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सियासत

क्रिकेट का अंध जुनून और राष्ट्र भक्ति के कृत्रिम भाव

क्रिकेट को हथियार बनाकर जिस तरह से देशी भावनाओं से विदेशी पूंजीपति कम्पनियां और व्यवसायिक मीडिया खेल रहा है वह गम्भीर चिंता पैदा करने वाला है। एक गहरी साजिश के चलते क्रिकेट के प्रति अंध जनून पैदा कर भारतीय युवा को मानसिक दिवालीएपन की ओर धकेलने की कोशिश हो रही है। ग्लैमर,मीडिया और शौहरत के इस आडम्बर में कम्पनियां अपने तेल, शैम्पू, कपड़े, इत्र सब बेच रही हैं और वहीं बेरोजगारी, मुफलिसी और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा युवा अपनी तमाम समस्याओं को भुलाकर उनको अपना रोल मॉडल माने बैठा है। विडम्बना तो यह है कि आमजन की पीड़ा से बिल्कुल भी सरोकार न रखते हुए यह कृत्रिम हीरो बिकाऊ घोड़ों की तरह नीलाम होकर कम्पनियों के जूते, चप्पल बेचने में व्यस्त हैं।

<p>क्रिकेट को हथियार बनाकर जिस तरह से देशी भावनाओं से विदेशी पूंजीपति कम्पनियां और व्यवसायिक मीडिया खेल रहा है वह गम्भीर चिंता पैदा करने वाला है। एक गहरी साजिश के चलते क्रिकेट के प्रति अंध जनून पैदा कर भारतीय युवा को मानसिक दिवालीएपन की ओर धकेलने की कोशिश हो रही है। ग्लैमर,मीडिया और शौहरत के इस आडम्बर में कम्पनियां अपने तेल, शैम्पू, कपड़े, इत्र सब बेच रही हैं और वहीं बेरोजगारी, मुफलिसी और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा युवा अपनी तमाम समस्याओं को भुलाकर उनको अपना रोल मॉडल माने बैठा है। विडम्बना तो यह है कि आमजन की पीड़ा से बिल्कुल भी सरोकार न रखते हुए यह कृत्रिम हीरो बिकाऊ घोड़ों की तरह नीलाम होकर कम्पनियों के जूते, चप्पल बेचने में व्यस्त हैं।</p>

क्रिकेट को हथियार बनाकर जिस तरह से देशी भावनाओं से विदेशी पूंजीपति कम्पनियां और व्यवसायिक मीडिया खेल रहा है वह गम्भीर चिंता पैदा करने वाला है। एक गहरी साजिश के चलते क्रिकेट के प्रति अंध जनून पैदा कर भारतीय युवा को मानसिक दिवालीएपन की ओर धकेलने की कोशिश हो रही है। ग्लैमर,मीडिया और शौहरत के इस आडम्बर में कम्पनियां अपने तेल, शैम्पू, कपड़े, इत्र सब बेच रही हैं और वहीं बेरोजगारी, मुफलिसी और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा युवा अपनी तमाम समस्याओं को भुलाकर उनको अपना रोल मॉडल माने बैठा है। विडम्बना तो यह है कि आमजन की पीड़ा से बिल्कुल भी सरोकार न रखते हुए यह कृत्रिम हीरो बिकाऊ घोड़ों की तरह नीलाम होकर कम्पनियों के जूते, चप्पल बेचने में व्यस्त हैं।

क्रिकेट एक खेल की तरह खेला जाए तो खेला जाए पर आपत्ति इस बात की,कि जब खेल को खेल की तरह पेश न करके इस तरह पेश किया जाता है कि मानों कोई खेल न होकर जंग हो। भारत पाकिस्तान के मैच को इतना हाई टैंशन दिखाया जाता है कि मानो जीतने पर कश्मीर समस्या का हल हो जाना हो। जीत यां हार को कुछ अतिवादी धर्म प्रेमी राष्ट्रवादी विचारधारा के कृत्रिम भाव पैदा कर साम्प्रदायिकता की रोटियां सेंकने की फिराक में रहते हैं। व्यवसाय के इस चरम तमाशे में आम खेल प्रेमी इस्तेमाल हो रहा है और पूंजीपति सिस्टम दूर खड़ा होकर सारा तमाशा देख रहा है। अंग्रेजों ने गुलामी के समय में इस खेल को इसलिए बढ़ावा दिया कि आम आदमी इसी में व्यस्त रहे और अपनी जंजीरों को तोडऩे की कोशिश न करे। अंग्रेज गए परन्तु उनके हथियारों को आज भी बाखूबी इस्तेमाल किया जाता है,सिर्फ इसलिए कि लोग अपनी असल समस्याओं को भूलकर टीवी व रेडियो पर ही चिपके रहें।

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सर्बजीत सिंह
करनाल
मो. 09896290262

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