दबंगों का यार है ब्यूरो चीफ… इसीलिए दबंगों द्वारा गरीबों की झोपड़ी उजाड़ने की खबर दैनिक जागरण में नहीं छपी… इससे आहत संवाददाता ने दे दिया इस्तीफा…
अमर उजाला में दो-दो तस्वीरों समेत विस्तार से छपी गरीबों की झोपड़ियां गिराने की खबर
बस्ती : जिला मुख्यालय से करीब बारह किलोमीटर दूर बसे महसों कस्बे के बाहर पांच गरीब परिवार करीब पचास साल से सरकारी जमीन पर झोपड़ी बना कर बसे थे। अचानक इस इलाके के दो दबंगों ने उन पांच गरीबों के झोंपड़ों पर बुलडोजर चलवा दिया। मामले में दो दिन बाद पुलिस ने कार्रवाई की और दोनों दबंगों को धारा-151 में दबोच लिया। बुलडोजर का इंदराज पुलिस ने अपने कागजों में दर्ज करने की जरूरत नहीं समझी। अगले दिन थाने से छूटने के बाद दबंग फिर गुंडई करने लगे और झोंपड़े गिरा कर उस जमीन को कब्जाने में जुट गये।
यह एक सनसनीखेज खबर थी। पांच गरीबों के झोंपड़े तहस-नहस करने का दुस्साहस करने वाले दबंगों की हरकत से पूरा इलाका स्तब्ध हो गया। सभी अखबारों ने अपने क्षेत्रीय संवाद सूत्रों द्वारा भेजी गयी इस खबर को प्रमुखता से छापा। चाहे वह अमर उजाला रहा हो, दैनिक हिन्दुस्तान रहा हो, अथवा एनबीटी, सहारा अथवा कोई अन्य समाचार संस्थान। कुछ ने तो लगातार कई दिनों तक उस हादसे के विभिन्न पहलुओं और फॉलोअप की खबरों को खासी तरजीह दी। जाने क्या सेटिंग थी कि दैनिक जागरण को इस खबर में तनिक दम न दिखा। उसने इस मामले की जुड़ी हर खबर को सिरे से रद्दी की टोकरी में फेंकना शुरू कर दिया।
दैनिक जागरण के महसों स्थित संवाददाता रवीन्द्र पाल ने जब दैनिक जागरण बस्ती के जिला इंचार्ज एसके सिंह से जब उस खबर के न छपने के बारे में जानना चाहा तो इंचार्ज ने बताया कि यह खबर गोरखपुर से हटायी गयी लेकिन अगले दिन उसे फॉलोअप खबर के तौर पर छापा जाएगा। पता चला कि इंचार्ज ने बाद में भी इस मामले की एक लाइन नहीं छापी। दैनिक जागरण के संबंधित संवादसूत्र रवीन्द्र पाल को जागरण इंचार्ज का यह जन-विरोधी रवैया सख्त बुरा लगा। इस रिपोर्टर ने दैनिक जागरण से इस्तीफा देने का फैसला कर लिया। अपने त्यागपत्र में रवींद्र पाल ने आरोप लगाया है कि इस घटनाक्रम को लेकर अन्य अखबारों में पर्याप्त खबर और फालोअप छपा है। लेकिन जागरण जैसा अखबार शुरू से ही अपनी संदिग्ध चुप्पी साधे बैठा रहा।
रवींद्र के अनुसार इससे जागरण के पाठकों में अखबार की विश्वसनीयता घटी और बिक्री भी प्रभावित हुई है। साथ ही अखबार पर पैसा लेकर खबर रोकने का आरोप भी लगा। इससे स्तब्ध और आहत होकर रवींद्र पाल ने स्वयं को जागरण से अलग करते हुए बाकायदा इस्तीफा सौंप दिया। आरोप है कि दैनिक जागरण के इंचार्ज की करीबी आरोपी दबंगों से है, इसलिए उन्होंने दबंगों की खाल बचाने के लिए यह सारा षडयंत्र रचा। जिस जमीन को कब्जाया जा रहा है उसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपया है। इसको लेकर महसों में यह विवाद खड़ा हो गया है। रवींद्र का दावा है कि इस बेशकीमती जमीन को दूसरों को थमाने के लिए खुलेआम रेट खुल चुके हैं, जहां गरीबों के झोंपड़े खड़े थे।
रवींद्र पाल द्वारा सौंपा गया इस्तीफा इस प्रकार है…
आदरणीय
सम्पादक /जिलाप्रभारी
दैनिक जागरण, बस्ती
महोदय,
अवगत कराना है कि विगत शनिवार दिनाँक 19 अगस्त को दिन में 12 बजे महसों, साहूपार में कुछ दबंगों द्वारा पाँच गरीब परिवारों की पाँच रिहायशी झोपड़ियों को बुल्डोजर चलवाकर ध्वस्त करवा दिया गया। इसकी खबर प्रतिस्पर्धी अखबारों हिन्दुस्तान, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा समेत अन्य लोकल अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई और लगातार तीन दिन तक छपती रही। लेकिन जागरण ने इस अत्यन्त गम्भीर विषय पर एक भी शब्द प्रकाशित करने की जहमत नहीं उठाई और मौन रहा। इसकी वजह से जागरण के स्थानीय पाठकों द्वारा मेरे ऊपर खबर दबाने का निराधार आरोप लगाया जा रहा है। घटना घटित होने के तुरंत बाद ही मैंने बस्ती जिला प्रभारी व बस्ती डेस्क प्रभारी महोदय को मय फोटो सहित घटना की सूचना उपलब्ध करवा दिया और शाम 4.30 पर स्वयं कार्यालय जाकर खबर भी कम्पोज करवाया था।
पता नहीं किन कारणों से दूसरे दिन जागरण में खबर प्रकाशित नहीं हुई। आश्चर्यचकित होकर जब मैंने इस संबंध में जिला प्रभारी जी को फोन कर खबर प्रकाशित ना होने के कारण के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि खबर भेजी गई थी लेकिन गोरखपुर से ही कट गई लेकिन आज इस पर फालोअप भेज कर इसकी भरपाई की जाएगी लेकिन उसके बाद भी इस घटना के संबंध में एक भी लाइन नहीं छपी। अन्य अखबारों में फालोअप छपा। इससे जागरण के पाठकों में अखबार की विश्वसनियता घटी और बिक्री भी प्रभावित हुई और पैसा लेकर खबर रोकने का आरोप भी लगा। इससे मैं स्तब्ध और आहत हूँ। अतः मैं अपने आपको जागरण से अलग करना चाहता हूँ। मेरे ऊपर जागरण का किसी तरह का कोई बकाया नहीं है।
धन्यवाद
रवीन्द्र पाल
जागरण संवाददाता
महसों
बस्ती (यूपी)