है। उपशीर्षक है, लोकसभा ने सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना की, चुनाव आयोग को नियंत्रित करने का विधेयक पास किया। मुख्य शीर्षक है, सरकार ने चुनाव आयोग को नियंत्रण में लिया। आर बालाजी और फिरोज एल विनसेंट की बाइलाइन वाली इस खबर का इंट्रो है, विपक्षी सदस्यों से खाली लोकसभा ने गुरुवार को एक विधेयक पास किया जो दो मार्च के संविधान पीठ के फैसले के खिलाफ है। इसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों और उनके प्रमुख की नियुक्ति करने वाले पैनल में भारत के मुख्य न्यायाधीश भी होंगे। कल ही अखबारों में छपा था, अदालतों से नहीं मिलेगी ‘तारीख पर तारीख’। आज साफ हो चला कि संविधान बेंच के फैसले को बदलने वाला कानून बना दिया गया है और इसमें संविधान बेंच ने जो समय लगाया वह निश्चित रूप से बेकार गया। ऐसे में तारीख पर तारीख नहीं भी पड़े तो फर्क क्या पड़ेगा। शीर्षक बिल्कुल अलग होने के बावजूद मैंने अमर उजाला और द टेलीग्राफ की खबर को एक ही कहा है क्योंकि, अमर उजाला ब्यूरो की खबर का इंट्रो है, अंग्रेजी शासनकाल के तीन आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले नये विधेयकों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाले विधेयकों पर दोनों सदनों ने बृहस्पतिवार को मुहर लगा दी। इस तरह मोटा मोटी मामला एक ही है पर प्रस्तुति में भारी अंतर है। हिन्दुस्तान टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, अपराध, दूरसंचार, मुख्य चुनाव आयु्क्त विधेयक संसद से पास हुए।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

द हिन्दू की आज की लीड का शीर्षक सभी अखबारों से अलग पर संसद के शीतकालीन सत्र की खास बातों को समेटते हुए है और यह सामान्य या लगभग औपचारिक काम भी अखबारों ने नहीं किया है क्योंकि इसमें सरकार को पसंद नहीं आने वाले तथ्यों को प्रमुखता देनी पड़ती। मीडिया के लिए यह अघोषित इमरजेंसी की खास स्थिति है कि उसे राजा का बाजा ही बजाना पड़ रहा है। द हिन्दू का शीर्षक बहुत सामान्य है और आप कह सकते हैं कि इसीलिए यह खबर नहीं है और दूसरे अखबारों में नहीं है। पर इस शीर्षक की विशेषता इसके उपशीर्षक में है। दोनों इस प्रकार है, हंगामी शीतकालीन सत्र तय समय से एक दिन पहले खत्म हुआ। उपशीर्षक है, दोनों सदन अनिश्चित काल के लिए स्थगित, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा की अयोग्यता, लोकसभा की सुरक्षा में सेंध, 146 सांसदों का निलंबन और 18 विधेयक पास होना इस हंगामी सत्र की खास बातें रहीं। इन और ऐसी तमाम खबरों के बीच आज नवोदय टाइम्स की लीड है, संसद से तीन और सदस्य निलंबित, अब तक 146। उपशीर्षक है, संसद का शीतकालीन सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित। इसके साथ छपी एक और खबर का शीर्षक है, “मोदी सरकार कर रही अलोकतांत्रित व्यवहार : खरगे”।

विपक्ष की अनुपस्थिति में संसद में जो कानून पास हुए हैं उनमें एक कानून चिकित्सीय लापरवाही से मौत की स्थिति में चिकित्सकों को आपराधिक अभियोजन से मुक्त रखा जायेगा का है। सोशल मीडिया पर कल की खबरों के अनुसार सरकार की योजना इस आशय का संशोधन लाने की है। तृणमूल सांसद साकेत गोखले ने इस खबर को ट्वीट करते हुए लिखा था, अमित शाह ने इन विधेयकों को पेश किया तो इंडिया समूह के 141 सांसदों को निलंबित करने के कारणों की एक झलक। आज इंडियन एक्सप्रेस में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का एक विज्ञापन है जो इस कानून के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कानून मंत्री या स्वास्थ्य मंत्री नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के प्रति आभार जता रहा है। पहले ऐसा होता तो कोई ना कोई पत्रकार कभी न कभी कानून मंत्री, गृहमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री या आईएमए के पदाधिकारियों से सवाल कर ही देता पर अब ऐसा नहीं होता है।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसे में कल ही एक और खबर थी, आईएमएफ ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत की जीडीपी से ज़्यादा होने वाला है देश का कुल क़र्ज़। इस खबर के अनुसार देश पर क़र्ज़ 2014 में ₹54 लाख करोड़ था जो 2023 में बढ़कर ₹205 लाख करोड़ हो गया है। मोटे तौर पर आजादी के बाद 67 साल में 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल ₹55 लाख करोड़ का कर्ज़ लिया जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अकेले ही ₹150 लाख करोड़ का कर्ज़ लाद दिया है। यह खबर मुख्यधारा की मीडिया से गायब है। आज अखबारों में पहले पन्ने पर तो नहीं ही दिखी।

द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर एक खास खबर प्रमुखता से है। इसके अनुसार आय से अधिक संपत्ति के मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु के मंत्री और उनकी पत्नी को तीन साल की सजा दी है। ट्रायल कोर्ट ने इन्हें 2016 में बरी कर दिया था। अब उसे पलट कर तीन साल की सजा हुई है। दोनों पर 50 लाख रुपये प्रत्येक का जुर्माना भी है और नहीं देने पर छह महीने की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। दंपति के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए 30 दिन का समय है। इस मामले में खास बात यह है कि पहले नेताओं और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कार्रवाई या सजा होने की स्थिति नहीं बनती थी। मोदी शासन से पहले जयललिता मामले में और फिर लालू यादव को सजा हुई। लेकिन गुजरात दंगों में क्लीन चिट और फिर गृहमंत्री का हाल का दावा तथा राहुल गांधी के खिलाफ मामला या फिर महुआ मोइत्रा को निलंबित किये जाने से उसकी नीयत के साथ साथ अदालती फैसलों पर भी शंका हुई। संक्षेप में कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तो विरोधियों को फंसाने और अपनों को बचाने की तो हद ही कर दी। लगता नहीं है कि कुछ उदाहरणों और दावों के बावजूद इस मामले में भी स्थिति वास्तव में कुछ बेहतर हुई है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास तक खबर सूचनाएं जानकारियां मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement