लखनऊ : वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि अन्ना आंदोलन और उसके बाद आप पार्टी के गठन से बहुत से लोगों में जो उम्मीदें जगी थीं, वे बहुत जल्दी ही टूट गई हैं और अब ये स्पष्ट होता जा रहा है कि ये भी दूसरी पार्टियों की ही डगर पर चल रहे हैं।
नरेश सक्सेना अरविन्द केजरीवाल सरकार को उसके चुनावी वादों की याद दिलाने गये हज़ारों मज़दूरों एवं छात्रों पर 25 मार्च को दिल्ली सचिवालय पर पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज के विरोध में जीपीओ स्थित गांधी प्रतिमा पर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
प्रदर्शन में कवि अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि ऐसी दमनात्मक कार्रवाइयों के विरोध में साझा आंदोलन खड़ा करने का प्रयास होना चाहिए। कवयित्री कात्यायनी ने कहा कि इस घटना से साफ हो गया है कि पुरानी पूँजीवादी पार्टियों से जनता के बढ़ते मोहभंग का लाभ उठाकर लोकलुभावन जुमलों और दिखावटी जनसरोकारों की बात करते हुए उभरी यह नयी पार्टी चुनावी बाज़ार में नयी पैकिंग में पुराने माल को बेचने वाले एक धूर्त व्यापारी के सिवा और कुछ नहीं है। ‘आप’ के भीतर इस समय चल रही कुत्ताघसीटी भी यही साबित कर रही है।
प्रदर्शन में लखनऊ विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग कालेज तथा टेक्सटाइटिल इंजीनियरिंग कालेज, कानपुर के छात्र भी शामिल हुए। इनमें श्री जानकी प्रसाद गौड़, डा. राजीव कौशल, रोडवेज़ संविदा कर्मचारी संघ के होमेंद्र मिश्रा, महानगर बस सेवा कर्मचारी संघ के प्रदीप कुमार पांडेय, आइसा के सुधांशु, अनुराग ट्रस्ट के अध्यक्ष रामबाबू, पत्रकार संजय श्रीवास्तव, स्त्री मुक्ति लीग की शाकंभरी, शिप्रा श्रीवास्तव, शिवा, रूपा, पत्रकार एस.के. गोपाल, राष्ट्रीय प्रस्तावना के संपादक प्रभात कुमार आदि प्रमुख थे।