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उत्तर प्रदेश

लखनऊ के ढेर सारे वरिष्ठ पत्रकारों को सरकार ने लावारिस मान लिया!

Ghanshyam Dubey : पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों को बचाने का बिल आया और पारित भी हुआ। पत्रकारों को आवंटित मकानों के बारे में भी बिल आया। इस बिल में टाइप-4 तक के पत्रकारों का ही जिक्र है। कुछ सरकारी कालोनियों के मकान राज्य सम्पत्ति विभाग के हिसाब से टाइप-5 के अनुसार हैं। क्या मानदण्ड है, क्या नहीं, यह राज्य संपत्ति विभाग ही जनता है।

<p>Ghanshyam Dubey : पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों को बचाने का बिल आया और पारित भी हुआ। पत्रकारों को आवंटित मकानों के बारे में भी बिल आया। इस बिल में टाइप-4 तक के पत्रकारों का ही जिक्र है। कुछ सरकारी कालोनियों के मकान राज्य सम्पत्ति विभाग के हिसाब से टाइप-5 के अनुसार हैं। क्या मानदण्ड है, क्या नहीं, यह राज्य संपत्ति विभाग ही जनता है।</p>

Ghanshyam Dubey : पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों को बचाने का बिल आया और पारित भी हुआ। पत्रकारों को आवंटित मकानों के बारे में भी बिल आया। इस बिल में टाइप-4 तक के पत्रकारों का ही जिक्र है। कुछ सरकारी कालोनियों के मकान राज्य सम्पत्ति विभाग के हिसाब से टाइप-5 के अनुसार हैं। क्या मानदण्ड है, क्या नहीं, यह राज्य संपत्ति विभाग ही जनता है।

इनमें भी पचासों वरिष्ठ या वरिष्ठतम पत्रकार रहते हैं। इस बिल में उनका कोई जिक्र नहीं है। यानी ये पत्रकार लावारिस जैसे हैं। इस समाजवादी सरकार में मुख्यमंत्री के साथ नेता जी को क्या यह पता है कि इन लावारिस वरिष्ठ पत्रकारों की इस तथकथित बिल में क्या हालत बना दी गयी है…

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लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार घनश्याम दुबे की एफबी वॉल से.

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