गंगा में दौड़, गायन, शीर्षासन, भोजन! …और जीने को क्या चाहिए! देखें वीडियोज

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Yashwant Singh-

गंगा से न जाने कैसी प्रीत है कि जब भी कोई कहता है- ‘गंगा नहाने चलें!’, मैं फौरन तैयार हो जाता हूं. इन दिनों अपने होम टाउन ग़ाज़ीपुर में हूं. योगाचार्य और पर्यावरणविद भाई उमेश श्रीवास्तव ने प्लान किया कि अबकी हम लोग बीच गंगा में स्थित टापू पर चलकर नहाते हैं और वहीं खाते-पकाते हैं. ऐसा ही हुआ.

शिक्षक संदीप सिंह जी की कार पर सवार होकर अपन चोचकपुर घाट पहुंचे तो वहां पहले से नाविक साथी अशोक चौधरी जी अपनी डोंगी नाव के साथ मौजूद थे. नाव पर सवार होकर अपन लोग टापू पर पहुंचे जहां अशोक जी ने तरबूज-खरबूज की खेती कर रखी है. यहां दौड़ दौड़ कर यहां से वहां तक नहाने में खूब आनंद आया. मैंने गंगा में शीर्षासन भी किया. पानी में नाक डालकर शीर्षासन करने की कोशिश में दो बार असफल हुआ लेकिन तीसरे प्रयास में पैर आसमान की तरफ उन्मुख हो गए.

इस बीच गंगा में नाव पर भोजन पकता रहा. नाविक भाई अशोक चौधरी जी ने प्रेम से मछली, बाटी और चोखा पकाया. खाने से पहले हम लोगों ने पानी के भीतर एक रेस कंपटीशन का आयोजन कर दिया. संदीप जी और हम दौड़ लगाए, उमेश भाई रिकार्ड करते रहे.

दुनिया और माया-मोह से परे अदभुत आनंद के पल थे वो.

थोड़ी देर में नाविक अशोक के छोटे भाई सुभाष चौधरी आ गए जो छात्र हैं. सुभाष को गाने का भी खूब शौक है. इन्होंने अपना लिखा एक गाना सुनाया जो आज के भ्रष्ट राजनेताओं पर केंद्रित था.

कुल मिलाकर आनंद आ गया.

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