वरिष्ठ पत्रकार इरा झा के मामले में बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड की जांच कार्यवाही को श्रम न्यायालय ने अनुचित और अन्यायपूर्ण करार दिया है. इरा झा ने 1985 ने बतौर सब एडीटर टाइम्स समूह के नवभारत टाइम्स अखबार में ज्वाइन किया था. वह 1996 में चीफ सब एडीटर बनीं थीं. हिंदी पत्रकारिता में न्यूज डेस्क की कमान संभालने वाली वह पहली महिला हैं. भारी ट्रैफिक जाम की वजह से वह दफ्तर देर से पहुंचीं. इस वजह से उनका अपने विभाग प्रमुख से विवाद हो गया.
मैनेजमेंट ने 15 मई 2000 को उन्हें चार्जशीट और सस्पेंशन लेटर जारी करके उन्हें सस्पेड कर दिया. उन पर पर इनसबॉर्डिनेशन और इनडिसिप्लेन के आरोप लगाए गए थे. मैनेजमेंट ने उनके मामले की विभागीय जांच कराई और 24 जनवरी 2001 को उसकी रिपोर्ट जमा कर दी. उन्हें 13 मार्च 2001 को कारण बताओ नोटिस भेजा गया. इसका जवाब देने के लिए 72 घंटे की मोहलत दी गई थी. उनका घर बंद था लिहाजा 28 मार्च 2001 को यह नोटिस टिप्पणी के साथ कंपनी के संबद्ध विभाग में लौट आया. कंपनी ने बगैर यह जांचे कि नोटिस इरा झा को पहुंचा या नहीं, उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया.
अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने जांच कार्यवाही में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया है. संस्थान 24 फरवरी 2001 की रिपोर्ट दो महीने दबाए बैठा रहा और 23 मार्च को इरा झा को नोटिस भेजते वक्त सिर्फ 72 घंटे की मोहलत देकर जवाब तलब किया. यह भी नहीं देखा गया कि इरा झा को नोटिस मिला या नहीं. इन तथ्यों के आधार पर श्रम न्यायालय के न्यायाधीश श्री नरेंदर कुमार ने अपने फैसले में मैनेजमेंट की जांच को अनुचित अन्यायपूर्ण बताया है. फैसला वादी इरा झा के पक्ष में है. कानून के हिसाब से मैनेजमेंट को एक और मौका दिया जाएगा. इस दौरान वह अपने आरोप साबित करने के लिए अदालत में गवाह पेश करेंगे. इसके लिए अदालत ने 30 मार्च 2016 का दिन तय किया है. मैनेजमेंट की तरफ से सुश्री रावी बीरबल ने पैरवी की और इरा झा के वकील प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता श्री एनडी पंचोली हैं.