धीरज फूलमती सिंह-
कुछ साल पहले मेरा फतेहपुर जाना हुआ था। फतेहपुर एक छोटा सा शहर है जो कानपुर और प्रयागराज रोड पर ही बसा है। यहीं बगल में एक कस्बा “मलवा” है, यहां का मोहन पेड़ा बहुत मशहूर है।
फतेहपुर में मैं एक मौलाना जी के यहां ठहरा था,मौलाना जी कहना ठीक नही होगा,वे मुफ्ती साहब है,आज भी मेरे बहुत अच्छे दोस्त है। किसी काम से गया हुआ था, फतेहपुर में मुफ्ती साहब के घर तीन दिन ठहरा था। घर के पास में ही मस्जिद है और बैंक ऑफ इंडिया की शाखा भी है। इस्लाम धर्म में मुफ्ती सबसे बडा पद होता है,मुफ्ती ही फतवे जारी करता है,जब तक कोई बंदा बंदगी करते हुए कुछ पुछे ना, कोई भी मुफ्ती अपनी मर्जी से फतवा जारी नही कर सकता है।
उस दिन शहर की मटरगश्ती के बाद शाम को मुफ्ती साहब के घर की छत पर बैठ हवा खोरी कर रहा था,मुफ्ती साहब भी साथ थे, वे मुझे शहर की जानकारी दे रहे थे। इतने में नीचे बरामदे में से किसी की आवाज सुनाई दी, मुफ्ती साहब को आवाज लगा रहे थे। मुफ्ती साहब ने छत से आवाज देकर उनको उपर ही बुला लिया।
वह शख्स उपर आये, दुआ-सलाम के बाद मुफ्ती साहब ने उनसे मेरा तारूफ करवाया, वे पास ही मस्जिद के बांगी साहब थे,मस्जिद से अजान वही देते थे और बगल में ही रहते भी थे। सामान्यत एक मौलाना के लिए गैर मुस्लिम शख्स शिकार ही होता है,कोशिश होती है कि दीन की दावत दें,इस्लाम में इस्तकबाल कराया जाये।
बांगी साहब के लिए भी कुछ ऐसा ही था, जैसे ही उनको पता चला कि मैं गैर मुस्लिम हूँ, मुझमें उन्हे शिकार दिखने लगा, उनकी आँखों में ईक चमक सी आ गई।
मुझे दीन-दुनिया की बातें समझाने लगे। इस्लाम की अच्छी बातें बताने लगे, उनकी आँखों में मेरा शिकार करने की ललक साफ झलक रही थी। मुझे किसी भी धर्म से कोई शिकायत नही है,परहेज नही है लेकिन शिकार करने की नियत रख कर यानी अपने धर्म में धर्मांतरित करने की नियत से मुझे कोई चर्चा करता है तो मेरा विरोध रहता है, तब मुझे यह नागवार गुजरता है
बांगी साहब अपनी धून में लगे हुए थे, हालाकि मुफ्ती साहब ने इशारों में उन्हे रोकने की भरपूर कोशिश की क्योंकि मुफ्ती साहब मेरी फितरत से वाकिफ थे लेकिन बांगी साहब तो शिकार करने की मकसद में थे, कहां रूकने वाले थे,शुरू हुए तो डिनर लगने की बात पर ही रूके। तब तक ईशा की अजान का वक्त हो चला था,आने को कह कर चले गए। मुफ्ती साहब भी घर से ही वजु कर नमाज को चले गये।
कुछ देर बाद मुफ्ती साहब और बागी जी साथ ही लौटे। बांगी जी डिनर पर आये तो फिर वही दीन दुनिया की बातें शुरू कर दिये। एक-एक अल्फाज चुन-चुन कर जन्नत का बखान शुरू कर दिये,इस दुनिया से ज्यादा वे जन्नत के समर्थन में थे। जन्नत की तारीफ में कसीदे गढने लगे। जन्नत की तारीफ सून कर मुझे ऐसा लगा जैसे कुछ दिन पहले ही जन्नत की सैर कर लौटे हो। एक बारगी लगा कि मैं इनको छेड दूँ फिर ध्यान आया कि मेहमान हूँ,सभ्य रहना फर्ज है,तो छोड दिया। मैं उनकी बातों को चुपचाप सुनता रहा था,हामी भरता रहा पर क्या मजाल की मैने उन्हे कोई उँगली किया।
