Prabhat Ranjan-
जानकी पुल के मॉडरेटर के रूप में तरह-तरह के अनुभव होते हैं। कई अनुभव पहले साझा भी किए हैं। कई अनुभव ऐसे होते हैं जो सोच-समझ के नए दरवाज़े खोलते हैं। अभी हाल में ही एक युवा ने मेल पर कहानी भेजी। कई बार अपने काम की मसरूफ़ियत ऐसी होती है मेल पढ़ना रह जाता है, जवाब देना रह जाता हैं। कुछ दिनों बाद उस युवा का एक और मेल आया जिसमें उन्होंने एक ऐप का लिंक भेजा और कहा कि इस लिंक पर देखिए संपादक महोदय कि कितने लाख लोग मुझे पढ़ चुके हैं।
फिर चलते-चलते यह तंज भी था कि बाई द वे आपको कितने लोग पढ़ते हैं। मैंने जवाब दिया कि सब कुछ ठीक है लेकिन आपकी कहानी हमारे लायक नहीं है। उन्होंने जवाब दिया कि आप अपना लायक सँभालिए मेरे पाठकों की कोई कमी नहीं है। आप छापते तो आपकी ही रीच बढ़ती।
बहरहाल, मैं सोचने लगा तो यह समझ आया कि आज मसला केवल गम्भीर बनाम लोकप्रिय का नहीं रह गया है। लोकप्रिय बनाने के इतने सारे माध्यम हैं। ऐप हैं, वेबसाइट हैं, ऑडियो बुक हैं, वेब सीरिज़ हैं, प्रिंट माध्यम तो चला आ ही रहा है। आज ऐसे बहुत से लेखक हैं जो सिर्फ़ ऐप पर लिख रहे हैं, सिर्फ़ ऑडियो बुक लिख रहे हैं।
आने वाले समय में मसला गम्भीर बनाम लोकप्रिय का नहीं रह जाएगा। मसला यह होगा कि किस माध्यम का वर्चस्व रहेगा? किस माध्यम के लेखक अमर हो जाएँगे? क्या आज की तरह प्रिंट माध्यम का वर्चस्व बना रहेगा? इस विषय में कुछ नहीं लिखना चाहता वरना किताब को छूने और उसकी ख़ुशबू की भावुक बातें करने वाले आ जाएँगे। अभी सब भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इस तरह से सोचना रोमांचक लगा।
अंतिम बात यह कि उस युवा लेखक की बात का मेरे ऊपर ऐसा असर हुआ कि मैं फ़िलहाल एक ऐप के लिए उपन्यास लिखने में लग गया हूँ।