कुछ चैनलों ने इंद्राणी प्रकरण में किसी जासूसी कहानी की तरह रहस्य-रोमांच का ‘रस’ घोल दिया है

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Om Thanvi : मेरी पत्नी प्रेमलताजी ने अजीब उलझन में डाल दिया है: कहती हैं समझाओ कि यह इंद्राणी मुखर्जी वाला मामला क्या है? शीना बेटी थी तो बहन क्यों बनी? विधि कौनसी बेटी है? कितने भाई-बहन थे? इंद्राणी का पहला पति कौन था? संजीव कितने नंबर का पति था, दूसरा या तीसरा? शीना का पिता कौन है? पिता की जगह वह नाना का सरनेम बोरा क्यों प्रयोग करती थी? पीटर की पहली और दूसरी बीवी कौन थी? राहुल कौनसी बीवी से है? पीटर के और कितने बच्चे हैं? पीटर की नजर में शीना साली थी तो अपने सास-ससुर या ससुराल में अन्य किसी निकट-पास के शख्स से बातचीत में यह बात पोशीदा कैसे रही, जो शीना को पीटर के सामने उसकी बेटी ही कहेंगे, साली तो नहीं?

मुझे क्या पता? हाँ, यह देखकर हैरान जरूर हूँ कि कुछ चैनलों ने इस खबर में किसी जासूसी कहानी की तरह रहस्य-रोमांच का ‘रस’ घोल दिया है। किसी सुखद आश्चर्य की तरह कल शाम बस एनडीटीवी-इंडिया पर सुशांत सिन्हा अहमदाबाद के पुलिसिया कहर और पर प्राइम टाइम में रवीश बढ़ती आबादी के पीछे अशिक्षा और गरीबी की वजहें टटोलते रहे। शीना की हत्या रिश्ते-नातों की उलझन से भरी कहानी नहीं है, दर्दनाक त्रासदी है। यकीनन वह बड़ी खबर है, मगर महज सनसनीखेज वारदात या अपराध-कथा भर नहीं है; हर शाम उसका अनवरत कवरेज सत्यकथा या मनोहर कहानियां शैली में नहीं किया जा सकता। जिम्मेदार कवरेज वह होगा जो अभागी शीना के दर्द को धुंधलाने-बिसरने न दे, यह भी याद रखे कि शीना के साथ हुए बरताव और अंततः हत्या के पीछे कथित उच्च वर्ग की पारिवारिक टूटन, आधुनिक जीवन-शैली, संवेदनहीनता, महत्त्वाकांक्षाओं, पितृ व मातृ सत्ता के अहंकार और अहम् के आपसे टकरावों आदि की क्या भूमिका है। यह काम पुलिस की खोज – हत्या क्यों और किसने की – से कहीं आगे का है, जो मीडिया कुशलता से कर सकता है – अगर चाहे।
 
Nadim S. Akhter :  पीटर मुखर्जी और इंद्राणी की स्टोरी में बड़ा रस आ रहा है चैनलों के चम्पादकों को !!! सारा जहान भूल के सिर्फ इसी स्टोरी पर पिले-पलाए बैठे हैं. आपके घर में ऐसा हो जाता तो क्या करते??!! मुंह छुपाते या फिर शर्म से आत्महत्या कर लेते??!! किसी की निजी जिंदगी के हादसे क्राइम की स्टोरी हो सकती है, पर चैनलों की टीआरपी का एजेंडा नहीं. कड़वा बोल रहा हूं पर सच्चाई यही है कि पत्रकारिता करनी नहीं आती तो इस पेशे को बदनाम मत करिए. और रिश्तों को dramatize करने का इतना ही शौक-जूनून है तो जाकर एकता कपूर से नौकरी मांगिए. उसके लिए सीरियल बनाइए-बनवाइए. शर्म नहीं आती आप लोगों को !!!

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी और नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.

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