Yashwant Singh : चुनाव आ रहा है। bjp वाले मुलायम चाचा के घर झगड़ा बो दिए हैं। फिर से चांय चांय होगा, देर तक। बिहार असेम्बली इलेक्शन याद है न। सीबीआई के डर से चाचा वोटकटवा बनकर bjp के पक्ष में चले गए थे।
ऐसा ही इस बार होगा, एक अलग पार्टी बना के। काम शुरू आहे। मुलायम पहलवान जी परेशान हो गए हैं। पर ज़रूरी नहीं आप ऐसा मानें। जैसे अजय कुमार जी का नज़रिया अलग है। अजय जी के एक विश्लेषण का लिंक नीचे है, शीर्षक पर क्लिक कर पढ़िए…
अस्तांचल की ओर ‘मुलायम’ समाजवाद!
Sanjaya Kumar Singh चचा को अलग रहने का फायदा भी मिला। कौनो केस मुकदमा नहीं हुआ ना।
Yashwant Singh चचा इस बार भी ब्लैकमेल होंगे। कहो शिवपाल और अमर सिंह वाली पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही बन जाए, संकट खत्म करने के वास्ते…
Ramendra Jenwar बहुत फजीहत करवा चुके हैँ….अभी बहुत होनी बाकी है…..
Yashwant Singh चचा बुढापा में वही काटेंगे जो जवानी भर बोए हैं।
Alok Shukla सपा सरकार में जो अराजकता और गुंडागर्दी सड़कों पे दिखती थी वो शिवपाल की देन थी, ये बात यूपी की जनता भली भांति जानती है. इसमें मुलायम का सपोर्ट था. अगर शिवपाल और मुलायम हाशिए पे जाते हैं तो जनता को मज़ा आएगा. अखिलेश को जनता पसंद करती थी. लेकिन पार्टी के रूप में सपा को नापसंद. चचा के साथ अनबन से संगठन कमजोर हुआ और बीजेपी जीत गई. लेकिन सपा से अगर शिवपाल हट जाएं और मुलायम सिंह हाशिए पे रखे जाएं तो जनता अखिलेश के नेतृत्व में सपा को पसंद करेगी. रही बात योगी जी की तो उनको मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करके बीजेपी चुनाव लड़ती तो इतनी बड़ी जीत ना मिलती. उस समय बची खुची मोदी लहर, नोट बंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के कॉकटेल से चुनाव जीता गया. बाकी कसर सपा की भीतरी अनबन ने पूरी दी. लेकिन अब परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं. शिवपाल के जाने से सपा को संगठन में कमजोरी आएगी. अगर अखिलेश इसको किसी तरह पूरा कर लें तो फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार यशवंत सिंह, संजय कुमार सिंह, रामेंद्र और आलोक शुक्ला की एफबी पोस्ट/टिप्पणियों का संयोजन.
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