भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को निरंकुश बनाने और मीडिया पर पाबंदी लगाने वाले बिल को विधानसभा में रखने के प्रकरण के दौरान ही आईएएस ओपी यादव के परिवार से जुड़ा सौ करोड़ का मामला सामने आया है.. ओपी यादव राज्य सरकार का सबसे चहेता अफसर है. राजस्थान में भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को निरंकुश बनाने और मीडिया पर पाबंदी लगाने वाला बिल मंजूर करवाने में जो तत्परता सीएम राजे और भाजपा के अन्य मंत्री दिखा रहे हैं, उन्हें प्रदेश के आबकारी आयुक्त ओपी यादव के ताजा प्रकरण से सबक लेना चाहिए.
आयकर विभाग ने 22 अक्टूबर को ही जयपुर में सिरसी रोड पर 21 बीघा जमीन को बेनामी मानते हुए अटैच किया है. 100 करोड़ रुपए वाली इस जमीन की खरीद-फरोख्त में यादव की पत्नी लक्ष्मी यादव और परिवार के अन्य सदस्यों के नाम सामने आए हैं. सब जानते हैं कि ओपी यादव पर राज्य सरकार कितनी मेहरबान है. लम्बे समय से यादव आबकारी आयुक्त बने हुए हैं. इससे पहले वे ट्रांसपोर्ट कमिश्नर भी रहे हैं. सवाल उठता है कि यादव को कमाई वाले महकमों में ही क्यों नियुक्त किया जाता है. अफसरों और नेताओं के ऐसे गठजोड़ पर कोई आपत्ति नहीं कर सके, इसलिए विधानसभा में ऐसा बिल रखा गया.
इस बिल के पास होने के बाद कोर्ट के आदेश से भी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं हो सकेगा. राज्य सरकार मंजूरी देगी तभी प्रकरण दर्ज हो सकेगा. अब सरकार मंजूरी कैसे देती है, यह किसी से छिपा नहीं है. सरकार की मंजूरी से पहले यदि सोशल मीडिया से लेकर अखबार और चैनलों पर खबर आ गई तो संबंधित पत्रकार और उसके संस्थान के मालिक को तीन वर्ष तक की सजा दी जा सकेगी. यानि इस बिल से प्रेस की स्वतंत्रता भी प्रभावित होगी. अब जब ओपी यादव के परिवार से जुड़ा सौ करोड़ का मामला सामने आया है तब यह सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार यादव को प्रदेश के आबकारी आयुक्त के पद से हटाएगी? यह बात अलग है कि सरकार नेताओं और अफसरों को बचाने के लिए ही विधानसभा में बिल ले आई.