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सियासत

कोरोना लॉक डाउन के बाद का भारत

कहा जा रहा है कि भारत में कोरोना तीसरे स्टेज में पहुंचने के करीब है। यह एक ऐसी परिस्थिति होगी जब यह बीमारी महामारी का रूप ले चुका होगा। यदि भारतीयों ने लॉक डाउन का सही ढंग से पालन नहीं किया तो यह महामारी सामुदायि‍क स्‍तर पर ग्रामीण इलाके तक पहुंच जाएगी। फिलहाल इस बीमारी की कोई दवा अब तक नहीं है। वेंटिलेटर भी काफी कम मात्रा में है। ऐसी स्थिति में जिन लोगों की रोग प्रतिरोधी शक्ति यानी इम्यून सिस्टम ज्यादा होगी वही बच पाएगा।
यदि यह बीमारी तीसरे स्टेज में ना भी पहुंचे बावजूद इसके 2 या 3 माह का लॉक डाउन भारत के इतिहास में गहरे निशान छोड़ेगा। आइए इसे बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं।

1 लॉक डाउन के दौरान वेतन देने की अपील:-

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सरकारे लॉक डाउन के दौरान लगातार अपील कर रही हैं कि निजी संस्थान अपने कर्मचारी का वेतन ना काटे पूरा वेतन दें। जबकि शासन की स्थिति यह है कि वह स्वयं बीएसएनएल समेत कई संस्थानों में सैलरी नही दे पा रही है। लॉक डाउन के दौरान निजी संस्थानों की स्थिति भी खराब हो रही है। रो मटेरियल खराब हो रहा है। मशीनें ओवरहालिंग मांग रही है। नोटबंदी जीएसटी ने पहले ही संस्थानों की कमर तोड़ रखी है। ऐसी स्थिति में बंद की हालत में कर्मचारि‍यों को वेतन देना आसान काम नहीं है।

2 सरकार द्वारा दो माह का राशन मुक्त देने का निर्णय:-

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लगभग सभी राज्य सरकारों ने अपने गरीब नागरिकों को दो-तीन माह का मुफ्त राशन देने का निर्णय लिया है। यह राशन उन्हीं लोगों को मिलेगा जिनके पास गरीबी रेखा राशन कार्ड है। यह राशन कार्ड 2011 में बनी सूची के आधार पर है। इस दौरान वास्तविक गरीब का नाम इस सूची में होगा या नहीं बड़ा प्रश्न है। ऐसे गरीब लोग जो दूसरे प्रदेशों से काम करने आए हैं या ऐसे लोग जिन्होंने अपना निवास स्थान बदल लिया है। उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
ज्ञातव्य है कि यह बीमारी भारत में अमीरों के द्वारा लाई गई है। लेकिन इसका बुरा प्रभाव गरीबों पर पड़ रहा है। हजारों लाखों गरीब मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं। वे राज्य उन्‍हे सुविधा देने को तैयार नहीं है। मूल राज्य उन्हें अपनाने को राजी नहीं है। ऐसी स्थिति में गरीब लोग पैदल ही बीवी, बाल-बच्चे, गृहस्थी का सामान समेत अपने घर की ओर निकल पड़े हैं। उन्हें 300, 600 से 1000 किलोमीटर तक चलना पड़ रहा है। इनमें से कई पुलिस ज्यादतियों के शिकार हो रहे हैं। जो बच रहे हैं वो रास्ते में दम तोड़ रहे हैं। यह तो लॉक डाउन का एक ट्रेलर मात्र है। समस्या इससे भी ज्यादा विकराल है।

लॉक डाउन ने भारतीयों को चार भागों में बांट दिया है

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अ. मध्यमवर्ग- इस वक्त सबसे मजे में है वह टीवी पर रामायण, महाभारत, पसंद की फिल्में देख रहा है और सोशल मीडिया में ज्ञान बांट रहा है। कुछ कट्टर पंथी मघ्‍यम वर्ग पुलिस के द्वारा गरीबों की पिटाई का वीडियो वायरल कर रहा है या सांप्रदायिक मैसेज फैला रहा है। क्योंकि मध्यमवर्ग दो-तीन महीने का राशन जुटाने की स्थिति में है

