Deepankar DP-
दिव्यांशु पटेल तो पिछले 2-3 साल से मोदी-मोदी, योगी-योगी कर रहा है. पर आपको अब दिख रहा है जब पत्रकार को पीट दिया.
अरे भाई उसे भी सत्ता में रहना है, सरकार को कमाकर देना है, जब देश का बहुजन मोदी को वोट दे रहा है तो दिव्यांशु पटेल के सामने दो आप्शंस हैं-
- मोदी विरोध करके मछली पालन विभाग में जाकर पॉलिसी बनाने का काम करें, जिसकी पॉलिसी कभी बनती नहीं.
- दूसरा सरकार की सेवा में भक्ति भाव से लगा रहे, सरकार का एजेंडा पूरा करे प्रमोशन ले.
दिव्यांशु जब पत्रकार को पीट चुका था तो आवाज आयी “ये कैसे मार रहा मादरचो*”… ये गाली किसने दी वीडियो में स्पष्ट नहीं है, गाली किसे दी गयी ये भी स्पष्ट नहीं है.
पत्रकार को पीटने से पहले दिव्यांशु भाजपा समर्थकों की भीड़ को ही खदेड़ रहे थे ऐसी सूचना है.
भाजपा समर्थकों को खदेड़ते हुए ही ऐसी स्थिति बनी जिसमें पत्रकार पिटा.
लेकिन इस आर्गूमेंट में एक दोष ये है कि दिव्यांशु के पीटने के तुरंत बाद एक नेता प्रशासन के सामने पत्रकार को कैसे पीट देता है? वो नेता कौन था? निश्चित ही सत्ता पक्ष से रहा होगा. विपक्षी नेता तो खुद का अपहरण बचा लेते यही बहुत था.
तो जिन लोगों का दावा है कि दिव्यांशु भाजपा समर्थकों की भीड़ को खदेड़ रहे थे बीच में पत्रकार आ गया.
तो उसे ये भी बताना चाहिए कि फिर अधिकारी और नेता मिलकर एक पत्रकार को कैसे मारने लगते हैं? इससे तो अधिकारी और नेता के मिलीभगत की बू आती है.
कृष्णा तिवारी के ये बताने के बाद कि वो पत्रकार है उसे क्यों पीटा गया ये सवाल गम्भीर है. सत्ता की हनक में चूर व्यक्ति डिसीजन मेकिंग में टाइम नहीं लेता, मारना का मूड बन गया तो मार दिया इस ख्याल में चूर रहता है.
कृष्णा तिवारी अगर हर मीटिंग में जाते हैं और जिले के अधिकारी उन्हें पहचानते हैं.
तो हो सकता है कि कृष्णा तिवारी अधिकारियों से टफ सवाल पूछने वाले एक बढ़िया पत्रकार हों.
हो सकता है कि नेता और अधिकारी ने उन्हें पीटकर साथ-साथ खुन्नस निकाली हो.
हो सकता है कि दिव्यांशु ने पत्रकार के टफ सवाल का बदला ग्राउंड पर लिया हो.
एक घटना के कई पहलू हो सकते हैं, सारे देखने चाहिए.
मूल खबर-