Sanjaya Kumar Singh-
आज द हिन्दू अखबार में खबर है कि टीका लगवाने वालों से एक फॉर्म भरवाया जा रहा है जिसमें क्लिनिकल ट्रायल मोड में दवा लेने के लिए सहमति ली जा रही है। गंभीर प्रतिकूल घटना के लिए क्षतिपूर्ति कंपनी देगी बशर्ते यह साबित हो कि यह वैक्सीन से संबंधित है। कहने की जरूरत नहीं है कि टीका लग गया, सुरक्षित हो गए कहने की बजाए ऐसी बहुत सी खबरें दबा दी गई हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक भ्रमित करने वाला है। टीका लगाने से सुरक्षित हो जाने का दावा मुझे थोड़ी जल्दबाजी लग रही है। एक्सप्रेस ने पहले टीका लगवाने वालों में एम्स के निदेशक की तस्वीर छापी है तो हिन्दुस्तान टाइम्स ने टीका लगवाते और भी लोगों की तस्वीर के साथ एम्स के निदेशक की भी छापी है। इसका कोई कैप्शन नहीं है और उसके नीचे की खबर का शीर्षक है, मनीष कुमार ने दिल्ली में सबसे पहले टीका लगवाया।
मुझे लगा मनीष कुमार कोई सरकारी अधिकारी स्वास्थ्य सचिव या कोई ऐसे ही बड़े अफसर होंगे पर पता चला कि मनीष कुमार 34 साल के किसी सफाई कर्मचारी का नाम है। मुद्दा यह है कि अफसर-नेता टीका क्यों नहीं लगवा रहे हैं और स्वास्थ्य कर्मियों पर लगाकर (अगर) प्रयोग किया जा रहा है तो सफाई कर्मचारियों को क्यों खतरे में डाला जा रहा है।
हम पहले पढ़ चुके हैं कि हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री से लेकर एक महिला पत्रकार की तबीयत खराब हो चुकी है। सफाई कर्मचारी – स्वास्थ्य कर्मी नहीं होते। उन्हें बख्श दिया जाना चाहिए था। वह इसलिए भी कि जब 60 किसानों की मौत पर कोई प्रतिक्रिया नहीं है तो किसानों के बीमार होने पर कौन पूछेगा।
खबरों में दावा चाहे जो किया जाए, रात बारह बजे के करीब की एक और खबर है कि एम्स का एक 22 साल का सुरक्षा गार्ड आईसीयू में दाखिल कराया गया है।