Connect with us

Hi, what are you looking for?

आवाजाही

जनसंदेश टाइम्स बनारस के संपादक पद को विजय विनीत ने किया गुडबॉय, पढ़ें इस्तीफानामा

Vijay Vineet- दोस्तों के नाम… अलविदा जनसंदेश टाइम्स। अब मेरा सफर खत्म होता है…

षड्यंत्रकारी, हाहाकारी और धूर्त कोरोना वायरस से जंग जीत लिया, लेकिन उन लोगों से हार गया जिन पर हमने तहे दिल से भरोसा किया। पिछले कई दिनों से मनन कर रहा था अब जनसंदेश टाइम्स से अपने रिश्ते को विराम देना चाहिए और अपने मन की बात सबको बता देने चाहिए…।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कोविड से लड़कर निकला, तभी समझ में आ गया था कि चालबाज वायरस के चंगुल से बच पाना आसान है, लेकिन मायावी सिस्टम से लड़ पाना बेहद कठिन है। मैं नहीं चाहता को वही सब करूं जो करने के लिए दिल गवाही न दे। जिंदगी में हरदम दिल की आवाज ही सुनता रहा हूं। वही सुनना भी चाहता हूं। आगे कुछ बेहतर दिखेगा, तो फिर दिल के तराजू पर तौलूंगा। नए ढंग से सोचूंगा कि क्या सही है और मुझे क्या करना है? फिलहाल तो उसी पगडंडी पर चलने के लिए तैयार हूं, जिन पर चलकर बनारस, बरेली, मेरठ और न जाने कहां-कहां तक का सफर तय किया।

अतीत में झांकता हूं तो लगता है मैं लौटकर क्यों आया था बनारस? लेकिन अब मन में सुकून है कि जो छोड़ दिया सो छोड़ दिया। बड़े अखबारों की कई नौकरियां मैंने खुद छोड़ी है। हर बार अचानक नौकरियां छोड़ी। अचानक इस्तीफा भी दिया। पलटकर नहीं देखा। मैने जीवन में वो अहसास कभी नहीं पाला कि मुझे बड़ा पीढ़ा, मोटी रकम और ऊंची कुर्सी चाहिए। पैतीस साल पहले भी मैं रिपोर्टर था और आज भी हूं। खबरों के लिए दिन-रात बेचैन रहने का शगल अभी भी मन में हिलोरें लेता है। ठीक उसी तरह, जैसे सत्ता और सिस्टम के खिलाफ लिखने-बोलने में तनिक भी परहेज नहीं करता था। लॉकडाउन में जब सब कुछ ठहर गया तो मैने पत्रकारिता का नया गलियारा खोला। कभी किसी की धौंस-डपट बदर्दाश्त नहीं की। भारी मन से ही सही, पर अब मैने जनसंदेश टाइम्स छोड़ दिया है। मुझे सुकून है कि नया रास्ता मेरे मन का रास्ता होगा। जब अपने मन लायक होगा तो कुछ और करेंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दोस्तों, चंदौली के एक छोटे से गांव से बनारस शहर में पढ़ने आया था। उस समय ढेरों सपने और बेशुमार हौसला था। अदम्य साहस के बल पर हमने जो सोचा भी नहीं था, वो भी पा लिया।

मीडिया में रहते हुए मैने ईमानदारी का रास्ता चुना। न सरकारी पत्रकार बनने की कोशिश की, न दरबारी। खबरों का कभी सौदा नहीं किया। जब तक रहा जनसंदेश टाइम्स से दिल से जुड़ा रहा। कुछ अच्छी खबरें लिखीं, जिससे जनसंदेश टाइम्स को वैश्विक पहचान मिली।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुझे याद है कि हमने न जाने कितने आयामों को पार किया, लेकिन पत्रकारिता के प्रति अपनी निष्ठा, मूल्यों और विचारों को कभी डिगने नहीं दिया। जीवन में मैने बस यही सीखा है-जो भी कहो, बिल्कुल बेबाक। खुलकर और सच कहो। मीडिया में अब ‘राजा का बाजा’ बजाने वाले पत्रकार ही सभी को पसंद हैं। अब उन्हें देखिए और सुनिए। उनके कहे का जाप कीजिए। उनके बोले का वाट्सएप फॉरवर्ड कीजिए। लहालोट होकर शासन-प्रशासन और सत्ता की चाटुकारिता करना और रोजाना उनकी शान में कसीदे पढ़ना मुझे पसंद नहीं है। चाटुकारिता का च्यवनप्राश जिसे अच्छा लगता है वो सेवन करें। ऐसा करने वाले खुद को महान मानते हैं तो मानें। मैं जो हूं, वो हूं और आगे भी वही रहूंगा।

मुझे लगता है कि मंज़िल की ओर चलते-चलते जब मुसाफ़िर बहुत थक जाता है। तब ज़रूरत पड़ती है विश्राम करने की। फिर वो अपने रहगुज़र में एक ऐसी वृक्ष की तलाश करता है जहां छांव के साथ-साथ उसे ठंडी मनमोहक और ताजी हवाएं मिल सकें। थकान भी दूर हो जाए। कुछ सुकून के पल भी नसीब हों। मुझे लगता है कि कभी भी ऊंचे और लंबे पेड़ों के नीचे ये सुख नसीब नहीं होता। पत्रकारीय जीवन में मैने बहुतों को संवारा। अनगढ़ लोगों को सिखाया। उनके लिए रास्ता भी बनाया। बहुतों को नौकरियां भी दिलाई। देश के तमाम बड़े अखबारों में काम किया। बड़े-बड़े आफर भी ठुकराए। कई नौकरियां भी छोड़ी। सचमुच अब मैं सकून में हूं। अब मुझे वो नहीं करना पड़ रहा है जो सब कर रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरे हमदर्द कतई परेशान न हों। अखबारी दुनिया में टिकता वही है, जिसकी खबरें बिकती हैं। बिकने वाले पत्रकारों की खबरें नहीं बिका करतीं। हमेशा मैने भीड़ से अलग हटकर लिखने और दिखाने की कोशिश की है। मुझे मालूम है कि जो भीड़ साहस देती है वो पहचान छीन लेती है। यूं तो मेरा अतीत पीछे छूट चुका है। भविष्य में क्या होगा, मैं नहीं जानता। पिछले पैतीस सालों के अखबारी जीवन में मैंने अपने काम में कभी भी कमी नहीं रखी। हमेशा अपना बेस्ट देने की कोशिश की। आगे भी कुछ करूंगा तो अच्छा ही करूंगा।

जनसंदेश टाइम्स के प्रबंधन से मेरा अर्ज है कि मेरे परफॉरमेंस में कोई कमी अगर रह गई हो तो उसे माफ कर दीजिएगा। मैंने बहुत सच्चे दिल से काम किया है। बहुत काम किए हैं और कई काम अधूरे रह गए हैं। पिछले साढ़े नौ सालों में हमने इस संस्थान से बहुत कुछ सीखा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

साथियों, उम्मीद है कि मेरा उत्तराधिकारी आप लोगों के सहयोग से जनसंदेश को बहुत ऊंचाई तक ले जाएगा। आप सबको शुभकामनाएं। आप सब बेहतर करें और आगे बढ़ें। छोटी सी है अखबारी दुनिया। मुलाकात होती रहेगी। किसी को अगर मेरी वजह से दुख पहुंचा हो तो माफी चाहूंगा।

आपका
विजय विनीत

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement