अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास के समक्ष कार से उतरा तो सामने एक सज्जन को खड़े देखा, जिन्होंने अपना जैकेट इस प्रकार पहन रखा था कि उसका एक छोर ऊँचा तथा दूसरा नीचा दिखाई दे रहा था। मेरे साथ खड़े एक पूर्व संसदीय सचिव ने उन्हें देखते ही नमस्कार किया तथा बोल पड़े-‘अरे आपका जैकेट तो ऊँचा-नीचा हो रखा है। उनकी बात सुनते ही वे झेंप गये और पुन: जैकेट के बटन खोलकर ठीक किया और उन्हें धन्यवाद देते हुए मुख्यमंत्री के आवास में प्रविष्ट हो गये। उनके जाते ही पूर्व संसदीय सचिव ने कहा-‘ये यहाँ के गृहमंत्री हैं। उनकी बात सुनते ही मैं अचरज में पड़ गया। एक राज्य के गृहमंत्री और इतने सीधे-सादे, इतनी सादगी, न कोई ताम-झाम, न कोई हो-हल्ला?
मैं उक्त पूर्व संसदीय सचिव के घर में उनके कार्यालय में बैठा उनसे गुफ्तगू में व्यस्त था। सामने टीवी पर दिल्ली के किसी हिंदी समाचार चैनल पर कश्मीर में हाल ही में पाकिस्तानी झंडा फहराये जाने और देश विरोधी नारे लगाने को लेकर चल रहे विवाद का समाचार चल रहा था। अचानक पूर्व संसदीय सचिव ने मेरी ओर मुखातिब होकर कहा-‘इन देश विरोधी गद्दार लोगों को तो देखते ही गोली मार देनी चाहिए। शैतान के साथ इंसानियत से पेश आने से वो हैवान बन जाता है। उनका देशप्रेम देख मैं दंग रह गया।
अरुणाचल की राजधानी ईटानगर सहित समूचे अरुणाचल में इन दिनों केंद्र सरकार द्वारा राज्य के 7 जिलों को अशांत इलाका घोषित करने को लेकर काफी तनाव चल रहा है। विभिन्न संगठन अपने-अपने तरीकों से विरोध प्रदर्शन कर उक्त शैतानी कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। किसी भी राज्य में कोई भी काला कानून लागू करने से पहले केंद्र को राज्य सरकार से सलाह-मशविरा करना गणतांत्रिक व्यवस्था का मौलिक सिद्धांत है। लेकिन केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने बिना अरुणाचल सरकार से किसी भी प्रकार का विचार-विमर्श किये राज्य के 7 जिलों को अशांत इलाका घोषित करते हुए सैन्य बल विशेषाधिकार-कानून (1958) लागू कर गणतांत्रिक व्यवस्था कर कुठाराघात करने का घृणित कार्य किया है।
अरुणाचल के विभिन्न हिस्सों में घूमते हुए मुझे कभी भी यह नहीं लगा कि यहाँ किसी प्रकार की कानून-व्यवस्था की समस्या है। प्रकृति ने अरुणाचल को अपने रुप-रंग से इस प्रकार संवारा है कि यहाँ आने वाला हर व्यक्ति इसके अपरुप सौंदर्य पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता। अरुणाचल के लोगों के सादगी, प्रेम, सद्भावना, मिलनसारिता सरीखे गुण अगर भारतवर्ष के अन्य राज्यों के लोग अपना लें तो मैं समझता हूँ कि हिन्दुस्तान विश्व का सबसे सुख, शांतिपूर्ण देश बन जायेगा। लेकिन नरेन्द्र मोदी की दिल्ली सरकार ने राज्य के शांतिपूर्ण 7 जिलों में काला कानून लागू करने का एकतरफा फैसला कर राज्य के लोगों की भावनाओं को कुचलने का निर्दयतापूर्ण कार्य किया है, जिसके लिए उसे कतई क्षमा नहीं किया जा सकता।
नरेन्द्र मोदी अथवा उनकी सरकार में शामिल लोगों को शायद पता नहीं कि वे जितने हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्तान के पैरोकार हैं, अरुणाचल के लोग उनसे ज्यादा हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्तान के पैरोकार हैं। मोदी के गुजरात के लोग अपने घरों में गुजराती में बात करते हैं, लेकिन अरुणाचल के लोग अपने घरों में भी हिंदी बोलते हैं। मोदीजी के गुजरात के लोग जितने देशप्रेमी हैं, अरुणाचल के लोग उनसे ज्यादा देशप्रेमी हैं। अरुणाचल की आबादी का 35 प्रतिशत हिस्सा हिन्दू धर्म मानने वालों का है। मोदी के राज्य में अक्सर सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं, लेकिन देश में मौजूद 780 भाषाओं में सबसे ज्यादा 90 भाषाएं बोलने वाले बहुभाषी लोगों का राज्य होते हुए भी अरुणाचल में कभी कोई बड़ा सांप्रदायिक संघर्ष नहीं हुआ।
