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कैराना का पलायन और जागरण की पत्रकारिता : इस बेवकूफी भरी रिपोर्टिंग पर ना हंसा जा सकता है ना रोया जा सकता है

Sanjaya Kumar Singh : कैराना से हिन्दुओं के कथित पलायन के आरोप और आरोप लगाने वाले सांसद, उनकी पार्टी की राजनीति के बाद अब देखिए जागरण की पत्रकारिता। “फिलहाल कलेजा थाम कर बैठा है कैराना” – शीर्षक अपनी रपट में अवनीन्द्र कमल, कैराना (शामली) लिखते हैं, “दोपहर की चिलचिलाती धूप में पानीपत रोड पर लकड़ी की गुमटी में अपने कुतुबखाने के सामने बैठे मियां मुस्तकीम मुकद्दस रमजान महीने में रोजे से हैं। पलायन प्रकरण को लेकर उनके जेहन में खदबदाहट है। चाय की चुस्कियों में रह-रहकर चिन्ताएं घुल रही हैं, मुस्तकीम की। कहते हैं मुल्क में कैराना को लेकर जैसी हलचल है, वैसी यहां नहीं। देख लीजिए। यह सब सियासतदां कर रहे हैं। चुनावी आहट है न। धार्मिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण के लिए कैराना को बदनाम किया जा रहा है, क्यों? दल कोई हो, बरी कोई नहीं है। नैतिकताएं रेगिस्तान हो रही हैं। हां गुंडों- अपराधियों ने यहां के माहौल को जरूर बिगाड़ा है, लेकिन अभी गनीमत है।”

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Sanjaya Kumar Singh : कैराना से हिन्दुओं के कथित पलायन के आरोप और आरोप लगाने वाले सांसद, उनकी पार्टी की राजनीति के बाद अब देखिए जागरण की पत्रकारिता। “फिलहाल कलेजा थाम कर बैठा है कैराना” – शीर्षक अपनी रपट में अवनीन्द्र कमल, कैराना (शामली) लिखते हैं, “दोपहर की चिलचिलाती धूप में पानीपत रोड पर लकड़ी की गुमटी में अपने कुतुबखाने के सामने बैठे मियां मुस्तकीम मुकद्दस रमजान महीने में रोजे से हैं। पलायन प्रकरण को लेकर उनके जेहन में खदबदाहट है। चाय की चुस्कियों में रह-रहकर चिन्ताएं घुल रही हैं, मुस्तकीम की। कहते हैं मुल्क में कैराना को लेकर जैसी हलचल है, वैसी यहां नहीं। देख लीजिए। यह सब सियासतदां कर रहे हैं। चुनावी आहट है न। धार्मिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण के लिए कैराना को बदनाम किया जा रहा है, क्यों? दल कोई हो, बरी कोई नहीं है। नैतिकताएं रेगिस्तान हो रही हैं। हां गुंडों- अपराधियों ने यहां के माहौल को जरूर बिगाड़ा है, लेकिन अभी गनीमत है।”

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यह खबर के बीच या आखिर में जगह भरने या उपसंहार के रूप में नहीं लिखा गया है। यह शुरुआत है, यही खबर है। इसके बाद मुझसे आगे पढ़ा नहीं गया। आप चाहें तो 20 जून के शामली एडिशन में खबर आनलाइन जागरण के ईपेपर पर पढ़ सकते हैं।  इस खबर में खास बात यह है कि रमजान महीने में मस्तकीम मियां को रोजे से बताया गया है और यह भी कहा गया है कि, चाय की चुस्कियों में रह-रहकर चिन्ताएं घुल रही हैं, मुस्तकीम की।

अव्वल तो यह जरूरी नहीं है कि हरेक मुस्तकीम मुकद्दस रमजान महीने में रोजे से हों। लेकिन पलायन प्रकरण को लेकर उनके जेहन में खदबदाहट हो सकती है। रमजान का महीना चल रहा है यह भी जागरण का हर पाठक जाने – कोई जरूरी नहीं है। पर आप ही बता रहे हैं कि मियां मुस्तकीम मुकद्दस रमजान महीने में रोजे से हैं। फिर आप ही लिख रहे हैं, चाय की चुस्कियों में रह-रहकर चिन्ताएं घुल रही हैं, मुस्तकीम की।

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इस बेवकूफी भरी रिपोर्टिंग पर ना हंसा जा सकता है ना रोया जा सकता है। मीडिया ऐसे ही लोगों के भरोसे है और मीडिया से जो अपेक्षाएं हैं अपनी जगह। इसी मामले पर सोशल एक्टिविस्ट और पत्रकार वसीम अकरम त्यागी का लिखा भी पढ़ सकते हैं, नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें :

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http://www.bhadas4media.com/print/9928-kamal-ki-galat-reporting

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जनसत्ता अखबार में वरिष्ठ पद पर कार्य कर चुके पत्रकार संजय कुमार सिंह के एफबी वॉल से. 

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0 Comments

  1. zeeshan akhtar

    June 29, 2016 at 5:52 am

    DURBHAGYA HAI JOURNALISM KA

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