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सुख-दुख

कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे, उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे… (सुनें)

कई फिल्मी गीत ऐसे हैं जो ढेर सारी आध्यात्मिक उपदेशात्मक बातों से बड़ी बातें कह समझा जाते हैं, वह भी बहुत थोड़े वक्त में और बहुत प्यार से. ऐसा ही एक गीत है किशोर कुमार की आवाज में. गीतकार योगेश हैं. संगीतकार राजेश रोशन. फिल्म है ‘बातों बातों में’ जो वर्ष 1979 में रिलीज हुई थी. इसका ये गाना आज भी बहुत पापुलर है: ”कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे…”. ये ऐसा गीत है जब कई किस्म के मन-मिजाज के वक्त सुना जा सकता है. जब ध्यान में जाने का दिल हो रहा हो तो इसे सुनें. जब अकेले चाय पीते हुए सिगरेट के छल्ले बनाने का मन कर रहा हो तो इसे सुनें.

<p>कई फिल्मी गीत ऐसे हैं जो ढेर सारी आध्यात्मिक उपदेशात्मक बातों से बड़ी बातें कह समझा जाते हैं, वह भी बहुत थोड़े वक्त में और बहुत प्यार से. ऐसा ही एक गीत है किशोर कुमार की आवाज में. गीतकार योगेश हैं. संगीतकार राजेश रोशन. फिल्म है 'बातों बातों में' जो वर्ष 1979 में रिलीज हुई थी. इसका ये गाना आज भी बहुत पापुलर है: ''कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे...''. ये ऐसा गीत है जब कई किस्म के मन-मिजाज के वक्त सुना जा सकता है. जब ध्यान में जाने का दिल हो रहा हो तो इसे सुनें. जब अकेले चाय पीते हुए सिगरेट के छल्ले बनाने का मन कर रहा हो तो इसे सुनें.</p>

कई फिल्मी गीत ऐसे हैं जो ढेर सारी आध्यात्मिक उपदेशात्मक बातों से बड़ी बातें कह समझा जाते हैं, वह भी बहुत थोड़े वक्त में और बहुत प्यार से. ऐसा ही एक गीत है किशोर कुमार की आवाज में. गीतकार योगेश हैं. संगीतकार राजेश रोशन. फिल्म है ‘बातों बातों में’ जो वर्ष 1979 में रिलीज हुई थी. इसका ये गाना आज भी बहुत पापुलर है: ”कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे…”. ये ऐसा गीत है जब कई किस्म के मन-मिजाज के वक्त सुना जा सकता है. जब ध्यान में जाने का दिल हो रहा हो तो इसे सुनें. जब अकेले चाय पीते हुए सिगरेट के छल्ले बनाने का मन कर रहा हो तो इसे सुनें.

जब तनाव अवसाद या अकेलापन महसूस हो रहा हो तो इसे सुनें. इस गीत में वो ताकत, कशिश, तड़प है कि आप अंदर से खुद को इनकी लाइनें गुनगुनाने से नहीं रोक पाएंगे और ये आपका गुनगुनाना दरअसल वही रास्ता है जिस पर चलना शुरू करने के बाद आप अकेलेपन, अवसाद, तनाव आदि से मुक्त हो जाते हैं. मैं खुद की बात करूं तो प्रोफेशनल लाइफ के इतर मेरा ज्यादातर वक्त भांति भांति के खान-पान बनाने पकाने, गीत-संगीत सुनने सुनाने में व्यतीत होता है. ये दोनों वो क्रिएटिव काम हैं जिसे अगर आप तसल्लीबख्श तरीके से करना सीख लें तो जीवन की आधी समस्याएं हल हो जाया करेंगी.

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असल में समस्याएं बाहर कम, दिमाग में ज्यादा होती हैं. हम या तो अतीत को लेकर परेशान रहते हैं या फिर फ्यूचर को लेकर चिंतामग्न. कुछ दिन आप अतीत और भविष्य दोनों को गोली मार कर वर्तमान में जीना सीखिए. वर्तमान में जीना सिखाने के लिए ये गाने बजाने और खाने बनाने बड़े काम के चीज हैं. अपने को इसमें इंगेज रखिए. देखिए, कितना आनंद आता है. तो लीजिए, बहुत दिनों बाद मेरी पसंद का एक गाना सीखिए जो इस तनाव, उदासी, असहिष्णु कहे जाने वाले दौर में आपके दिल दिमाग को कुछ पल के लिए राहत दे सके.

जै जै.

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-स्वामी भड़ासानंद


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कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे

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कभी सुख, कभी दुःख  यही जिन्दगी है
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है
नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे

भले तेज कितना हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में तू रख ये भरोसा
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे..

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कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है
लहर प्यार की जो, कहीं उठ रही है
उसे एक दिन तो, किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे…

कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे.

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(Lyricist- Yogesh, Singer- Kishor Kumar, Music Director- Rajesh Roshan, Movie- Baton Baton Mein – 1979)

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