पाकिस्तान की सीमा से लगे कश्मीर में अक्सर संघर्ष होते रहते हैं लेकिन चीन की सीमा से सटा अत्यंत संवेदनशील इलाका होने के बावजूद अरुणाचल अत्यंत ही शांतिपूर्ण राज्य है। चीन अरुणाचल पर अपना दावा करता आया है लेकिन अरुणाचल के लोगों ने हिन्दी भाषा को ही आपस में बातचीत का जरिया बनाया है, न कि चीनी भाषा को। अरुणाचल के अंग्रेजी विद्यालयों में भी छात्र-छात्राओं को हिन्दी में बतियाते देख अक्सर यह भ्रम हो जाता है कि हम किसी जनजातीय राज्य में हैं या किसी हिन्दी भाषी राज्य में। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी स्थानीय भाषाओं के साथ अंग्रेजी का ही अधिकतर प्रयोग किया जाता है, लेकिन अरुणाचल के लोग अंग्रेजी अथवा अन्य स्थानीय बोलियों के बजाय हिन्दी में ही बोलचाल करना ज्यादा पसंद करते हैं। अरुणाचल विधानसभा में भी अंग्रेजी के बजाय हिन्दी में ही ज्यादातर बहस होती है।
देश की आजादी के बाद का इतिहास गवाह है कि अरुणाचल के अलावा पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में हिन्दी व हिन्दी भाषियों का हमेशा से विरोध किया जाता रहा है। विशेषकर असम, नगालैंड, मेघालय, मणिपुर आदि राज्यों में जब भी किसी प्रकार की तनाव की स्थिति आती है तो इन राज्यों में रहने वाले हिन्दी भाषियों पर ही सबसे ज्यादा कहर ढाया जाता है। केंद्र के साथ जब भी किसी प्रकार का टकराव की स्थिति पैदा होती है तो स्थानीय लोग हिन्दी भाषियों को ही बलि का बकरा बना उनके साथ मार-पीट, हत्या, लूटपाट व आगजनी सरीखी वारदातें कर अपना गुस्सा उतारते हैं, लेकिन अरुणाचल ही पूर्वोत्तर का एकमात्र राज्य है, जहां कभी भी हिन्दी भाषियों पर जोर-जुल्म नहीं किया जाता।
मोदी गौमाता के भक्त हैं, लेकिन उन्हें शायद पता नहीं कि आज देश में सबसे ज्यादा गायों की तस्करी कर बंगलादेश को भेजा जाता है और यह सब कुछ बंगलादेश की सीमा से सटे असम व त्रिपुरा में खुले आम चल रहा है, लेकिन गौमाता को बचाने के लिए मोदी ने कोई कड़ा कानून लागू करने की बात नहीं सोची। शांति पूर्ण राज्य अरुणाचल में सैन्य कानून लागू करने वाले नरेन्द्र मोदी कभी बंगलादेश सीमा पर ऐसे कानून लागू करने की नहीं सोची, जहाँ से गायों की तस्करी से लेकर जाली नोटों, अवैध हथियारों, नशीले पदार्थों आदि की तस्करी समेत तमाम गैर-कानूनी कार्य खुल्लमखुल्ला चल रहे हैं। जाली नोटों की तस्करी से देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करने के अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र को रोकने के लिए वे कठोर कानून लागू नहीं करते। मोदी के सीमा सुरक्षा बल के जवान बंदूकें नीची कर आँखों के सामने घट रहे समूचे गैर-कानूनी कार्यों को देखकर भी नजरअंदाज कर देते हैं। यह मोदी का दोहरापन नहीं तो क्या है?
मोदी सरकार द्वारा सैन्य बल विशेषाधिकार कानून लागू करने के बाद से अरुणाचल के लोगों का विरोध प्रदर्शन जायज ही कहा जा सकता है क्योंकि इस कानून के लागू होते ही सेना के जवानों द्वारा नागरिकों पर जोर-जुल्म करने की घटनाएं घटनी प्रारंभ हो गई है। ईटानगर के समीप एक कस्बे में सेना के जवानों द्वारा तीन अरुणाचली महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटना ने अरुणाचली लोगों के गुस्से में उबाल ला दिया है। अगर मोदी सरकार अब भी नहीं चेती तो अरुणाचली युवाओं के उग्रवाद की राह पर जाने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। अरुणाचल के देशप्रेमी, हिंदी प्रेमी, हिंदू प्रेमी लोगों की भावनाओं में, संवेदनाओं में उबाल लाना आखिर देश के लिए ही भारी पड़ने वाला है क्योंकि देश का जानी दुश्मन चीन इसका फायदा उठाने में तनिक भी चूक नहीं करने वाला है। अभी भी समय है, मोदी सरकार काला कानून लागू करने का फैसला वापस लेकर अरुणाचल के लोगों के दिलों में हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्तान के प्रति नफरत को पनपने से रोक सकती है।
लेखक राजकुमार झाँझरी, संपादक ‘आगमन’, गुवाहाटी, संपर्क : 9435010055, [email protected]