वहां मुफ्ती साहब कुछ अतिरिक्त सावधान हो रहे थे कि मैं शुरू हुआ तो फिर बांगी जी दुबारा नजर नही आयेगे मगर मैं बहुत संयमित था,यह बात मुफ्ती साहब भी महसूस कर रहे थे पर बांगी जी पर कोई असर नही हो रहा था। खैर जैसे तैसे स्वादिष्ट डिनर खत्म हुआ, हमने बांगी जी से कल दूबारा लोटने की बात कह बिदा ली और मैं उपर छत पर बने कमरे में सोने चला गया।
दूसरे दिन सुबह मुफ्ती साहब के साथ मैं कही जा रहा था कि इतने में बांगी जी गली में ही फिर मिल गये। इधर-उधर की बातों के बाद फिर से अपनी वही धार्मिक दूकान का शटर खोल बैठ गए। मेरे न चाहते हुए भी मेरा शिकार करने की कोशिश जारी थी। मैं दिवार से पीठ टिकायें उनकी बातें सुन रहा था। उन्हे समझ नही आ रहा था कि हमे कही जाने की जल्दी है। अपनी धुन में लगे हुए थे।
इतने में एक छोटा बच्चा दौडता हुआ सामने के घर से निकला और बांगी जी से आकर लिपट गया। बांगी जी ने बताया कि ये उनका बेटा है,12 साल का है। उनके इशारा करने पर बच्चे ने मुझे सलाम किया, मैने भी आशीर्वाद दिया, उसके सर पर प्यार से हाथ घुमाया, गालों पर स्नेह भरी थपकी दी और अपनी ऊंगली पकडा सामने की गुमटी पर ले जाकर उसे 4 डेरी मिल्क वाली चाकलेट दिलाई, फिर बांगी जी के पास लौट आया।
बच्चा उसी वक्त मेरी ऊंगली छोड खुशी-खुशी लौट गया, लौटते समय बच्चे के गाल पर हल्की सी पप्पी भी मैने दी। बांगी जी यह सब देखकर बहुत खुश हो रहे थे। बच्चे के चले जाने के बाद मैं बागी जी से मुखातिब होते हुए, मैने कहा..” बांगी जी आप का बच्चा बहुत प्यारा है। अल्लाह इसे जल्द-से-जल्द जन्नत नशी करे।”
मेरे इतना भर कहने से बांगी जी के चेहरे पर हवाईयां उडने लगी, चेहरा उतर गया, मुफ्ती साहब का चेहरा भी अवाक था लेकिन बांगी जी मुझ पर पिल पडे,…” बडे बदतमीज हो, डाक्टर साहब आप, बोलने के पहले सोचते नहीं क्या? यह क्या बकवास कर रहे हो?”
मैने उन्हे याद दिलाते हुए कहा,…” रात को तो आप जन्नत की बडी तारीफ कर रहे थे,जन्नत के फायदे गिनवा रहे थे, आखिरत का महत्व समझा रहे थे। दुनिया फानी है, यही बता रहे थे और मैने तो बस आप के बच्चे को जन्नत नशीं होने की दुआ ही तो दी है, जिस जन्नत की तारीफ में आप कसीदे गढ रहे थे और आप यहां मुझ पर गुस्सा हो रहे है…..मैंने क्या गलत कह दिया ? आपके बेटे को जन्नत में दाखिल नही करना चाहते है ? कल तो आप बड़ी तारीफ कर रहे थे, जन्नत की!
बांगी जी से कुछ बोलते न बना, शायद शर्म से गडे जा रहे थे। इनकी आँखे झूकी हुई थी, मैं उनसे विदा लेते समय बस इतना कहा,…” आप के बेटे की दुआ के लिए मैं माफी चाहता हूँ लेकिन मेरा मकसद बस आपको आईना दिखाना था और मैं इसमें कामयाब रहा। अगली बार, मुझ से जब भी मिले, खूब मिले, खुल कर मिले, ख़ुशी से मिले मगर अपने धर्म से जबरदस्ती न मिलवायें।”
कहना ना होगा, आज हमारे अच्छे रिश्ते है, यदा कदा फोन फान हो जाता है लेकिन गलती से भी धार्मिक चर्चा नही करते है। मुफ्ती साहब तो खैर मुंबई में जब भी आते है, गर्म जोशी से मिलते हैं। हमारा रिश्ता आज भी कायम है और अब बांगी जी हमारे बीच कड़ी का काम करते हैं। जय हिंद
फैसल खान
June 16, 2023 at 4:52 pm
आपने शानदार जवाब दिया उनको,होते हैं कुछ लोग ऐसे भी