ब. सरकारी कर्मचारी अधिकारी वर्ग- इस वर्ग का बड़ा हिस्‍सा जो अनिर्वाय सेवा से जुड़ा है लॉक डाउन होने के बावजूद अपने काम पर लगा हुआ है। ज्यादातर क्षेत्र में एस्मा लागू है यानी अनिवार्य सेवा कानून लागू किया गया है। इसलिए वह अपना काम कर रहा है। क्योंकि लॉक डाउन की स्थिति में लोगों को साफ सफाई, बिजली पानी सिलेंडर पेट्रोल चिकित्सा तो चाहिए। खासतौर पर स्थानीय प्रशासन मुस्तैदी से अपने काम पर लगा हुआ है। इस बीच नीजी क्षेत्र के कर्मचारी भी जो अनिर्वाय सेवा से जुड़े है अपनी सेवाये दे रहे है।

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स. गरीब वर्ग- इसमें सबसे ख़राब स्थिति गरीबों की है । खासतौर पर वे लोग जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं। रिक्शा चालक जिनमें ऑटो चालक भी शामिल हैं, खोमचे वाले, दिहाड़ी मजदूर, छोटे कल कारखाने में काम करने वाले असंगठित मजदूर, ड्राइवर, खलासी, छोटे व्यवसायी बुरी तरह प्रभावित है। इनके पास कुछ दिनों का राशन तो है जो खत्म होने की कगार पर हैं। इन्हें रामायण सीरियल की नहीं पसंदीदा फिल्मों की नहीं, भोजन की जरूरत है।

ड. अमीर वर्ग- इस वर्ग अमीर वर्ग या कहे धनिक वर्ग चैन से है। मुनाफाखोरी की अपनी आदत के कारण वे व्‍यवस्‍था पर अपनी नजर रखे हुये है। इतिहास गवाह है धनिक वर्ग ऐसी विपत्ति को हमेशा एक अवसर के रूप में देखता है। हलांकि ऐसी खबर आ रही है कि कुछ अधौगिक संस्‍थानों ने रूपयों की मदद की है।

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लॉक डाउन खत्म होने के बाद क्या होगा?

