अनिल सिंह-
-इंजीनियर के खिलाफ दर्ज हुआ था आत्महत्या के लिये उकसाने का मामला
-योगी के तमाम प्रयास के बावजूद लोक निर्माण विभाग में नहीं रूक रहा भ्रष्टाचार
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में लोक निर्माण विभाग एवं भ्रष्टाचार एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं। बसपा शासनकाल में नसीमुद्दीन, सपा शासनकाल में शिवपाल यादव तथा भाजपा शासनकाल में केशव मौर्या और उनकी टीम लोक निर्माण विभाग को जमकर दूह रही है। विभाग में जगह-जगह उन अधिकारियों को सेट किया जा रहा है, जिन्हें भ्रष्टाचार एवं गड़बड़ी करने में महारत हासिल है। सीएम योगी आदित्यनाथ के लाख प्रयास के बावजूद लोक निर्माण विभाग में भ्रष्टाचारी अधिकारियों की पौ बारह है।
मामला चीफ इंजीनियर अंबिका सिंह से जुड़ा है, जिसके चेंबर में एक ठेकेदार ने इसलिये आत्महत्या कर लिया था कि उसे कमीशन वसूली के लिये लगातार प्रताडि़त किया जा रहा था। जिस अधिकारी को सस्पेंड करके साइडलाइन किया जाना चाहिए था, उस व्यक्ति को और महत्वपूर्ण पद दे दिया गया, क्योंकि उसे अपने शुभचिंतकों की सेवा करने में महारत हासिल है। बताया जाता है कि खुद को केशव मौर्या का मेंटर के रूप में प्रचारित करने वाले सज्जन का वरदहस्त इस अधिकारी के सिर पर है।
गौरतलब है कि अंबिका सिंह वाराणसी में पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर के पद पर थे। 28 अगस्त 2019 को ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव ने विभाग में बकाया धनराशि के भुगतान को लेकर अंबिका सिंह से मिलने गया था। कमीशन के चक्कर में विभागीय अधिकारी अवधेश को लगातार प्रताडि़त कर रहे थे। अंबिका सिंह भी इन्हीं में शामिल थे। अवधेश अपने बकाया भुगतान के लिये दौड़-दौड़ कर बुरी तरह परेशान हो चुका था। 28 अगस्त को भी वही इसी मामले में मिलने अंबिका सिंह के चेंबर में गया था।
आरोप है कि अंबिका सिंह ठेकेदार का बकाया भुगतान के मामले में उसकी मदद करने की बजाय भ्रष्टाचारी अधिकारियों का पक्ष लेते हुए उसे बुरी तरह बेइज्जत किया। इसी बेइज्जती से आहत होकर अवधेश श्रीवास्तव ने अंबिका के चेंबर में ही खुद की लाइसेंसी बंदूक से गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इस मामले में बनारस के चीफ इंजीनियर अंबिका सिंह समेत कुल आठ लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिये उकसाने के लिये बनारस कैंट थाने में आईपीसी की धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
इस बीच मामला ठंडा पड़ते ही अंबिका सिंह ने जुगाड़ कर अपना नाम मामले से बाहर करा लिया और आत्महत्या के लिये उकसाने के मामले में एफआर लगवा ली, जबकि अवधेश ने अंबिका सिंह के चेंबर में ही उसके सामने बैठकर खुद को गोली मारी थी। अवधेश ने सुसाइड नोट में लिखा था कि कबीरचौरा महिला अस्पताल में 100 बेड के मैटरनिटी वार्ड के निर्माण का ठेका ई-टेंडरिंग के माध्यम से उसे दिया गया था। विभागीय अधिकारियों ने अनुबंध को मूल दर से 20 फीसदी ज्यादा पर तय कर दिया और कमीशन के लिये लगातार दौड़ा रहे थे।
उसने लिखा था उसका कुल बकाया 14 करोड़ 50 लाख रुपये से ऊपर हो गया। मगर भुगतान की जगह विभागीय अधिकारियों ने कभी मशीनरी एडवांस तो कभी सिक्योरिटी एडवांस के नाम पर ही हर बार बिल फार्म पर दस्तखत कराए गए और साढ़े चौदह में से केवल दस करोड़ का ही भुगतान किया गया। अवधेश ने अपने नोट में कमीशन कोरी का भी आरोप लगाया था। इसी कमीशन के चक्कर में अवधेश को इतना दौड़ाया गया कि उसने चीफ इंजीनियर के चेंबर में ही खुद की इहलीला समाप्त कर ली।
चीफ अंबिका सिंह की आर्थिक ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले उसने खुद को इस मामले से बाहर निकाला और फिर सेटिंग करक लखनऊ का चीफ इंजीनियर बन गया। ऐसे अधिकारी को इतनी महत्वपूर्ण कुर्सी किसलिये दी गई, यह समझना कोई राकेट साइंस नहीं है। कहा जा रहा है कि यह कमाऊ पुत्र लोक निर्माण मंत्री केशव मौर्या का तो करीबी है ही, उनके सहयोगी तथा मेंटर बताने वाले कटियार साहब की कमाई का भी हथियार है।
लखनऊ से पत्रकार अनिल सिंह की रिपोर्ट.