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सुख-दुख

कोरोनाकाल में आक्‍सीजन की अधिकता से मरी जनता!

अनिल कुमार-

मैं पहले भी मानता था और मुनव्‍वर राणा की कसम आगे भी मानता रहूंगा कि सरकारें कभी गलत नहीं होती, और कल तो पक्‍का यकीन हो गया कि कोई भी सरकार गलत नहीं होती. और केंद्र की मोदीजी की सरकार तो गलत हो ही नहीं सकती. यह सरकार कोई गलती कर भी नहीं सकती.

जनताहित को समर्पित इस सरकार के मुखिया आम चूसकर साधारण जीवन व्‍यतीत करते हैं और झोला लेकर तैयार रहते हैं, कि जनता को तफलीक हुई तो हिमालय पर चले जायेंगे. इसलिये मैं बचपन से ही मानता था कि केंद्र की सरकार कोई गलती कर ही नहीं सकती, और ये वाली तो बिल्‍कुल नहीं, जो गलती होती है वह जनता से ही होती है और जनता ही करती है.

वैसे, मैं पहले भी मानता रहा हूं कि कोरोना दौर में आक्‍सीजन की कमी से कोई नहीं मरा है, क्‍योंकि आक्‍सीजन की कोई कमी थी ही नहीं, लेकिन जब से सरकार ने लिखा-पढ़ी में सर्टिफाइड तरीके से बताया है कि आक्‍सीजन की कमी से कोई नहीं मरा है, तब से मन और प्रफुल्लित हो गया है. और मुझे अपने ज्ञान पर नाज हो रहा है.

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जाहिर है किसी भी बात के लिये सरकार पर दोष लगा देना बहुत आसान होता है, जबकि सरकार हर काम जनता की बेहतरी को ध्‍यान में रखकर करती है. कोरोना में भी सरकार ने यही किया. बंगाली की खाड़ी से आक्‍सीजन सोखकर देश के प्रत्‍येक शहर में पर्याप्‍त आक्‍सीजन उपलब्‍ध कराई गई थी, लेकिन जनता जब खुद से हवा में फैलाई गई आक्‍सीजन सोख और खींच नहीं पाई तो इसमें सरकार का क्‍या दोष?

चूंकि मैं खींचखांच कर मैट्रिक पास हूं और विषय पर्यावरण रहा है तो मुझे अच्‍छे से पता है कि जनता कोराना में आक्‍सीजन की कमी से नहीं बल्कि अधिकता से मरी है. बीमार जनता लालचवश वातावरण में सरकार द्वारा उपलब्‍ध कराई गई आक्‍सीजन जरूरत से ज्‍यादा सोख ली, जो उसकी मौत का कारण बनी.

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इसमें सरकार की नहीं बल्कि जनता के लालच का दोष है, क्‍योंकि सरकार अगर वातावरण में मौजूद आक्‍सीजन पाइप लगाकर सिलेंडरों में भर लेती तो उस पर जनविरोधी होने या लालची होने का आरोप लग जाता, इसलिये सरकार ने ऐसा करने से परहेज किया. पूरा आक्‍सीजन जनता के लिये छोड़ दिया, नतीजतन लालची जनता जरूरत से ज्‍यादा आक्‍सीजन पीकर मर गई. बेशर्म जनता को शर्म आनी चाहिए फकीर की सरकार पर आरोप लगाते हुए.

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