  1. अर्थव्यवस्था खत्म होने की कगार पर होगी:- जैसा कि पहले बताया गया है कि नोटबंदी और जीएसटी से पहले ही अर्थव्यवस्था की कमर टूट चुकी है। लॉक डाउन के बाद पहले की स्थिति में पहुंचने के लिए कई साल लग सकते हैं। बंद हुए उद्योग धंधों को पुनः चालू करना आसान काम नहीं होगा। वह मजदूर जो लाखों की संख्या में अपने गांव चल कर गए हैं। जल्दी वापस आएंगे इसकी गुंजाइश कम है।
  2. सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है:- जैसा कि होता आया है जब सरकारें जनता की जरूरत पूरी नहीं कर पाती हैं। सियासतदानों में निर्णय लेने की इच्छा शक्ति नहीं होती है। तो विपत्ति का दोष एक-दूसरे पर मढ़ते हुए सांप्रदायिक दंगे होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे मूल समस्‍या से जनता का ध्‍यान भटकाया जा सकता है। कुछ राजनीतिक पार्टियों के आईटी सेल के द्वारा संप्रदायिक मैसेजेस इस दौरान तेजी से फैलाए जा रहे हैं । इससे तो लगता है कि हिंदू मुस्लिमों के बीच हजारों दंगे होंगे। जितने लोग करोना से नहीं मरे । उससे ज्यादा दंगों में मरेंगे। sc.st.obc और सवर्णों के बीच भी दंगे होंगे। सवर्ण अर्थ व्यवस्था खराब होने का ठीकरा आरक्षण पर फोड़ेंगे और sc.st.obc अपनी लूट का जिम्मेदार सवर्णों को ठहरागे।
  3. ऋणी लोग परेशान होंगे:- चुकी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी कईयों की रोजगार छूटेंगे । वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे । ऐसी स्थिति में ऐसे लोग जिन्होंने बिजनेस लोन, कार लोन, मोटरसाइकिल लोन , होम लोन लिया है । उन्हें ईएमआई पटाने में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। हालांकि आरबीआई ने 3 माह की ईएमआई में मोहलत देने का निर्णय लिया है। बड़ा प्रश्न यह है कि क्या 3 माह बाद ऋणी उस 3 माह के ईएमआई को पटाने की स्थिति में रहेगा या नहीं। महंगाई बढ़ने के कारण रुपए का मूल्य घटेगा इस कारण ईएमआई महंगी साबित होगी । शासन स्तर पर ऋण पर ब्याज दर कम करने की जरूरत होगी। तभी एक आम व्यक्ति ऋण पटा पाएगा। अन्यथा बैंक और ऋणी दोनों कंगाल हो जाएंगे।
  4. आपराधिक कृत्य बढ़ेंगे:- लॉक डाउन के दौरान लोग जैसे तैसे अपनी जिंदगी गुजारेंगे। लेकिन इसके बाद वे (आपराधिक प्रवृत्ति के लोग) अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए लूटपाट अपरहण चोरी डकैती बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं।
  5. मुनाफाखोरी और शोषण बढ़ेगा:- जैसा कि भारत में 1943 में आया अकाल का जिक्र मिलता है। जमींदार जिनके पास अकूत धन संपत्ति, खाद्य भंडार थे । उन्होंने अकाल के दौरान गरीबों का खूब शोषण किया। बढ़े हुए दामों में चावल गेहूं बेचा उसके बदले उन्होंने उनकी जमीनें तक हड़प ली। इस बार भी यही होगा मुनाफाखोर जरूरत की वस्तुओं का भंडारण कर रहे हैं। मांग बढ़ते ही मुनाफाखोरी का दौर चालू होगा। एक महीने के राशन के खातिर लोग अपनी जमीन, जायदाद, इज्जत तक गवानी पड़ सकती हैं। यह सब उसी मिडिल क्लास के साथ होगा जो आज टीवी और सोशल मीडिया में मस्त है।
  6. अचल संपत्तियों का मूल्य गिरेगा:- पहले ही नोटबंदी और जीएसटी के कारण अचल संपत्ति का मूल्य स्थिर है। अर्थव्यवस्था गिरने के बाद रुपए का मूल्य घटेगा । इस कारण लोगों की क्रय शक्ति का ह्रास होगा। फल स्वरूप अचल संपत्तियों के मूल्य में भारी गिरावट आ सकती है। इसका फायदा धनिक वर्ग उठाएगा और भारी संपत्तियों का मालिक बन बैठेगा। मिडिल क्लास सड़क पर आ जाएगा ।
  7. देश अंधविश्वास की ओर बढ़ेगा:- गरीबी अशिक्षा एवं अंधविश्वास की ओर देश बढ़ने के लिए मजबूर हो जाएगा। क्योंकि रुपए का मूल्य गिरने का कारण शिक्षा और महंगी हो जाएगी। इस वर्ग की प्राथमिकता शिक्षा के बजाय भूख होगी । इस कारण अशिक्षा और अंधविश्वास बढ़ेगा। वैसे भी गरीबी अशिक्षा और अंधविश्वास एक दूसरे के पूरक हैं।

सरकारों को लाक डाउन के पोस्ट इफेक्ट को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे। हालांकि भारत इसके लिए सक्षम है। प्रश्न यह उठता है कि क्या हमारे राजनैतिक दल और राजनयिक अपने अंदर इस लाक डाउन से निपटने के लिए इच्छाशक्ति को जगा पाएंगे या सबको ऐसे ही भगवान भरोसे छोड़ देंगे? वैसे बहुत सारे साईड इफेक्‍ट को नागरीक अपनी सूझबूझ से निपटा सकते है। जैसे साप्रदायीक सौहाद्र। लेकिन बढ़ती कटुता के बीच ऐसा हो पायेगा एक बड़ा प्रश्‍न है। इस बीच अंधविश्‍वास से इतर वैज्ञानिक सोच को बढ़ाना होगा। यूरोपीय देश ब्‍लैक डैथ महामारी के बाद अंधविश्‍वास मिटाकर वैज्ञानिक सोच के आधार पर विश्‍व शक्ति बन पाया। कई वैज्ञानिक पैदा किये सैकड़ो अविष्‍कार हुये।

लेखक संजीव खुदशाह का विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार हैं. इनकी कई किताबें मराठी, पंजाबी एवं ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। संपर्क- 9977082331

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