प्रिय यशवंत जी, सादर प्रणाम
आपके भड़ास को पढ़ते हुए 3 वर्ष हो गए. बहुत कुछ लोगों के लिए होता है इसमें. कुछ समझ से परे भी होता है. लेकिन अभी जो मजीठिया को लेकर लिख रहे हो, कमाल का है. पर आपको नहीं लगता कि इतना सब करने के बाद भी कुछ नहीं हो रहा है. न वे लोग सुनने को तैयार हैं जिनको जगाने के लिए के लिए लिख रहे हो. ऐसा लगता है सब के सब बहरे, अंधे और गूँगे हो गए हैं. सारे के सारे एक अज्ञात भय से ग्रसित हो रहे हैं कि अगर अपने हक़ के लिए जागेंगे तो समझो मारे जायेंगे.
इस पर याद आता है कि ये जो मीडियाकर्मी हैं, सभी को कानून सिखाते हैं, खुद के मामले पर बुरी तरह चुप क्यों है. आप सोच रहे होंगे कि मैं कौन ज्ञानी हूँ जो ये सब लिख रहा हूँ, तो चलिए आपको बताता हूँ. मैं भी एक मीडियाकर्मी हूं. लिखने का मकसद ये है कि अभी 23 जून 2016 को दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों में नियुक्त्ति हेतु एक विज्ञापन छपा था. सुबह सुबह विज्ञापन देखकर वहां काम कर रहे लोगों का दिमाग ख़राब हो गया.
सब के सब अवाक कि क्या प्रबंधन हर पद पर एक नया बंदा भर्ती करने जा रहा है. लेकिन फिर भी सब चुप. जैसे ये फ्री में काम कर रहे हैं. मेरा तो सिर्फ इतना कहना है आप क्यों परेशान हो रहे हो. जब लोग खुद ही अपने को खत्म कर रहे हैं तो दूसरे क्या कर सकते हैं. लिखने को और भी है पर कभी फुर्सत में लिखूंगा.
आपका एक पत्रकार साथी
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Comments on “अपने अखबार में अपने ही पद के लिए बंपर भर्ती वैकेंसी का विज्ञापन देख चुप रह गए भास्करकर्मी!”
Koi reaction take nail dyta.jy udasinta ghatak hey bhi