यशवंत सिंह-
राजू नेपाल के हैं। साठ साल के हैं, इसलिए मैं राजू जी कहूँगा। जिस फ़ॉरेस्ट गेस्ट हाउस में रुका हूँ वहाँ के ये प्रतीक पुरुष हैं। गार्ड / केयरटेकर / सहायक जो नाम दे दीजिए। बेटा कह रहा कि ये चालीस के लगते हैं। मैंने धीरे से समझाया- इन लोगों की उम्र और आँख का पता ही नहीं चलता। ये ताउम्र जवान रहते हैं। बंद आँखों से त्रिलोक देख लेते हैं।
राजू जी की पीड़ा ये कि जब भी उनकी फ़ोटो खींची जाती है, उनकी आँख बंद ही आती है। वे फ़ोटो खिंचाने के लिए कहे जाने पर बहुत उत्साहित नहीं रहते। हम लोगों से वे हिलमिल गए हैं इसलिए खुल कर बात करते हैं।
‘जब जब ग्रुप फ़ोटोग्राफ़ी साहब लोगों ने की, मेरी आँख बंद रही। वे लोग खूब कहते- आँख खोलो राजू। मैं ज़ोर से आँख खोलता। पर फ़ोटो ज़ो आती उसमें आँख दिखती नहीं।’
राजू जी की आज मैंने खुली आँखों वाली तस्वीर ली। ये फ़ोटो देख कर वो भौचक थे। इतनी बड़ी आँख मेरी है, यक़ीन ही नहीं हो रहा। इतनी आँख मेरी आजतक कभी नहीं खुली।
फिर सेकंड तस्वीर ली। वो हंसने लगे। हंसते हंसते आँख बंद हो गई। फिर बोले- आपका ट्रिक याद रखूँगा साब जी, मुंडी नीचे, आँख टोपी की नोक पर!
हम सब खूब हंसे!
राजू जी चालीस साल से यहाँ सेवारत हैं।
यहाँ आने वाले मेहमानों के बहुत सारे बुरे अनुभव उनके पास हैं। गेस्ट हाउस में कोई गिलास नहीं है। सब टूट गए या तोड़ दिए गए या फेंक दिए गए या पेग के लिए गाड़ी में रख जंगल में लोग ले गए फिर वापस न आए।
हम बोल दिए हैं कि हम शरीफ़ आदमी हैं, छोड़ दिए हैं, जबसे दिल्ली से चले हैं।
आख़िरी तीन शब्द इतना धीमे से बोला कि राजू भाई सुन न पाए और मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही कहने लगे- आप बढ़िया आदमी हो साबजी!
सुबेरे सुबेरे एक आम इंसान आपकी तारीफ़ कर दे तो दिन बन जाता है।
वैसे राजू भाई को खुली आँखों वाली फ़ोटो चाहिए। स्मार्ट फोन इनके पास है नहीं। कलर प्रिंट निकाल कर कूरियर करना होगा।
ज्ञात हो, हम लोग 17 जून को कुछ दिन घनघोर जंगल और शुद्ध गंगा के बीच निवास करने के किए निकले। अबकी जंता भी साथ है, इसलिए रुकने की व्यवस्था फ़ॉरेस्ट गेस्ट हाउस में पहले से करा रखा था! कुछ तस्वीरें-
भड़ास एडिटर यशवंत की Fb वॉल से.