Yashwant Singh- गंगा से न जाने कैसी प्रीत है कि जब भी कोई कहता है- ‘गंगा नहाने चलें!’, मैं फौरन तैयार हो जाता हूं. इन दिनों अपने होम टाउन ग़ाज़ीपुर में हूं. योगाचार्य और पर्यावरणविद भाई उमेश श्रीवास्तव ने प्लान किया कि अबकी हम लोग बीच गंगा में स्थित टापू पर चलकर नहाते हैं और …
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गंगा की दुहाई देकर सत्ता में आए और गंगा को ही भूल गए (देखें वीडियो)
गंगा नदी में बह रहा है गंदे सीवर का पानी… माँ गंगा अपनी बदहाली के लिए बहा रही आँसू, नहीं सुन रहे उनके बेटे… याद कीजिए नरेंद्र मोदी का यह कथन… ”न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है। यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है।” आज से 3 वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ये बातें वाराणसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के वक्त कहा था।
गंगा सफाई पर मनमोहन से कम सीरियस हैं मोदी!
गंगा सफाई के बजट में कटौती के बाद बचा पैसा भी खर्च नहीं कर पा रही मोदी सरकार
लखनऊ : लगभग सवा दो साल पहले भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए
गए नरेन्द्र मोदी ने उत्तरप्रदेश की बनारस लोकसभा सीट से नामांकन भरने
के पहले सार्वजनिक रूप से कहा था “पहले मुझे लगा था मैं यहां आया, या फिर
मुझे पार्टी ने यहां भेजा है, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं मां गंगा की
गोद में लौटा हूं”. तब मोदी ने सार्वजनिक रूप से भावुक होते हुए कहा था
“न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है.दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने
यहां बुलाया है.यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक
अपनी मां की गोद में करता है. मोदी ने उस समय यह भी कहा था कि वे गंगा को
साबरमती से भी बेहतर बनाएंगे. पर अब लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल की
राजाजीपुरम शाखा की कक्षा 10 की छात्रा और ‘आरटीआई गर्ल’ के नाम से
विख्यात 14 वर्षीय ऐश्वर्या पाराशर की एक आरटीआई पर भारत सरकार के जल
संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा दिए गए जबाब को देखकर
लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी चुनाव से पूर्व गंगा
नदी की सफाई पर किये गए अपने बड़े बड़े वादों को शायद भूल गए हैं और गंगा
नदी की साफ-सफाई के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की बहुप्रचारित नमामि गंगे
योजना महज फाइलों, सरकारी विज्ञापनों, राजनैतिक आयोजनों और राजनैतिक
बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गयी है.
गंगा को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले कर देना चाहती है सरकारः जलपुरुष राजेन्द्र सिंह
मुंगेर। विश्वबैंक की नज़र गंगा की कमाई पर है, जबकि गंगा माई किसानों, मछुआरों के साथ गंगा तट पर बसे लोगों की जीविका का आधार है। गंगा के नाम पर वोट तो बटोरे गये, लेकिन सत्ता के गलियारें में पहुंचते ही वोट मांगने वाले गंगा को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने पर अमादा हैं। आज जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों पर से आम लोगों का हक छिनता जा रहा है, उस स्थिति में मीडिया एक्टिविस्ट की भूमिका अदा करनी होगी। ये उद्गार मैग्सेसे एवार्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह ने सूचना भवन, मुंगेर में मुंगेर पत्रकार समूह द्वारा ‘प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकने में मीडिया की भूमिका’ पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये।
नदियां जीवनदायिनी हैं, उनका संरक्षण और शुद्धिकरण ज़रूरी है
यमुना के जल पर तैरता औद्योगिक अपशिष्ट
सब जानते हैं कि नदियों के किनारे ही अनेक मानव सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है। नदी तमाम मानव संस्कृतियों की जननी है। प्रकृति की गोद में रहने वाले हमारे पुरखे नदी-जल की अहमियत समझते थे। निश्चित ही यही कारण रहा होगा कि उन्होंने नदियों की महिमा में ग्रंथों तक की रचना कर दी और अनेक ग्रंथों-पुराणों में नदियों की महिमा का बखान कर दिया। भारत के महान पूर्वजों ने नदियों को अपनी मां और देवी स्वरूपा बताया है। नदियों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, इस सत्य को वे भली-भांति जानते थे। इसीलिए उन्होंने कई त्योहारों और मेलों की रचना ऐसी की है कि समय-समय पर समस्त भारतवासी नदी के महत्व को समझ सकें। नदियों से खुद को जोड़ सकें। नदियों के संरक्षण के लिए चिंतन कर सकें।
गंगा को निर्मल रहने दो, गंगा को अविरल बहने दो
केंद्र की नई सरकार ने गंगा नदी से जुड़ी समस्याओं पर काम करने का फैसला किया है। तीन-तीन मंत्रायल इस पर सक्रिय हुए हैं। एक बार पहले भी राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गंगा की सफाई की योजना पर बड़े शोर शराबे के साथ काम शुरू हुआ था। गंगा ऐक्शन प्लान बना। मनमोहन सिंह सरकारने तो गंगा को राष्ट्रीय नदी ही घोषित कर दिया। मनो पहले यह राष्ट्रीय नदी नहीं रही हो। अब तक लगभग बीस हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा का पानी जगह-जगह पर प्रदूषित और जहरीला बना हुआ है। गंगा का सवाल ऊपर से जितना आसान दिखता है, वैसा है नहीं। यह बहुत जटिल प्रश्न है। गहराई में विचार करने पर पता चलता है कि गंगाको निर्मल रखने के लिए देश की कृषि, उद्योग, शहरी विकास तथा पर्यावरण संबंधी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन लाने की जरूरत पड़ेगी। यह बहुत आसान नहीं होगा। केवल रिवर फ्रंट बना कर उसकी सजावट करने का मामला नहीं है। दरअसल, ‘गंगा को साफ रखने’ या ‘क्लीन गंगा’ की अवधारणा ही सही नहीं है।