Abhishek Shrivastava : पहली झलक Randeep Hooda की मुझे आज तक याद है. रीगल में ‘D’ लगी थी. अपनी-अपनी बिसलेरी लेकर मैं और Vyalok शाम 7 बजे के शो में घुसे. संजोग से मैंने उसी वक्त ‘सीनियर इंडिया’ पत्रिका ज्वाइन की थी. ‘D’ का विशेष आग्रह इसलिए भी था क्योंकि Alok जी ने पहला अंक धमाकेदार निकालने को कहा था। प्लान था कि छोटा राजन का इंटरव्यू किया जाए। ‘D’ की रिलीज़ का संदर्भ लेते हुए स्टोरी और इंटरव्यू जाना था। पहले अंक के आवरण पर छोटा राजन की आदमकद तस्वीर के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू छपा, लेकिन मेरे लिए खबर ये नहीं थी।
मेरे दिमाग में बकरदाढ़ी वाला छरहरा देशू घूम रहा था जिसे रामगोपाल वर्मा ने फिल्म में एक भी डायलॉग कायदे से नहीं बोलने दिया। खामोशी के नाना पाटेकर से भी ज्यादा इन्टेन्स किरदार था इस शख्स का। उसके बाद पिछले दस साल में आई कुल 22 में से हुड्डा की केवल चार फिल्में मैं समय पर नहीं देख पाया। बरसों से आदत रही है कि रिलीज़ के बाद कोई फिल्म अगर इतवार तक नहीं देखी, तो बाद में नहीं देखता हूं। पूत के पांव पालने में तभी दिख गए थे, लेकिन ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर’ ने आश्वस्त किया कि ये आदमी लंबी रेस का घोड़ा है। बीच में तीन साल निर्देशकों ने हुड्डा को पुलिस इंस्पेक्टर बना-बना कर टाइप्ड कर दिया। ‘हाइवे’ के महाबीर भाटी को देखकर ऐसा लगा कि अपनी मिट्टी और बोली में ही आदमी ओरिजिनल दिख सकता है।
‘लाल रंग’ में हुड्डा का अभिनय अपनी मिट्टी और भाषा में खिलकर जवान हो गया है। 2001 से 2016 तक सोलह साल की यह परिपक्वता रणदीप हुड्डा को मुबारक। चिकने-चुपड़े, अंग्रेज़ीदां, शहरी नायकों के बीच खड़े हुए रोहतक के इस रस्टिक किरदार की अगली परीक्षा ‘सरबजीत’ में होनी है। उम्मीद है, हुड्डा हम जैसे कस्बाई दर्शकों को निराश नहीं करेंगे।
मीडिया और फिल्म समीक्षक अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.