आम जीवन की बेबाकी से जिक्र करना और इसकी विसंगतियों की सारी परतें खोल देना यह विवेक और चिंता की उंचाइयों का परिणाम होता है। आज जो साहित्य रचा जा रहा है, वह लेखन की कई शर्तों को अपने साथ लेकर चल रहा है। एक तरफ जिन्दगी की जहां गुनगुनाहट है, वहीं दूसरी तरफ जवानी को बुढ़ापे में तब्दील होने की जिद्द भी है।
इन्हीं सब शर्तों की अनेक रंगों को अपनी ग़ज़लों में पिरोने का साहस डॉण. मालिनी गौतम ने किया है। यूं तो डॉण. मालिनी गौतम साहित्य की अनेक विधाओं में लिखती हैं लेकिन हाल ही में प्रकाशित उनका ग़ज़ल संग्रह ‘दर्द का कारवां’ वीरान जिन्दगी के कब्रिस्तानों पर एक ओर जहां जीवन और मुहब्बत की गीत लिखता है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान जीवन की विसंगतियों से लड़ने की ताकत भी देता है। संग्रह की ग़ज़लों के रंग इन्द्रधनुषी हैं लेकिन सारी ग़ज़लों का मूल स्वर जीवन है और जीवन में घटनेवाली घटनाओं का चित्रण है। इससे प्रतीत होता है कि डॉ़ण. मालिनी गौतम ने अपनी ग़ज़लों में जिया ही नहीं है बल्कि उसे भोगा भी है। इन दो क्रियाओं जीना और भोगना, ऐसी काई में पगडंडी है, जिस पर फिसलने का डर बना रहता है। डॉण. मालिनी गौतम ने स्वयं को फिसलने नहीं दिया है, जो भी लिखा है, मजबूती के साथ और साफ-साफ लिखा है। जैसे
इक पल रोना इक पल गाना अजब तमाशा जीवन का
हर दिन एक नया अफ़साना अजब तमाशा जीवन का
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वांसती कुछ सपने हैं इन शर्मीली आंखों में
आशाओं के दीप जले इन चमकीली आंखों में
डॉ मालिनी गौतम अपनी ग़ज़लों के माध्यम से पाठक को नए उत्साह और समय को सकारात्मक ढंग से लेने की सलाह देती हैं, न कि पाठक के कंधों को कमजोर करना चाहती हैं। उनकी ग़ज़लों का यह सकारात्मक रूप सूरज के साथ चलने की जीजीविषा और चांद की रोशनी को अपनी आंखों में भर लेने की छटपटाहट है, जैसे-
पड़े पैरों में हैं छाले मगर मैं फिर भी चलता हूं
कभी सहरा कभी दरिया से अक्सर गुजरता हूं
सच में उत्साह आदमी को किरदार की आईनासाजी का हुनर सिखाता है। यह हुनर डॉ. मालिनी गौतम के लेखन का आत्मबल है। संग्रह की ग़ज़लों के पाठ के बाद सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
यह तो सहज ही पता चलता है कि डॉ मालिनी गौतम की ग़ज़ल दुनिया आमजीवन के आसपास घूमती है लेकिन यह पूरे तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि डॅा मालिनी गौतम जीवन की दुनियां के बाहर नहीं निकलना चाहती हैं। इनका लेखकीय कैनवास काफी बड़ा है। हरेक आहट नए-नए दृश्य तलाश करती है, जिसमें भोर की पहली किरण के साथ हसीन उजालों की सुगबुगाहट मिलती है। विरह और वियोग का एक छटपटाता हुआ पन्ना भी खुलता है और उस पन्ने पर बड़े ही सलीके से मोहब्बत का नाम लिखा जाता है।
जुल्फों केा रुख से हटाकर चल दिए
चांद धरती पर दिखाकर चल दिए
साहित्य में फटे हुए दूध को मालिनी गौतम रबड़ी नहीं कहती बल्कि साहित्य की तमाम खूबियों और छंदों की रस्मों को निभाती हैं, जिस कारण इनकी ग़ज़लें पठनीय और असरदार हो जाती हैं। पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि ‘दर्द का कारवां’ की ग़ज़लें पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होंगी। संग्रह की तमाम ग़ज़लें पठनीय और शिल्प के लिहाज से मुकम्मल हैं।